Thursday, May 2, 2019

(ग़ज़ल ) कल मिला था गाँव में ...!

                         -स्वराज करुण 
भ्रांतियों की भीड़ में
खो गया अपना वतन ,
कल मिला था गाँव में
रो गया अपना वतन ।
कह रहा था जा रहा हूँ
ढूंढने रोजगार कोई ,
परिवार को  उम्मीद के
काँधे  ढो गया  वतन !
छोड़कर खलिहान -खेत ,
तालाब और जंगल - पहाड़ ,
पत्थरों की इक  नदी -सा
हो गया अपना वतन ।
आ गया है इस शहर में
चाहतों के बोझ संग ,
ओढ़कर फुटपाथ अब
सो गया अपना वतन !
              -स्वराज करुण
   

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