आधुनिक 'संतों' को हमेशा 'सीकरी' में ही डोलते -मंडराते देखा जाता है ।
नये जमाने की ' सीकरियों ' में हमेशा उनका ही जमावड़ा बना रहता है , जबकि
मुग़ल सम्राट अकबर ने कवि कुंभनदास को जब अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी (सन
1570-1585 ईस्वी ) में आमंत्रित किया , तो कवि की आत्मा कह उठी-
''संतन को कहा सीकरी सो काम ,
आवत जात पनहियाँ टूटी ,
बिसरि गयो हरि नाम !
जिनको मुख देखे दुःख उपजत ,
तिनको करिबे परी सलाम !!''
''संतन को कहा सीकरी सो काम ,
आवत जात पनहियाँ टूटी ,
बिसरि गयो हरि नाम !
जिनको मुख देखे दुःख उपजत ,
तिनको करिबे परी सलाम !!''
भावार्थ यह कि संतों को 'सीकरी' से यानी राजधानी से भला क्या काम ? वहां
आते-जाते ' पनहियाँ ' यानी चप्पलें टूट गयी और मैं हरि का नाम लेना भूल गया ! वहां तो जिन लोगों
का मुखड़ा देखकर दुःख उपजने लगता है , हमें उनको भी सलाम करना पड़ता है !
कुंभनदास हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं .
वह धन-दौलत और मान-सम्मान की लालसा से कोसों दूर रहते थे .
यह बात लगभग सवा चार सौ साल पहले की है ,जब वह 'संतन को कहा सीकरी सो काम ' कहकर समाज को यह संदेश देना चाहते थे कि फतेहपुर सीकरी यानी तत्कालीन शासन की राजधानी से संतों को भला क्या लेना-देना ,जहां ऐसे-ऐसे लोग रहते हैं ,जिनका चेहरा देखकर भी दुःख उत्पन्न होता है और जिन्हें सलाम करने के लिए हमें मजबूर होना पड़ता है !
क्या आधुनिक युग के 'संतों' में है हिम्मत ,जो कुंभनदास की तरह सच कह सकें ? वर्तमान नस्ल के 'संतन' को तो हर प्रकार की सुख-सुविधा के लिए 'सीकरी' के ही चक्कर लगाते देखा जा सकता है ! साहित्य, कला , संस्कृति और सार्वजनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों के आधुनिक संत क्या इसका जवाब देंगे ?
-स्वराज्य करुण
यह बात लगभग सवा चार सौ साल पहले की है ,जब वह 'संतन को कहा सीकरी सो काम ' कहकर समाज को यह संदेश देना चाहते थे कि फतेहपुर सीकरी यानी तत्कालीन शासन की राजधानी से संतों को भला क्या लेना-देना ,जहां ऐसे-ऐसे लोग रहते हैं ,जिनका चेहरा देखकर भी दुःख उत्पन्न होता है और जिन्हें सलाम करने के लिए हमें मजबूर होना पड़ता है !
क्या आधुनिक युग के 'संतों' में है हिम्मत ,जो कुंभनदास की तरह सच कह सकें ? वर्तमान नस्ल के 'संतन' को तो हर प्रकार की सुख-सुविधा के लिए 'सीकरी' के ही चक्कर लगाते देखा जा सकता है ! साहित्य, कला , संस्कृति और सार्वजनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों के आधुनिक संत क्या इसका जवाब देंगे ?
-स्वराज्य करुण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-01-2016) को "2016 की मेरी पहली चर्चा" (चर्चा अंक-2209) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'