-- स्वराज करुण
तकरीबन हर शाम पहाड़ी से उतरकर अपने कुनबे के साथ इस मन्दिर में आने वाले इन 'जामवन्त ' महोदय का नाम पुजारी जी ने 'राजा' रखा है । गर्मी के इस मौसम में 'राजा साहब ' को पके आम के मीठे स्वाद वाला शीतल पेय (कोल्ड -ड्रिंक ) पीना बहुत पसंद है । इनकी एक बहन भी है ,जिसे पुजारी जी 'रानी 'कहकर बुलाते हैं । दोनों भाई - बहनों के अलावा जामवन्तों ( जंगली भालुओं ) का एक परिवार और है ,जिसमें दो नन्हें शावक भी हैं ।
आप ये दिलचस्प नज़ारा देख सकते हैं - छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर ग्राम पटेवा के नज़दीक मुंगई माता के मन्दिर परिसर में । उस दिन उधर से निकलते हुए रात्रि करीब 7.15 बजे मुझे भी इन जामवन्तों के दर्शन हुए । मैंने बाजू के पान ठेले से चालीस रुपए का एक बोतल आम रस वाला कोल्ड - ड्रिंक खरीदा और पुजारीजी ने उसे राजा साहब के सामने पेश किया । फिर तो 'राजा साहब ' बड़े मजे से पूरी बोतल देखते ही देखते खाली कर गए । मेरे मोबाइल फोन की आँखों ने इस दृश्य को तत्काल कैद कर लिया ।
यह स्थान मुम्बई -कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक -53 के किनारे एक पहाड़ी के नीचे है । आम तौर पर जामवन्तों का यह कुनबा हर शाम मन्दिर में संध्या -आरती के समय पूजा की घण्टियों की आवाज़ सुनते ही पहाड़ी से उतर कर वहाँ पहुँच जाता है । राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरने वाले वाहन चालक और यात्री बड़ी उत्सुकता से गाड़ी रोककर इन जामवन्तों को न सिर्फ़ देखते हैं ,बल्कि काँटेदार सुरक्षा घेरे के इस पार से उन्हें बिस्किट आदि भी खिलाते हैं । नारियल और नमकीन 'नड्डा ' भी ये बड़े चाव से खाते हैं , आम के मीठे स्वाद और सुगंध वाला कोल्ड - ड्रिंक भी मजे से पी लेते हैं लेकिन केला और सेब जैसे फल इन्हें पसन्द नहीं ।
कुछ साल पहले वन विभाग ने दर्शनार्थियों और इन जामवन्तों की सुरक्षा के लिए भी लोहे के काँटेदार तारों का घेरा डाल दिया था ,लेकिन संध्या उपासना के समय एक-दो जामवन्त सुरक्षा घेरे के आजू - बाजू से निकलकर मन्दिर के दरवाजे तक और कई बार गर्भगृह के सामने पहुँच जाते हैं । पुजारी श्री टिकेश्वर दास वैष्णव ने बताया कि दीये के लिए रखे तेल और मन्दिर के प्रसाद को ये बड़े चाव से खाते हैं । पुजारी जी ने ये भी बताया कि 'राजा ' तो कई बार तेल को डिब्बे सहित ले जाता है । ये जामवन्त किसी भी मनुष्य को नुकसान नहीं पहुँचाते । हाँ ,अगर कोई इन्हें छेड़े तो शायद ये उनको छोड़ें भी न !
मुंगई माता के मन्दिर से लगभग तीस -पैंतीस किलोमीटर पर महासमुंद जिले के ग्राम घुंचापाली ( तहसील -बागबाहरा ) में एक पहाड़ी पर चण्डी माता का मन्दिर है । वहाँ भी जामवन्तों का एक कुनबा पहाड़ी गुफ़ा में रहता है । इस कुनबे के सदस्य जामवन्त भी शाम को पूजा के समय मन्दिर प्रांगण में पहुँच जाते हैं । भक्तगण बड़ी श्रद्धा से उन्हें प्रसाद खिलाते हैं । मेरे एक मित्र ने बताया कि चण्डी मन्दिर की पहाड़ी में रहने वाले इन जामवन्तों को भी आम रस के स्वाद वाला शीतल पेय बहुत पसंद है ।मेरे मित्र का एक मित्र तो उनकी गुफ़ा तक पहुँचकर उन्हें इस प्रकार का कोल्ड -ड्रिंक पिलाते हुए मन्दिर परिसर तक ले आता है ।
- स्वराज करुण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-05-2019) को "लुटा हुआ ये शहर है" (चर्चा अंक- 3334) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी !
ReplyDelete