(छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की दसवीं साल गिरह पर )
कितने ही सपने दिल में रोज पाल के
देखते ही देखते हो गए दस साल के !
राज अपना छत्तीसगढ़ ,इसके हम वाशिंदे
मेहनत से जी रहे ,लगते कमाल के !
हकीकत में बदल रही बरसों की हसरतें
रखेंगे सहेज कर सीने में सम्भाल के !
वादा निभा कर सिखाया हमे अटल ने
भूलो मत हम पंछी सब हैं इक डाल के !
वतन के चमन का फूल हमारा सूबा है,
उभरते सितारे हैं हम इसके भाल के !
होती है सुबह यहाँ आकाश में इस तरह
धरती के आँचल में प्यार के रंग डाल के !
दुनिया को खिलाते हैं धान का चावल हम ,
थोड़े में गुज़ारा कर लेते है उबाल के !
तरक्की के सफ़र में जा रहा है काफिला,
परचम लहरा कर गगन में निकाल के !
स्वराज्य करुण
सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteदुनिया को खिलाते हैं धान का चावल हम ,
ReplyDeleteथोड़े में गुज़ारा कर लेते है उबाल के .
सुन्दर प्रस्तुति !
वाह, सुन्दर गजल है भाई साहब
ReplyDeleteइसे थीम सांग में भेजना चाहिए था प्रविष्टि के तौर पर
छत्तीसगढ राज्य की दसवीं वर्षगांठ पर गाड़ा गाड़ा बधाई