कोहरे की खिड़की से झाँक रहा सूरज !
काँप रहे हैं शहर ,
काँप रहा गाँव ,
काँप रही पानी में
मौसम की नाव !
देखो तो किस कदर काँप रहा सूरज !
कम्पन के जाल में
कैद हुए हाथ-पैर ,
ऐसे में कौन करे
रोज सुबह की सैर !
रजाई के नीचे से झाँक रहा सूरज !
अलसाया दिन लगे ,
रात सिहरन भरी ,
गाँवों की दुनिया भी
अलावों के पास खड़ी !
अंजुरी भर गर्माहट मांग रहा सूरज !
हवाओं ने पहने हैं
बर्फीले परिधान ,
साफ़ कैनवास की
तरह लगे आसमान !
चित्र आस-पास के आँक रहा सूरज !
- स्वराज्य करुण
(छाया चित्र google से साभार )
हाँ जी!
ReplyDeleteअब तो कुहरा ही कुहरा है!
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ठीक है हम भी कुछ दिन कुहरे को ही कुछ दिनों तक गायेंगे ज़नाब!
अंजुरी भर गर्माहट मांग रहा सूरज !
ReplyDeleteकोहरे के प्रभाव क सुन्दर अभिव्यक्ति!
हवाओं ने पहने हैं
ReplyDeleteबर्फीले परिधान ,
साफ़ कैनवास की
तरह लगे आसमान!
चित्र आस-पास के आँक रहा सूरज !
अब तो सभी जगह यही मौसम है। इसी का मज़ा लीजिये... और समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.