धरती माँ ने पहन लिया
फिर धानी परिधान ,
खेतों में सजने लगी
मेहनत की मुस्कान !
माटी के हर कण में समाया
जीवन का संगीत
आज हवाओं की बंशी से
निकल रही है तान !
सुबह-शाम हर दिन होती
किरणों की बौछार
सोनाली आँगन में झूमता
सोने जैसा धान !
इंतज़ार की घड़ियाँ बीती
बीते दुःख के पल ,
गूँज उठे हैं गीतों से फिर
गली-गाँव ,खलिहान !
लगे है कितना खूबसूरत
महीना फसल कटाई का ,
कदम-कदम पर गुनगुनाए
माटी का जय गान !
सपनों के साकार होने का
आया मौसम ,
दरवाजे पर इंतज़ार में
देखो नया विहान !
-- स्वराज्य करुण
बहुत सुन्दर रचना , धान उत्सव की बधाई .
ReplyDeleteमाटी का संगीत गूँज रहा है कविता में!
ReplyDeleteसुन्दर!
bahut acchhi prastuti.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसुंदर रचना..बहुत ही भावपूर्ण।
ReplyDeleteधरती के रंग सी कविता...लाजवाब।
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