-स्वराज्य करुण
भीड़-भाड़ , शोरगुल , नारों का मौसम,
आ गया फिर चुनावी बहारों का मौसम !
मंचों में थिरक रहे सिंहासन के सपने ,
आ गया लो मौसमी यारों का मौसम !
मोहक मुस्कान लिये चेहरों का सैलाब है ,
वादों की नदियों के किनारों का मौसम !
कातिल भी आज हमदर्द नज़र आ रहे ,
मुखौटों से सजी -धजी दीवारों का मौसम !
दिन में हर कोई अपने को सूरज कहता है ,
हर रात यहाँ चुनावी सितारों का मौसम !
कहते हैं अपने आप को हम हैं देश-रक्षक ,
लगता है ये नकली पहरेदारों का मौसम !
चैनलों के नलों से बयानों की बौछार है ,
भाषणों की थाल सजे अखबारों का मौसम !
-स्वराज्य करुण
आपकी लिखी रचना रविवार 13 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
हार्दिक आभार .
ReplyDeleteचैनलों के नलों से बयानों की बौछार है ,
ReplyDeleteभाषणों की थाल सजे अखबारों का मौसम !
very right.
बहुत सुन्दर.
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