ऊंचे महल अटारी हों ,
ओहदा ऊंचा सरकारी हो,
चमचमाती गाड़ी हो,
कितना भी मोटा हो वेतन
फिर भी नही भरता है मन /
काम कराना हो तो लेंगे
टेबल के नीचे से कमीशन /
पूछो-पूछो कौन हैं वो ?
तबीयत उनकी रंगीन बहुत
जनता है गमगीन बहुत
शिकायत है संगीन बहुत ,
फिर भी मिलता जाए उनको
कदम -दर-कदम प्रमोशन /
पूछो -पूछो कौन हैं वो ?
बीत गए राजे-रजवाड़े ,
अब हैं उनके बुलंद सितारे
हरियाली के जो हत्यारे ,
अरबों-खरबों के वारे-न्यारे
खेत छीन कर हंटर फटकारें ,
किसान भटकते द्वारे-द्वारे,
मजदूर इस जीवन से हारे ,
फिर भी उनके महलों में
गीत मचलते कजरारे -कजरारे /
पूछो-पूछो कौन हैं वो ?
स्वराज्य करुण
ये लालफ़ीते वाले है,मंत्रियों के साले है ।
ReplyDeleteये सर-ए-आम करते,बड़े-बड़े घोटाले हैं॥
मारक कविता है"बोफ़ार्स" जैसी।
पूछने की क्या ज़रूरत है ..सबको पता है ...सटीक अभ्व्यक्ति
ReplyDeletelajawab aur satik karara vyang
ReplyDeletela jabab
ReplyDeleteआपकी तमन्ना पूरी हो!
ReplyDelete--
सुन्दर रचना है जी!
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चौमासे में श्याम घटा जब आसमान पर छाती है।
आजादी के उत्सव की वो मुझको याद दिलाती है।।....
आपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी है! सूचनार्थ निवेदन है!
ReplyDeleteआप सबकी सदभावनापूर्ण सहृदय टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार.
ReplyDeleteक्या पूछे ,सब तो जानते है! भ्रष्टाचार पर और भी धारदार हथियार की आवश्यकता है .आपने इस पर कलम उठाई इसके लिए धन्यवाद !!!
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती हुई रचना
ReplyDeletesarthak abhivaykti...
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.