Friday, May 3, 2019

(आलेख ) ओड़िशा के गाँवों में भी कंस की मथुरा नगरी !


         
     पूरा गाँव बन जाता है सजीव
     रंगमंच : कलाकार के रूप में ग्रामीण निभाते हैं भूमिका    
                                   --स्वराज करुण 
फिलहाल  वीरान लग रहा यह  रंगमंच कोई साधारण रंगमंच  नहीं ,बल्कि 'मथुरा नगरी " में कंस का राज दरबार है । इसमें ओड़िया लिपि में लिखा हुआ है 'कंस राज दरबार मथुरा नगरी । लेकिन कंस का यह राज दरबार उत्तरप्रदेश की  मथुरा नगरी में नहीं ,ओड़िशा के एक छोटे से सीमावर्ती गाँव चिचोली में है । 
    यह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर पर ओड़िशा की भुक्ता ग्राम पंचायत का आश्रित गाँव है । यहां बना  साधारण -सा दिखने वाला यह रंगमंच इसलिए असाधारण है कि हर साल माघ के महीने में एक सप्ताह तक इसके सामने हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती रहती है । यह मौका होता है  एक चलते -फिरते नाटक 'धनु जात्रा ' का ,जिसमें कृष्ण ,देवकी , वासुदेव , नन्द  बाबा , यशोदा , राधा और गोप -गोपिकाओं की भूमिका स्वयं स्थानीय ग्रामीण निभाया करते हैं । बाकायदा कंस का राज दरबार अपनी पूरी भव्यता के साथ सजता है । ग्रामीणों के अनुसार उन्हें इस आयोजन के लिए बाहर से कलाकार बुलाने की जरूरत नहीं होती ।

         सिर्फ कंस की भूमिका के लिए गाँव की ओर से बौद्ध जिले के ग्राम बरिहा पाली के कलाकार श्री गोपाल पण्डा को आमंत्रित किया जाता है ।वह भी इसलिए ,क्योंकि पहले यह भूमिका चिचोली के ही श्री ऋषिकेश भोई निभाया करते थे ,लेकिन  विगत कुछ वर्षों से  वह जिला मुख्यालय बरगढ़ में होने वाली 'धनु जात्रा ' में कंस बन रहे हैं । उल्लेखनीय है कि चलित नाटक के रूप में ओड़िशा के बरगढ़ की ' धनु जात्रा ' विश्व प्रसिद्ध है । इसके लिए कलाकारों का चयन जिला प्रशासन द्वारा  बाकायदा इंटरव्यू के जरिए किया जाता है । चिचोली के ऋषिकेश भोई का चयन भी बरगढ़ की धनु जात्रा में कंस की भूमिका के लिए इंटरव्यू के जरिए हुआ है ।
      बहरहाल ,हम बात कर रहे हैं चिचोली की 'धनु जात्रा' के बारे में । उस दिन 'कंस राज दरबार मथुरा नगरी " लिखे हुए इस रंगमंच को देखकर मैंने  जब उत्सुकता वश वहाँ कुछ पल के लिए रुककर ग्रामीणों से चर्चा की , तो इस प्रकार की  कई दिलचस्प बातें सामने आई ।  ग्रामीण परिवेश में चूना बनाने की की एक छोटी -सी भट्टी चलाने वाले ,पेशे से  लुहार श्री अशोक कुमार गुरु और एक स्थानीय नौजवान श्री नुनु साव ने बताया कि गाँव वालों की अपनी धनु जात्रा समिति है ।  विगत पच्चीस वर्षो से हर साल माघ के   महीने में उनकी समिति इस चलित नाटक का आयोजन कर रही है।  उन्होंने दावा किया कि जिला मुख्यालय  बरगढ़ की 'धनु जात्रा ' के बाद उनका आयोजन पूरे इलाके में दूसरे नम्बर पर माना जाता है । सीमावर्ती होने के कारण छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सरिया ,बरमकेला और उधर जांजगीर जिले के शिवरीनारायण क्षेत्र से भी लोग इस चलित नाटक को देखने चिचोली आते हैं ।एक सप्ताह तक गाँव में काफी रौनक और चहल -पहल बनी रहती है । पूरा गाँव एक सजीव रंगमंच बन जाता है ।
  उन्होंने बताया  कि कृष्ण जी की बाल लीलाओं में कृष्ण और  गोप -गोपिकाओं की भूमिका स्थानीय  बालक -बालिकाओं द्वारा  निभायी जाती  है । कृष्ण  द्वारा ग्वालिनों की मटकी फोड़ने का अभिनय काफी रोचक होता है ।कुछ स्त्री पात्रों का अभिनय पुरुष भी कर लेते हैं ।गाँव के अलग -अलग हिस्सों को  मथुरा ,वृंदावन और द्वारिका  के रूप  बाँट लिया जाता है । यमुना नदी के प्रतीक के रूप में  ग्रामीणों ने पास ही एक छोटा -सा स्विमिंग पुल जैसा बनाया है । उसके इस पार को  मथुरा और उस पार को वृंदावन मान लिया जाता है । हाथी और ऊँट भी इस धनु जात्रा में भूमिका अदा करते हैं ।
      समिति द्वारा इसके लिए इलाहाबाद (उत्तरप्रदेश) के पेरुआँ पहाड़ नामक गाँव  से एक हाथी और चार ऊँट किराए पर लाए जाते  हैं ।   चिचोली के  अलावा इस इलाके में लेलहेर और नुआगढ़ में भी वहाँ की समितियों द्वारा "धनु जात्रा 'का आयोजन किया जाता है । सबसे पहले जिला मुख्यालय बरगढ़ की 'धनु जात्रा 'होती है ।फिर इन गाँवों की धनु जात्रा समितियों के आवेदन पर जिला प्रशासन द्वारा इन्हें अलग -अलग तारीखें दी जाती हैं ,ताकि हर आयोजन सुव्यस्थित रूप से हो सके ।
    पौराणिक कथाओं के जानकार पण्डितों के अनुसार  कृष्ण जी माघ के महीने में गोकुल से मथुरा गए थे ।  कृष्ण जी का वध करवाने के लिए कंस ने  धेनुकासुर और वकासुर जैसे कई राक्षसों को गोकुल भेजा था ,लेकिन वो सब उनके हाथों मारे गए । इस पर कंस ने कृष्ण को मथुरा लाने अक्रूर को गोकुल भेजा । मथुरा में कंस ने कृष्ण के लिए मल्लयुद्ध का आयोजन किया ,जहाँ  कृष्णजी  ने कंस का वध कर दिया । माघ के महीने में  गोकुल से श्रीकृष्ण की मथुरा यात्रा की स्मृति में धनु जात्रा का आयोजन किया जाता है ।
                           --  स्वराज करुण

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