- स्वराज्य करुण
नये ज़माने के डाकू खुलकर डाल रहे हैं डाका ,
कोई नहीं कर पाया उनका ज़रा भी बाल बांका !
गोपनीय बही-खाते उनके, स्विस-बैंक है आका ,
नये ज़माने के डाकू खुलकर डाल रहे हैं डाका ,
कोई नहीं कर पाया उनका ज़रा भी बाल बांका !
दोनों हाथों लूट देश को ,भेजे माल विदेश
अपने देश की अदालतों में चल न पाए केस !
गोपनीय बही-खाते उनके, स्विस-बैंक है आका ,
नये ज़माने के डाकू खुल कर डाल रहे हैं डाका !
है जिनको मालूम , वे भी नाम नहीं बतलाते ,
खुद को कैसे करें उजागर , इसीलिए शरमाते !
फिर भी करते कमीशनखोरी, मामा हो या काका ,
नये ज़माने के डाकू खुल कर डाल रहे हैं डाका !
बेकारी की आँधी हो , या महंगाई की आग ,
उनके घर-आँगन में तो हर मौसम में फाग !
सिर्फ दिखावे का झगड़ा ,फिर जमकर हँसी-ठहाका ,
नये जमाने के डाकू खुलकर डाल रहे हैं डाका !
जनता समझ न पाए इनका जादू-माया जाल
कहीं सितारा होटल चलता , कहीं पे शॉपिंग-मॉल !
देश के मालिक बन खींचते हैं विकास का खाका
नये जमाने के डाकू खुलकर डाल रहे हैं डाका !
- स्वराज्य करुण
नये ज़माने के डाकू खुलकर डाल रहे हैं डाका ,
ReplyDeleteकोई नहीं कर पाता उनका ज़रा भी बाल बांका !
aaj ki hakikat
dekho inki takat
bahut sunder
karun ji
badhai swekare
http://unluckyblackstar.blogspot.com/2011/02/blog-post_15.html
आका ,डाका ,बांका ,खाका ,ठहाका के रंग निखार दिए आपने :)
ReplyDeletebahoot achcha aur kararaa vyangy hai
ReplyDeleteअखबारी समाचारों जैसा लगने लगता है यह सब.
ReplyDeleteदेश के मालिक बन खींचते हैं विकास का खाका
ReplyDeleteनये जमाने के डाकू खुलकर डाल रहे हैं डाका !
आज तो सबको धो दिया आपने। सुपर रिन की धुलाई,खूब जगमगाई।
Beautiful as always.
ReplyDeleteवर्तमान की विसंगतियों, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी राजनीति को बड़े प्रभावी शब्दों में आपने रेखांकित किया है अपनी इस सुन्दर रचना में...
ReplyDelete