Wednesday, May 3, 2023

(आलेख) पारम्परिक और नागरिक पत्रकारिता पर कुछ विचार

 आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस ; चिन्तन -मनन का दिन 

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            (आलेख - स्वराज करुण )

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1993 में की गयी घोषणा के अनुरूप सम्पूर्ण विश्व में हर साल तीन मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का यह 30 वां साल है। यूनेस्को ने इसे मनाने की सिफारिश की थी। आज इस  मौके पर पत्रकारिता की    सभी विधाओं में सक्रिय सभी लोगों को हार्दिक बधाई   और बहुत -बहुत शुभकामनाएँ । दुनिया के प्रत्येक लोकतंत्र में आधुनिक मीडिया के  सभी पहलुओं पर आज चिन्तन -मनन करने का दिन है। मेरे विचार से लोकतंत्र में प्रेस की आज़ादी और अभिव्यक्ति की आज़ादी , दोनों एक दूसरे के पूरक हैं  या एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उसी तरह एक आम नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कोई  फ़र्क नहीं है। है भी तो बहुत बारीक फ़र्क है ,क्योंकि प्रेस या मीडिया का संचालन भी नागरिक ही तो करते हैं। उनकी अभिव्यक्ति अगर बाधित होगी तो वे प्रेस या मीडिया का संचालन भला कैसे कर पाएंगे ? 

    आज की दुनिया में प्रेस का अर्थ बहुत व्यापक हो गया है। लोकतंत्र के इस नये युग में अब 'प्रेस' का मतलब सिर्फ़ छपा हुआ अख़बार नहीं है ,बल्कि उस तक समाचारों और विचारों की पूर्ति सतत बनाए रखने वाले रेडियो,टेलीविजन,  और इंटरनेट आधारित समाचार एजेंसियों सहित सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म भी प्रेस के रूप में अपनी -अपनी भूमिका है ।लेकिन  पारम्परिक पत्रकारिता के रूप में प्रिंट मीडिया की भूमिका आज भी बहुत महत्वपूर्ण और ताकतवर बनी हुई है। छपे हुए शब्दों और विचारों का अपना महत्व होता है।

    इधर हो सकता है कि बहुत से लोग सोशल मीडिया को 'पत्रकारिता' मानने से  इंकार करें ,लेकिन यह पारम्परिक पत्रकारिता से हटकर 'सार्वजनिक पत्रकारिता'  अथवा 'नागरिक पत्रकारिता ' कहलाने की हक़दार तो बन ही चुकी है।भले ही इसके विभिन्न प्लेटफार्मों में मनुष्य को भ्रमित करने वाला शोरगुल बहुत है ,हर कोई इसमें अपनी बात कहने के लिए व्याकुल नज़र आता है ,लेकिन  यह सच्चाई है कि  आज  यह अभिव्यक्ति की आज़ादी का एक नया माध्यम है बन चुका है। सोशल मीडिया  अभिव्यक्ति की आज़ादी का एक नया माध्यम है। पारम्परिक पत्रकारिता में वैतनिक अथवा मानसेवी सम्पादक और वैतनिक , अवैतनिक संवाददाताओं का होना बहुत जरूरी है  । वो छपनीय जानकारी प्राप्त करने के लिए  किसी से भी कोई भी सवाल कर सकते हैं,  जबकि 'नागरिक पत्रकारिता 'में व्यक्ति को ऐसी आज़ादी नहीं है ,जबकि आज दुनिया का हर स्मार्ट फोन धारक व्यक्ति सूचनाओं ,समाचारों और विचारों का प्रेषक बनकर अप्रत्यक्ष रूप से ही क्यों न हो , एक 'नागरिक पत्रकार' (सिटीजन जनर्लिस्ट)  की भूमिका तो  निभा ही रहा है।वह अपने लिखे हुए का खुद सम्पादक ,मुद्रक और खुद प्रकाशक है। भले ही वह हमारी सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक  व्यवस्था के सूत्रधारों से आमने -सामने होकर कोई सवाल न  कर पाता हो ,लेकिन अपने इर्दगिर्द की घटनाओं और समस्याओं को सचित्र पोस्ट करके अप्रत्यक्ष रूप से सवाल तो उठा ही देता है और पारम्परिक प्रेस के लिए विषय अथवा मैटर का जुगाड़ भी कर देता है। वह भी एकदम निःशुल्क ,बल्कि खुद पैसे देकर ,यानी मोबाइल कम्पनियों  को  हर महीने सिम रिचार्ज के लिए अपनी जेब से सैकड़ों रुपए देकर वह 'नागरिक पत्रकारिता ' में अपना सहयोग दे रहा है। यह एक प्रकार की अनौपचारिक पत्रकारिता है। 

          दुनिया के बड़े - बड़े नेता, राष्ट्र  प्रमुख  और अफ़सर ,आजकल स्वयं न्यूज मेकर बन गए हैं जो  पारम्परिक प्रेस से साझा करने योग्य जानकारी सबसे पहले फेसबुक,  ट्विटर,ब्लॉग और वेबसाइट  पर फोटो और वीडियो सहित पोस्ट कर देते हैं ,जिन्हें अख़बार ,रेडियो और टीव्ही चैनल अपने लिए उठा लेते हैं। उन्हें पकी-पकाई सामग्री मिल जाती है।अब तो टीव्ही चैनलों की तरह यूट्यूब न्यूज चैनल भी ख़ूब चल रहे हैं।    

 सोशल मीडिया के ये सभी प्लेटफार्म निजी कम्पनियों द्वारा संधारित और संचालित हैं। वो जिस दिन चाहें ,इन्हें बंद भी कर सकती हैं।लेकिन विश्व के करोड़ो नागरिकों से  मिल रही तरह -तरह की सूचनाओं का विशाल बैंक उन्हें मुफ़्त में मिल रहा है और विज्ञापनों से भी  उनकी खरबों डॉलर की कमाई हो रही है।ऐसे में मुझे नहीं लगता कि वो  अपनी इन दुकानों को बंद करेंगीं। दुनिया भर में आज लगभग सभी सरकारी विभागों और  निजी कम्पनियों के अपने -अपने वेबसाइट हैं। लोकल से ग्लोबल तक हर तरह की जानकारी लोग इनमें अपने हिसाब से कहीं भी और कभी भी प्राप्त कर सकते हैं। प्रेस की स्वतंत्रता जनता की  अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ी हुई है ,जो एकतरफा कतई नहीं हो सकती। इसके साथ हमारी सामाजिक ,राष्ट्रीय और वैश्विक ज़िम्मेदारियाँ भी हैं। सूचनाएँ गलत न हों ,समाचार प्रायोजित न हों और विचार विषैले न हों और जन हित से जुड़े हुए हों , प्रेस की आज़ादी में इन बातों का  ध्यान रखना भी  बहुत जरूरी है।  -- स्वराज करुण

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