अगर चाहते हो जानें सब धन है कितना काला ,
सबसे पहले खोलो बैंक में हर लॉकर का ताला !
समझदार को इशारा काफी ,अगर ध्यान से देखे ,
आँखों में वरना पड़ा रहेगा नासमझी का जाला !
चोर-लुटेरे - डाकू सबके सब हैं मौज-मजे में ,
काले-धन का मंत्र-जाप कर रहे फेर कर माला !
कोई किसी का भाई-भतीजा ,कोई किसी का बेटा ,
कोई किसी का जीजा है तो कोई किसी का साला !
बाहर-बाहर इक-दूजे को जमकर हैं गरियाते ,
भीतर -भीतर हँसी -ठहाके ,महफ़िल और मधुशाला !
बिन इलाज के मरते हैं जो अस्पताल के आंगन ,
कोई नहीं होता है उनको कफन ओढ़ाने वाला !
फिर भी खूब तरक्की पर है देश तुम्हारा -मेरा ,
समृद्धि के दावों से देखो घर-घर में उजियाला !
-- स्वराज्य करुण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (29-11-2014) को "अच्छे दिन कैसे होते हैं?" (चर्चा-1812) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्रीजी ! आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteदावे तो बहुत हैं काला धन निकालने के
ReplyDeleteहकीकत में देखते हैं अब खुदाई पहाड की।