- स्वराज करुण
जन-आस्था और जन -विश्वास अपनी जगह है लेकिन यह देखकर दुःख होता है कि अतीत के अपने समृद्ध सांस्कृतिक गौरव के संरक्षण लिए हमारे भारतीय समाज में इस आधुनिक युग में भी जन -चेतना का भारी अभाव है ।
इसके फलस्वरूप हमारे देश के गांवों ,जंगलों पहाड़ों में इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण सैकड़ों , हजारों वर्ष पुरानी कई मूर्तियों का मूल स्वरूप और सौन्दर्य नष्ट होता जा रहा है । अगर ऐसा ही चलता रहा तो निकट भविष्य में हमारा इतिहास विलुप्त हो जाएगा और ये प्राचीन मूर्तियाँ भी अस्तित्व विहीन हो चुकी होंगी । यह गंभीर चिन्ता का विषय है । हालांकि राज्य संरक्षित स्मारकों में यह स्थिति कम देखने में आती है ,लेकिन जिन प्राचीन धरोहरों को सरकारी तौर पर संरक्षित स्मारक का दर्जा नहीं मिला है , वहाँ जन जागरूकता और जन -चेतना का गहरा संकट देखा जा सकता है।
रासायनिक उपचार के बिना हवा और उसमें उड़ते धूल कणों की वज़ह से प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाओं का क्षरण धीरे -धीरे होता रहता है लेकिन आस्था के नाम पर इन पर श्रद्धालुओं द्वारा सिन्दूर आदि के लेपन से यह क्षरण और भी तेजी से होने लगता है ।
पश्चिम ओड़िशा के अम्बाभोना (जिला -बरगढ़ )स्थित केदारनाथ मंदिर की कई प्राचीन मूर्तियाँ का मूल स्वरूप भी इसी वज़ह से धुंधलाने लगा है । हालांकि मन्दिर ट्रस्ट की सजगता और सक्रियता की वज़ह से परिसर काफी साफ-सुथरा है । लेकिन पुरातत्व विभाग से समन्वय कर मूर्तियों के वैज्ञानिक ढंग से रख -रखाव की ओर भी ट्रस्ट को ध्यान देना चाहिए । सूचना बोर्ड लगाकर उसमें श्रद्धालुओं से अपील की जानी चाहिए कि वे इन आती धरोहरों के संरक्षण में सहयोगी बनें और इन पर सिन्दूर आदि न लगाएं । पूजा सामग्री मूर्तियों से कुछ दूरी पर भी अर्पित की जा सकती है ।
इस मन्दिर में दक्षिणमुखी गणेश , पश्चिमी दीवार पर कार्तिकेय ,उत्तरी दीवार पर दुर्गा की मूर्तियों के अलावा परिसर में और भी कई प्राचीन प्रतिमाएं हैं ,जिन्हें समुचित संरक्षण की जरूरत है । मन्दिर के पुजारी के अनुसार भगवान केदारनाथ (भगवान शंकर ) यहाँ शिवलिंग के रूप में स्वयं प्रकट हुए थे । बारे पहाड़ के इस इलाके में तब घनघोर जंगल था । सम्बलपुर के राजा बलिहार सिंह ने यहाँ पर लगभग चार सौ -पांच सौ साल पहले इस मंदिर का निर्माण करवाया था ।
बहरहाल , इसमें दो राय नहीं कि इस मन्दिर की ऐतिहासिकता और उसके पुरातत्व को लेकर व्यापक अध्ययन और अनुसंधान की जरूरत है । ओड़िशा सरकार के पुरातत्व विभाग को इसका संज्ञान लेना चाहिए । ऐतिहासिकता के आधार पर इसे राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है या नहीं, यह तो मुझे नहीं मालूम,क्योंकि ऐसा कोई सूचना पटल देखने में नहीं आया । अगर घोषित नहीं हुआ है तो जल्द से जल्द किया जाना चाहिए ।
--स्वराज करुण
(तस्वीरें : मेरे मोबाइल कैमरे की आँखों से )
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