(आलेख : स्वराज्य करुण )
कोरोना काल में करीब पौने तीन साल पहले बाधित रेल सेवाओं की बहाली अब तक ठीक से नहीं हो पायी है। भले ही कोरोना संकट काफी हद तक टल चुका है । लेकिन इसके बाद भी रेल यातायात में पहले जैसी सामान्य स्थिति नहीं लौट पायी है। ज़िम्मेदार लोग बताएँ - क्या अब भी इसके लिए कोरोना ज़िम्मेदार है ? किसी एक रेल्वे जोन में ट्रेनों के रद्द होने का प्रतिकूल असर देश के अन्य इलाकों की रेल सेवाओं पर भी पड़ता है। आवागमन का सस्ता साधन होने के कारण काफी संख्या में लोग ट्रेनों में यात्रा करते हैं। लेकिन हर हफ़्ते अचानक दर्जनों यात्री ट्रेनों के कैंसिल होने से उन हजारों -,लाखों यात्रियों में हाहाकार मच रहा है ,जो अपने रोज के कामकाज के सिलसिले में पैसेंजर ट्रेनों से आना जाना करते हैं । इनमें वाणिज्यिक कारोबार , सरकारी और प्राइवेट नौकरी , तरह -तरह की मेहनत मज़दूरी आदि के लिए अपने क्षेत्र के एक शहर से दूसरे शहर रोज अप-डाउन करने वाले भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। अन्य प्रयोजनों से रेल यात्रा करने वाले मुसाफ़िर भी परेशान हैं। अचानक किसी ट्रेन के स्थगित होने या निरस्त होने की ख़बर आती है तो यात्रियों में बेचैनी के साथ भारी हताशा का आलम देखा जाता हैंम यात्री रेलगाड़ियों के रद्द होने पर स्टेशनों के कुलियों की भी कमाई मारी जा रही है।
हमने अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव भी मना लिया ,लेकिन इसके 75 वर्षों में अपनी रेल सेवाओं में इतनी बड़ी -बड़ी रुकावटें पहले कभी नहीं देखी । अगर अंग्रेजों के ज़माने को शामिल करके देखें तो भारत में रेल सेवाओं का इतिहास लगभग 185 साल का हो चुका है। इन 185 वर्षों में भी देश के रेल यातायात में ऐसी रुकावटें नहीं आयी होंगी। इंटरनेट को खंगालें तो भारत में रेल सेवाओं की विकास यात्रा के बारे में कई रोचक तथ्य मिलते हैं। हमारे देश में पहली रेल एक मालगाड़ी थी , जो वर्ष 1837 में मद्रास (वर्तमान तमिलनाडु) में रेड हिल्स से चिंता द्रिपेट पुल तक चलाई गयी थी। इसका निर्माण 1836 में आर्थर कॉटन नामक अंग्रेज ने करवाया था। मकसद था -ग्रेनाइट पत्थरों का परिवहन।उन दिनों गोदावरी नदी पर एक बाँध बन रहा था ,जिसके लिए पत्थरों की सप्लाई इस रेलमार्ग से की जाती थी।
हमारे यहां यात्री रेल सेवाओं की शुरुआत 16 अप्रैल वर्ष 1853 को हुई ,जब मुम्बई के बोरीबंदर से ठाणे के बीच 34 किलोमीटर में 400 यात्रियों की क्षमता और तीन वाष्प इंजनों वाली पैसेंजर ट्रेन का परिचालन किया गया था । यानी यात्री ट्रेनों का इतिहास 169 साल का और मालगाड़ियों का इतिहास वर्ष 1837 में मद्रास में चली मालगाड़ी को मिलाकर देखें तो 185 साल का हो चुका है। बाद के दशकों में रेल सेवाओं का लगातार विस्तार हुआ और 15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी के बाद इन सेवाओं का दायरा और भी बढ़ता चला गया। स्वतंत्र भारत की सभी सरकारों और रेल्वे के हमारे लाखों मेहनतकश कामगारों का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। देश को चारों दिशाओं से एकता के सूत्र में बाँध कर रखने में भी हमारे रेल नेटवर्क की बड़ी भूमिका है।
आज भारत में रेलमार्गों का नेटवर्क 67 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा विस्तृत हो चुका है,जिनमें हर दिन 8700 यात्री ट्रेनों और् 7हजार 349 मालगाड़ियों का परिचालन होता है। रेल्वे स्टेशनों की संख्या 8, 338 हो चुकी है। हर दिन लगभग 2 करोड़ 30 लाख यात्रियों को आवागमन और उद्योगों तथा कारोबारियों को 33 लाख मीट्रिक टन माल परिवहन की सुविधाएँ देने की क्षमता भारतीय रेल मंत्रालय के पास है। करीब 15 लाख कर्मचारियों के साथ यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा है। हो सकता है कि आंकड़ों में कुछ त्रुटियाँ हों ,लेकिन मोटामोटी यही तथ्य हैं।
लेकिन मैं इंटरनेट खंगाल कर आपको यह सब क्यों बता रहा हूँ ? मुझसे अधिक जानकारी तो आपके पास होगी ! मैं तो सिर्फ़ इसलिए याद दिला रहा हूँ कि आज़ादी के पहले और बाद के 185 वर्षों को मिलाकर देखें तो लगेगा कि हमारी रेल सेवाओं में शायद ही कभी इतनी बड़ी बड़ी रुकावटें आयी होंगी ,जितनी आज देखने को मिल रही है। आज़ादी के 75 वर्षों में भी ऐसा कभी नहीं हुआ ,जब आये दिन बिना किसी पूर्व सूचना के बिना कोई ठोस कारण बताए , बड़ी संख्या में रेलगाड़ियाँ रद्द हो रही हैं। क्या ज़िम्मेदार लोग देख रहे हैं जनता की तकलीफ़?क्या नागरिकों का दर्द उन्हें महसूस हो रहा है ? अब तक 66 प्लस 38 ,यानी 104 ट्रेनें रद्द ? भारी वर्षा , बाढ़ ,तूफ़ान ,भूकम्प या रेल दुर्घटना की वजह से ट्रेनें कैंसिल हों तो बात समझ मे आती है , लेकिन यहाँ तो जनता की समझ में आने लायक कोई स्पष्ट कारण भी नहीं बताया जा रहा है । सामान्य दिनों में अचानक घोषणा होती है कि ट्रेन कैंसिल। कई बार तो यात्रियों को स्टेशन पहुँचने पर पता चलता है कि उनकी ट्रेन आज नहीं आएगी। क्या कम से कम एक सप्ताह पहले मीडिया के जरिए और यात्रियों के मोबाइल पर एसएमएस के जरिए इसकी सूचना नहीं दी जा सकती ?(आलेख - स्वराज्य करुण )
No comments:
Post a Comment