लोकतंत्र ,पर-लोकतंत्र
जोंकतंत्र , ठोक-तंत्र
और तमाम तरह के तंत्रों के बीच
कामयाबी के लिए
पढ़े जा रहे मन्त्रों के बीच /
पढ़े जा रहे मन्त्रों के बीच /
सुख-सुविधा के लिए आस-पास की
दुनिया में चल रही छीना-झपटी देख
दुनिया में चल रही छीना-झपटी देख
आज तक समझ में नहीं आया कि
इसमें सफल होने का मंतर क्या है ?
क्या कोई यह बता सकता है --
रिश्वत और फिरौती में अंतर क्या है ?
अगर कोई बंधक बना ले
आपके जायज अधिकारों को ,
बेहतर जिंदगी की
उम्मीदों को किसी अपहरण -कर्ता आतंकी
या फिर किसी खूंखार डाकू की तरह
और सुरक्षित लौटाने के एवज में
मांगे आपसे रूपए -पैसे ,
न मिलने पर रोक दे लम्बे समय तक
आपके सपनों के अंकुरण को /
उम्मीदों और सपनों की रिहाई के लिए
अपनी रही-सही ज़मीन और
रहा-सहा मकान गिरवी रखने को
हो जाएँ आप मजबूर
फिर गिरवी में मिले रूपयों से छुडाएं --
अपनी उम्मीदों को ,
जमानत पर रिहा कराएं बेगुनाह सपनो को
किसी अदृश्य हाथों की कैद से /
अपनी बेगुनाही का सबूत देने
गुनहगारों के आगे रख दें अपने
पसीने की कमाई /
अस्पतालों में करें चिरौरी डॉक्टरों की ,
मरीज के प्राणों को मौत के चंगुल से
बचाने के लिए दें उन्हें मुंह-माँगी रकम,
जल्दी घर लौटने भीड़ भरी ट्रेन में टी.टी. को
रूपए देकर खरीदें कुछ देर के लिए
पाँव रखने की जगह /
अपनी मजबूरियों का सौदा
करने को मजबूर आप उन्हें
देते हैं अपना सब-कुछ /
एक लेता है कलम की नोंक पर
दूसरा लेता है डंके की चोट पर /
ऐसे में यह दी गयी रकम
पाँव रखने की जगह /
अपनी मजबूरियों का सौदा
करने को मजबूर आप उन्हें
देते हैं अपना सब-कुछ /
एक लेता है कलम की नोंक पर
दूसरा लेता है डंके की चोट पर /
ऐसे में यह दी गयी रकम
आखिर कहलाएगी क्या --रिश्वत या फिरौती ?
जिसे देख कर लौट आती है आज के
धृतराष्ट्रों की आँखों में दिव्य ज्योति ?
स्वराज्य करुण
बस यही फर्क है
ReplyDeleteएक लेता है कलम की नोंक पर
दूसरा लेता है डंके की चोट पर /
वैसे ये दोनो जुडवां बहने हैं।
अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।
आज आप जबरदस्त फ़ार्म में हैं !
ReplyDeleteसमसामयिक रचना ,साधुवाद .
ReplyDeleteशानदार रचना। जो तुलनात्मक विवेचन किया है, आज के सन्दर्भ में उसे राजनेताओं और न्याय के मन्दिरों में बिराजमान न्यायमूर्तियों को समझने की जरूरत है। बधाई और शुभकामनाएँ।
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