Tuesday, October 3, 2023
(पुस्तक-चर्चा) मोर सुरता के गाँव ; माटी -महतारी की मर्मस्पर्शी छुअन (आलेख -स्वराज्य करुण)
मधु धांधी की छत्तीसगढ़ी कविताओं के संकलन 'मोर सुरता के गाँव' की रचनाओं में ग्राम्य जीवन का सामाजिक ,आर्थिक और प्राकृतिक परिवेश भी साकार हो उठा है। इन रचनाओं में छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की सोंधी महक भी है और कई रचनाओं में किसानों और मज़दूरों के कठिन जीवन संघर्षों का हृदयस्पर्शी चित्रण भी हुआ है। मोर सुरता के गाँव - यानी मेरी यादों का गाँव। इस कविता संग्रह की सभी रचनाओं में माटी -महतारी की मर्मस्पर्शी छुअन है। उनकी रचनाएँ हमें अपनी जड़ों से जोड़ती हैं।
मधुर स्वभाव और मीठे स्वरों के कवि मधु धांधी का जन्म छत्तीसगढ़ के तत्कालीन अविभाजित रायपुर जिले में स्थित ग्राम पिसीद विकासखंड -कसडोल में 21 जून 1951 को हुआ था। यह गाँव और विकासखंड अब राज्य के बलौदाबाजार-कसडोल जिले में है। कवि मधु धांधी का निधन तीन अप्रैल 1977 को वर्तमान महासमुंद जिले में विकासखंड मुख्यालय पिथौरा से लगे हुए अपने गृहग्राम -खुटेरी में हुआ । उन दिनों यह गाँव और विकासखंड रायपुर जिले में शामिल था। मधु धांधी छत्तीसगढ़ में आंचलिक कवि सम्मेलनों के उभरते कवि थे। उनकी कुछ कविताएँ आंचलिक और राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं , उन दिनों आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र से उनके काव्य पाठ का प्रसारण भी हुआ। लेकिन उस दौर में संसाधनों की कमी के चलते उनकी अधिकांश रचनाओं का व्यापक रूप से प्रकाशन और प्रसारण नहीं हो पाया।
हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के मधुर गीतकार मधु धांधी के निधन के बाद उनके शोकसंतप्त मित्रों और शुभचिंतकों ने उनकी स्मृति में पिथौरा में साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति का गठन किया ,जिसके तत्वावधान में उनका पहला कविता संग्रह 'हॄदय का पंछी ' अक्टूबर 1977 में प्रकाशित किया। यह उनकी 13 हिन्दी और 12 छत्तीसगढ़ी कविताओं का मिला -जुला संकलन था। लगभग पैंतालिस साल बाद वर्ष 2022 में उनकी 74 हिन्दी कविताओं का संग्रह 'मेरा सागर ;तुम्हारी कश्ती' और छत्तीसगढ़ी कविताओं का संग्रह 'मोर सुरता के गाँव' का प्रकाशन हुआ । इनमें से हिन्दी कविता -संग्रह वैभव प्रकाशन रायपुर द्वारा और छत्तीसगढ़ी कविता -संग्रह श्रृंखला साहित्य मंच ,पिथौरा द्वारा प्रकाशित किया गया। यह एक विडम्बना है कि उनके तीनों कविता -संग्रह उनके मरणोपरांत ही प्रकाशित हो पाए। मधु धांधी की 46 वीं पुण्यतिथि( तीन अप्रैल 2023 ) के मौके पर उन्हें याद करते हुए आज हम 'साहित्य -विशेष ' में विनम्र श्रद्धांजलि सहित उनकी 19 छत्तीसगढ़ी कविताओं के संकलन ' मोर सुरता के गाँव' की चर्चा कर रहे हैं। दिवंगत कवि के प्रथम संग्रह 'हॄदय का पंछी ' की छत्तीसगढ़ी कविताओं को भी इस संग्रह में सहेजा गया है। चूंकि 'हृदय का पंछी' का प्रकाशन 45 साल पहले (1977 में )हुआ था , इसलिए इन छत्तीसगढ़ी रचनाओं को संरक्षित करने की दृष्टि से इन्हें नये संग्रह में शामिल किया गया है। इन गीतों की तरह बाकी सात कविताओं में भी लोकजीवन की भावुक अभिव्यक्ति को भी हम महसूस कर सकते हैं।।
आधुनिकता के इस दौर में , हम अपनी जीवनशैली में चाहे कितने ही शहरी क्यों न हो जाएँ, लेकिन हम में से अधिकांश अपने भीतर कहीं न कहीं स्वयं को अपने गाँवों में ही पाते हैं। नौकरी और रोजगार के लिए गाँव छोड़कर शहरों में जा बसे लोगों की जड़ें अपने गाँवों से अलग नहीं हो पाती। ऐसे में मधु धांधी के इस कविता संग्रह का शीर्षक गीत -'मोर सुरता के गाँव' पाठकों को उस गाँव की याद दिलाता है ,जहाँ आमा के मउरने लगे हैं। यानी आम के वृक्षों में मौर आने लगे हैं ।यानी यह वसंत का मौसम है -
*तोर मया के मउरिस हे आमा रे राम ,
मोर सुरता गाँव आमा मउरे।
मन के अजोध्या म सीता अउ राम ,
जिहाँ मया के राधा ,उहैं हावै श्याम।*
अर्थात तेरी मया (प्रीत) के आम मउरने लगे हैं।मेरी यादों के गाँव में आम मउरने लगा है।
सीता और राम मेरे मन के अयोध्या में हैं। जहाँ प्रेम की राधा होती है ,श्याम भी वहीं होता है।
कवि ने 'मोर गाँव के दू चरवाहा 'शीर्षक अपने गीत में गाँव के मेहनतकश चरवाहों की कठिन दिनचर्या का वर्णन किया है , वहीं 'फेर पर गे संगी अकाल ' शीर्षक से ही स्पष्ट है कि यह रचना अकाल पीड़ित जनता की मनोदशा को प्रकट करती है । वर्ष 1972 के अपने एक गीत ' खेत -खेत ला पानी ' में कवि आव्हान करते हैं-
*खेत -खेत ला पानी ,सब ला काम दव,
जाए बर हे दूरिहा ,झन आराम लव।
संगी -संगवारी हे भखरा ,हीरा ह ,
अबड़ पिराथे गा आँखी के पीरा ह।
झन गोठियावव जात-पाँत के बात ला
आँसू पोछव ,सुख -दुःख मा तो साथ दव।*
यानी हर खेत को पानी और सबको रोजगार दो। बहुत दूर जाना है। आराम मत करो। जात-पाँत की बात मत करो ,जो आँखों को पीड़ा देती है। इसलिए पीड़ितों के आँसू पोछो और सुख -दुःख में उनका साथ दो। कवि देश की प्रगति की ओर भी लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। उन्होंने इस गीत में आज़ादी के बाद देश में बने भाखड़ा नंगल और हीराकुद जैसे विशाल जलाशयों का उल्लेख किसानों के संगी -संगवारी के रूप में 'भखरा' और' हीरा' के नाम से किया है। लेकिन वह जनता को झूठे आश्वासन देने वालों से भी सावधान करते हैं और कहते हैं कि ऐसे लबरा (झूठे)लोगों के भाषणों से तुमने क्या पाया -
*झन पतियाहू तुमन त असवासन ला ,
का पाए हव सुन -सुन लबरा भासन ला।*
देश और प्रदेश की विषम परिस्थितियों ने कवि को व्यथित किया है। उनकी यह व्यथा इस गीत की आगे की पंक्तियों में छलक उठती है --
*गांधीजी के सपना ,सपना रहिगे ,
नेहरू जी के प्रिय गुलाब कछु कहिगे।
छत्तीसगढ़ के बेटा मन सब सहिगे,
बादर बिन बरसे के बरसे रहिगे।*
संग्रह में - आँखी होगे बदरा,रोवत हे अंगना के दीयना ,आँखी बैरी ,सुरता के फाँस ,
और मोर टूट के घरौंदा माटी के जैसे प्रेम और विरह के गीत भी हैं ,जिनमें वियोग श्रृंगार की प्रधानता है , तो 'बाँचे हे चार दिन गवनवा हो ही 'जैसे गीत में जिस बेटी का गौना होने वाला है ,उसके साथ उसकी माँ का मर्मस्पर्शी संवाद भी । इसी तरह 'तोर सुरता के जंगल मा संगी' शीर्षक गीत में कवि ने नायक -नायिका के बीच सहज ,सरल श्रृंगार भावों से परिपूर्ण बातचीत को अपनी कल्पनाओं के कैनवास पर भावनाओं के रंगों से सजाया है। वहीं 'सीता हरण'शीर्षक लम्बी रचना में कवि ने माता सीता के अपहरण की घटना का मार्मिक चित्रण किया है।
मधु धांधी की हिन्दी और छत्तीसगढ़ी कविताओं की दुनिया हमारे और आपके परिवेश में ही रची -बसी हैं। उनके दोनों नये कविता संग्रहों की रचनाओं में माटी- महतारी की मर्मस्पर्शी छुअन के साथ दिलों को छू लेने वाली मानवीय संवेदनाओं की मोहक अभिव्यक्ति भी है। कवि तो भावुक होता ही है,लेकिन मुझे लगता है कि इन रचनाओं को पढ़कर पाठक भी स्वयं को भावुक होने से नहीं रोक पाएंगे!
आलेख -- स्वराज्य करुण
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