देख रहे भोली आँखों से दुनिया को सीधे-सादे लोग,
समझ न पाएं इस फरेबी महफ़िल के इरादे लोग !
नकाबपोशों के नगर में नक्कालों का स्वागत खूब ,
दहशत में जाने कहाँ गए इस बस्ती के आधे लोग !
सच्चाई की बात भी करना पागलपन कहलाता है ,
झूठी कसमों के संग करते सौ-सौ झूठे वादे लोग !
उल्टी- सीधी चालें चलती चालबाज की माया है ,
नासमझी में बन जाते हैं सियासतों के प्यादे लोग !
हीरे-मोती के चक्कर में चीर रहे धरती का सीना .
खेती के रिवाज़ को चाहे पल भर में गिरा दें लोग !
उनकी पुस्तक में न जाने दिल वालों का देश कहाँ ,
शायद असली के बदले दिल नकली दिलवा दें लोग !
वक्त आ गया अब चलने का इस मुसाफिरखाने से ,
आने वाले हैं यहाँ भी हुक्कामों के शहजादे लोग !
-- स्वराज्य करुण
सच्चाई की बात भी करना पागलपन कहलाता है ,
ReplyDeleteझूठी कसमों के संग करते सौ-सौ झूठे वादे लोग !..
बहुत ही उम्दा लाजवाब शेर इस ग़ज़ल का ...
अच्छी गजल ॥
ReplyDeleteलोगों का क्या ठिकाना कब क्या करें !
ReplyDeleteयशोदा जी ! आपको बहुत-बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteदिगम्बर जी ,नीरज जी ,सुमन जी और प्रतिभा जी ! आप सबकी उत्साहजनक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार .
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteअति सुंदर रचना---- बधाई
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in