-स्वराज करुण
भ्रांतियों की भीड़ में
खो गया अपना वतन ,
कल मिला था गाँव में
रो गया अपना वतन ।
कह रहा था जा रहा हूँ
ढूंढने रोजगार कोई ,
परिवार को उम्मीद के
काँधे ढो गया वतन !
छोड़कर खलिहान -खेत ,
तालाब और जंगल - पहाड़ ,
पत्थरों की इक नदी -सा
हो गया अपना वतन ।
आ गया है इस शहर में
चाहतों के बोझ संग ,
ओढ़कर फुटपाथ अब
सो गया अपना वतन !
-स्वराज करुण
भ्रांतियों की भीड़ में
खो गया अपना वतन ,
कल मिला था गाँव में
रो गया अपना वतन ।
कह रहा था जा रहा हूँ
ढूंढने रोजगार कोई ,
परिवार को उम्मीद के
काँधे ढो गया वतन !
छोड़कर खलिहान -खेत ,
तालाब और जंगल - पहाड़ ,
पत्थरों की इक नदी -सा
हो गया अपना वतन ।
आ गया है इस शहर में
चाहतों के बोझ संग ,
ओढ़कर फुटपाथ अब
सो गया अपना वतन !
-स्वराज करुण
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