स्वराज्य करुण
लोकतंत्र में कोई भी फैसला जनमत के बिना नहीं हो सकता . नए छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण में भी जनमत की बहुत बड़ी भूमिका रही है और इसके लिए जनमत बनाने में यहाँ के जन-नेताओं के साथ-साथ उन सजग साहित्यकारों और कवियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है ,जिन्होंने खनिज-संपदा ,जल-संपदा ,वन-संपदा , जन-संपदा और धन-संपदा से परिपूर्ण इस धरती के मेहनतकश बेटे-बेटियों की गरीबी को , उनकी पीड़ा को, उनके दुःख-दर्द को और उनकी भावनाओं को वाणी दी, जिन्होंने मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के ननिहाल के रूप में प्रसिद्ध इस भूमि की महिमा को शब्दों के सांचे में ढाल कर देश और दुनिया का ध्यान खींचा .देश के तत्कालीन लोकप्रिय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने छत्तीसगढ़ के दर्द को और इसके मर्म को अपने संवेदनशील कवि-ह्रदय की गहराइयों से महसूस किया, दस वर्ष पहले राज्य-निर्माण की जटिल-कानूनी प्रक्रियाओं को देखते ही देखते पूर्ण करवाया और आम-सहमति से शान्ति और सदभावना के सौम्य वातावरण में इसे भारत के नक्शे पर अट्ठाइसवें राज्य के रूप में पहचान और प्रतिष्ठा दिलायी .
मध्य-प्रदेश जैसे विशाल राज्य से अलग होकर अब छत्तीसगढ़ जहाँ अपने सामाजिक-आर्थिक विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है , वहीं इस नव-गठित राज्य में कला, संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में मंचन , प्रदर्शन प्रकाशन और प्रसारण गतिविधियों में भी उत्साह-जनक तेजी आयी है.ताजा उदाहरण राज्य के जाने-माने कवि रामेश्वर वैष्णव के नए कविता संग्रह 'नमन छत्तीसगढ़' का है , जिसमे संकलित बीस हिन्दी और सात छत्तीसगढी कवितायेँ देश के इस नए राज्य की गरिमा और महिमा का बखान करते हुए यहाँ के मेहनतकशों की भावनाओं को भी स्वर देती हैं .कवि ने इन्हें माटी प्रेम की रचनाओं के नाम से प्रस्तुत किया है .मेरे ख़याल से यह अपनी ज़मीन से जुड़ी कविताओं की एक ऐसी रंगीन फुलवारी है ,जिसके हर पौधे और हर फूल की अपनी अलग आभा और अपना अलग रंग है. संग्रह की पहली कविता 'छत्तीसगढ़ हमारा ' में कवि ने राज्य के प्राकृतिक और सांस्कृतिक वैभव का वर्णन करते हुए विकास की अपार संभावनाओं का भी संकेत दिया है.बानगी देखें-
दुनिया में सबसे न्यारा छत्तीसगढ़ हमारा ,
है जान से भी प्यारा छत्तीसगढ़ हमारा .
हरियालियों में लिपटे हैं अंतहीन जंगल ,
हर ओर गूंजते हैं नित लोक-गीत मंगल .
हम उन्नति की ऐसी प्रेरक कथा गढ़ेंगे ,
छत्तीसगढ़ को 'भारत सिरमौर ' सब पढेंगे .
राज्य का गौरव-गान रचने वाले कवि का कोमल ह्रदय राष्ट्रीय-चेतना से अलग नहीं है . संग्रह में 'छत्तीसगढ़ है लघु भारत ' शीर्षक उनके एक गीत से यह संकेत मिलता है . उनकी इन पंक्तियों में इसे आप भी महसूस करें-
प्रांत-प्रांत की संस्कृतियों का यहाँ अनूठा संगम
मानवता , प्रकृति , नृतत्व के अदभुत दृश्य विहंगम .
सबका स्नेह भरा स्वागत , छत्तीसगढ़ है लघु भारत .
संकलन की एक रचना 'माटी सोनाखान की ' राज्य के महान क्रांतिकारी अमर शहीद वीर नारायण सिंह की संघर्ष गाथा को समर्पित है, ,जिसमें अकाल पीड़ित जनता के दो वक्त के भोजन के अधिकार की रक्षा के लिए और जनता को न्याय दिलाने के लिए सोनाखान के लोकप्रिय ज़मींदार नारायण सिंह द्वारा अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ चलाए गए संग्राम और उनकी शहादत का वर्णन है . उनका यही संघर्ष आगे जाकर छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय चेतना की मशाल बन गया .
कवि का यह मानना है कि वीर नारायण सिंह की शहादत को राष्ट्रीय पहचान मिलनी चाहिए. वे कहते हैं-
कथा जो कहती है छत्तीसगढ़ के आन,बान और शान की ,
पूजनीय है ,वन्दनीय है ,माटी सोनाखान की .
जोह रही है बाट शहादत राष्ट्रीय पहचान की ,
पूजनीय है , वन्दनीय है माटी सोनाखान की .
रामेश्वर वैष्णव अपने इस कविता-संग्रह में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को धन्यवाद देना नहीं भूलते . उनकी एक रचना का शीर्षक ही है -' धन्यवाद अटल जी ' . कुछ पंक्तियाँ आप भी देखें -
सपना किया साकार धन्यवाद अटल जी
है शुक्रिया आभार धन्यवाद अटल जी .
जो आम सभा में कहा था कर के दिखाया
हर्षित है जन-अपार धन्यवाद अटल जी .
मिलती हैं कैसे मंजिलें बिन खून बहाए
दिखलाया चमत्कार धन्यवाद अटल जी .
संपन्न राज्य इसको बना कर ही रहेंगे ,
जुटना है लगातार धन्यवाद अटल जी .
छत्तीसगढ़ न आपको भूलेगा कभी भी ,
हैं आप सृजनहार ,धन्यवाद अटल जी .
संकलन की हर कविता में कवि ने रचना तिथि भी अंकित कर दी है , ताकि पाठक देश ,काल और परिस्थिति के अनुरूप रचना की पृष्ठ-भूमि से अवगत हो कर कवि की तत्कालीन सम-सामयिक भावनाओं को भी महसूस कर सके . इनमे माटी और मेहनतकशों का दर्द है , आक्रोश की अभिव्यक्ति भी है और है राज्य के बेहतर भविष्य की उम्मीदों के साथ एक नयी सुबह की उम्मीद. अनेक रचनाएँ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए कविता के धरातल पर रचनाकार के साहित्यिक योगदान को भी रेखांकित करती नज़र आती हैं . संग्रह की प्रत्येक रचना के हर पन्ने को विषय-वस्तु के अनुरूप चित्रों से सजाया -संवारा गया है .रामेश्वर वैष्णव की काव्य-यात्रा विगत चालीस वर्षों से भी अधिक समय से लगातार जारी है. यह नयी किताब उनकी इस यात्रा में एक और यादगार मुकाम की तरह शामिल हो गयी है. बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं स्वराज्य करुण
जुटना है लगातार...मिलती हैं कैसे मंजिलें बिन खून बहाए
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