Saturday, April 16, 2022

क्या सोचते होंगे हमारे बच्चे ?


(स्वराज करुण )
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ज़रा सोचो ! 
क्या सोचते होंगे हमारे बच्चे ,
जब देखते हैं अपने से बड़ों को 
आपस में लड़ते ,झगड़ते 
कहीं ज़मीन -जायदाद के नाम पर ,
कहीं जाति और धर्म के नाम पर ,
कहीं देशों की सरहदों के नाम पर ,
एक -दूसरे के ख़ून के प्यासे 
लोगों को देख कर ,
कहीं बुलडोजरों से उजड़ते 
और जलते हुए घरों को देखकर ,
कहीं कातिल गोलियाँ उगलती बंदूकों 
और कहीं ख़ून की प्यासी 
तलवारों को देखकर ,
कहीं विमानों से बरसते बमों 
से  उजड़ते शहरों में 
रोते-बिलखते लोगों और 
अपने ही जैसे नन्हे  बच्चों को देखकर ,
कहीं अस्पतालों 
के दरवाजों से दुत्कारे गए 
बेसहारा मरीजों  को देखकर ,
कहीं फैक्ट्रियों के लिए उजाड़ी गयी 
बस्तियों से मेहनतकशों की 
उजड़ती ज़िन्दगी को देखकर ,
कहीं अमीरों की  ऊँची -ऊँची
आलीशान इमारतों और 
कहीं उनके नीचे झुग्गियों में 
दिन गुजारते अपने ही जैसे 
बच्चों को देखकर ,
कहीं रेल्वे स्टेशनों और बस -अड्डों 
में भीख मांगते नन्हें  मासूमों को
देखकर आख़िर क्या सोचते होंगे बच्चे ?
शायद यह सवाल उनके 
मन में जरूर उठता होगा - 
क्या वाकई यही है इंसानों की दुनिया ?
इसलिए इंसानों !
अगर तुम वाकई इंसान हो ,अगर तुममें
बची है थोड़ी -सी भी इंसानियत 
तो मत दिखाओ अपने बच्चों को
ऐसे खौफ़नाक और दर्दनाक नज़ारे ,
वरना वो सोचेंगे कि
हम व्यर्थ ही आए इस दुनिया में ,
हम जहाँ थे ,वहीं अच्छे थे ।
इसलिए सोचो , 
तुम क्या दिखाना चाहते हो
अपने बच्चों को ?
रंग -बिरंगे परिन्दे 
या खूंखार दरिंदे ?
ख़ूनी मंज़र या ख़ूबसूरत धरती ?
       - स्वराज करुण 

4 comments:

  1. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 17/04/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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    1. हार्दिक आभार कुलदीप जी ।

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  2. पत्थरों के शहर बसते गए दिल पत्थर होते गए
    पत्थर सोचे कैसे
    प्रलय के बाद नए विचार उगेंगे
    मार्मिक रचना

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    1. हार्दिक आभार विभा जी ।

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