दोस्तों ! आज तीन दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी के सत्ताईस साल पूरे हो गए हैं . औद्योगिक विकास का ऐसा खतरनाक जोखिम हमने उठाया ,जो विनाश में तब्दील हुआ और जिसका जान-लेवा खामियाजा हमारे हज़ारों बेगुनाह ,मासूम बच्चों, माताओं-बहनों और भाइयों को भुगतना पड़ा.हज़ारों लोग मौत का शिकार हो गए ,उन्हें हर साल उनकी बरसी पर अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि देने के सिवाय हमने और किया भी क्या है ? हत्यारी यूनियन कार्बाइड कम्पनी के मालिक को लाख कोशिशों के बावजूद हम भारत नहीं ला सके वह सात समन्दर पार अमीरों के मुल्क अमेरिका में बैठा मुस्कुरा रहा होगा यह सोच कर कि इन भोले भाले भारतीयों ने हमारा क्या बिगाड़ लिया ? बहरहाल दुनिया के सबसे बड़े इस भयानक औद्योगिक हादसे से हमें सबक लेने की ज़रूरत है.
दिल पर हाथ रख कर कहना दोस्तों , क्या हमने कोई सबक लिया है ? शायद नहीं ! अगर हम सबक लेते ,तो शायद पिछले सत्ताईस बरसों में भारत के हमारे अधिकाँश शहरों में चारों ओर ज़हरीला धुंआ उगलती दानवाकार फैक्ट्रियां क्यों खड़ी होतीं ? अगर हम सबक लेते तो आज सत्ताईस बरस बाद भी औद्योगिक प्रदूषण का राक्षस हमारे गाँवों और शहरों पर तरह-तरह के कहर क्यों बरसाता ? फैक्ट्रियों में औद्योगिक सुरक्षा को लेकर आज भी इतनी लापरवाही क्यों होती ? अगर कोई सीख हमने ली होती , तो आज एक या दो प्रतिशत नहीं , बल्कि पूरे इक्यावन प्रतिशत की साझेदारी में देश का खुदरा व्यापार विदेशी निवेशकों को सौंपने का आत्मघाती और राष्ट्रघाती फैसला हम क्यों करते? अगर कोई सबक हमने लिया होता ,तो इंसान को प्राण वायु (ऑक्सीजन )देने वाले हरे-भरे जंगलों को उजाड़ कर और सबके पेट की भूख मिटाने वाले अन्नदाता के खेतों को बर्बाद कर उनमें लोहे- लक्कड़ के बेजान कारखाने क्यों खड़े करते ? क्या अपनी भारत भूमि में ज़िंदा रहने के लिए हम भारतीयों को चावल,गेहूं और दाल-दलहन के बदले अब लोहे के बुरादे से अपना पेट भरना होगा ?
बहरहाल , आओ , भोपाल गैस त्रासदी की बरसी पर आज हम अपने इन तमाम अपराधों का पश्चाताप करते हुए अपने उन हज़ारों निरपराध दिवंगतों को एक बार फिर याद करें , जिन्हें ज़हरीले कीटनाशक बनाने वाली कम्पनी ने अपनी आपराधिक लापरवाही से मौत के मुँह में ढकेल दिया . क्या यह सच नहीं है कि हमने अपने इन मासूम परिंदों को खूंखार दरिंदों के हाथों को सौंप दिया था ? उन नादान भोले परिंदों की आँखों में भी उस रात अगले दिन के लिए कई हसीन सपने रहे होंगे , जो कभी पूरे नहीं हो पाए ., क्योंकि अगला दिन उनके लिए कभी नहीं आया . यूनियन कार्बाइड ने उनके मासूम सपनों को भी हमेशा के लिए खामोश कर दिया . आज मैं उन्हीं खामोश और बेजुबान सपनों को अपनी इन पंक्तियों के साथ याद करना चाहूँगा -
चूनर की तरह कभी लगते थे जो ,
देखते ही देखते कफन हुए सपने ,
रात के बदहवास अँधेरे में कैद ,
सूरज की रौशनी में दफन हुए सपने !
मेले में छूट गए सारे हमसफर ,
थम गया जिंदगी का काफिला,
साँसों के हरे-भरे पौधे भी सूख गए ,
अचानक वीरान चमन हुए सपने !
आँखों ही आँखों में मीठी नींद लिए ,
नयी सुबह आएगी कोई उम्मीद लिए ,
दिल में आस लिए हो गए खामोश ,
प्रतीक्षा के पथरीले नयन हुए सपने !
- स्वराज्य करुण
(छाया चित्र : google से साभार )
गेस पीड़ितों को श्रद्धांजलि. एक औपचारिकता . इतने में ही सिमट गए हैं.
ReplyDeleteबड़ा दुखदायी हादसा था, याद करके ही दुख होता है। विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि । आप के ब्लोग की चर्चा गर्भनाल पत्रिका मे भी है उसका लिंक यहाँ है …………http://redrose-vandana.blogspot.com
ReplyDeleteआपसे निवेदन है, कृपया इस पोस्ट पर अ
ReplyDeleteआकर अपनी राय दें -
http://cartoondhamaka.blogspot.com/2011/12/blog-post_420.html#links
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
काफी दुखद घटना थी ,विनम्र श्रधांजलि
ReplyDeleteमार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
ReplyDeleteचूनर का कफन हो जाना, दर्दनाक.
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