- स्वराज्य करुण
सतरंगे सपनों का मेला वीरान हुआ संग्राम में ,
सतरंगे सपनों का मेला वीरान हुआ संग्राम में ,
दिल की धरती पर केवल,यादों के अवशेष रह गए !
नज़रबंद हो गयी रात भी ,
कैद सुबह की हुई रोशनी
भरी दोपहरी बागों में अब
नहीं प्यार की छाँव घनी !
लौट गयी सारी उम्मीदें ,खामोश घर के आँगन से ,
मुसाफिरों के स्वागत में, न जाने कितने देश रह गए !
पूछ रहा मैं चौराहों से
मंजिल है किस राह पर ,
उत्तर बन कर हर सवाल
आ ठहरा मेरी निगाह पर !
अंधियारे के ज़हरीले तीरों से मर गया है सूरज ,
किसी बावरी विधवा के ज्यों, बिखरे-बिखरे केश रह गए !
कोई लहरों से जूझता
झीलों में नहाता कोई ,
घायल व्याकुल नदियों सा
नयनों से नीर बहता कोई !
नाविक खड़ा रहा किनारे , नांव खींच ले गयी सुनामी ,
उसके जीवन में कितने ही प्यार भरे सन्देश रह गए !
- स्वराज्य करुण
@अंधियारे के ज़हरीले तीरों से मर गया है सूरज ,
ReplyDeleteकिसी बावरी विधवा के ज्यों,बिखरे-बिखरे केश रह गए!
आज तो घायल इतने हुए,
टिप्पणी करना ही भूल गए।
नज़रबंद हो गयी रात भी
ReplyDeleteकैद सुबह की हुई रोशनी
भरी दोपहरी बागों में अब
नहीं प्यार की छाँव घनी !
मन की कोमल अनंभूतियों को सहेजता सुंदर गीत।
बधाई, करुण जी।
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत है .
ReplyDeleteआपके लेखन में सोंच और सादगी विशेष तौर पर प्रशंसा के लायक मुझे लगती है .बधाई .
यादों का समंदर, यादों के अवशेष.
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
नज़रबंद हो गयी रात भी ,
ReplyDeleteकैद सुबह की हुई रोशनी
भरी दोपहरी बागों में अब
नहीं प्यार की छाँव घनी !
बहुत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति..