Tuesday, October 12, 2010

संस्कृत भाषा पर जर्मन हमले का अंदेशा ?

                       अखबार में खबर है कि भारत सरकार ने केन्द्रीय विद्यालयों को संस्कृत के स्थान पर जर्मन भाषा पढ़ने के इच्छुक बच्चों की सूची तैयार करने का आदेश दिया है . खबर पर सच्चाई की मुहर एक केन्द्रीय विद्यालय के उप-प्राचार्य के उस वक्तव्य से भी लग जाती है ,जो इसी समाचार के साथ है ,जिसमे उन्होंने बताया है कि उनकेयहाँ केन्द्रीय विद्यालय संगठन का एक परिपत्र आया है कि ऐसे विद्यार्थियों की सूची तैयार की जाए , जो संस्कृत के बदले जर्मन भाषा सीखना चाहते हैं . यह खबर भारतीय भाषाओं को देश की अनमोल धरोहर समझने वाले किसी भी भारतीय को व्यथित और विचलित कर सकती है . विविधता में एकता वाली हमारी संस्कृति में संस्कृत भाषा आज प्रचलन में कम होने के बाद भी समस्त भारतीय भाषाओं की माता के रूप में जन-मानस में मान्यता प्राप्त है. इंसान को तरह-तरह की बीमारियों से बचाने के लिए हजारों वर्षों से जिस आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली का इस्तेमाल हो रहा है , वह स्वयं संस्कृत भाषा के महान ग्रन्थ 'अथर्व वेद ' पर आधारित है. अथर्व वेद का एक उप-वेद है आयुर्वेद .स्वयं आज के आधुनिक आयुर्वेद चिकित्सकों का कहना है कि संस्कृत भाषा को उपेक्षित करने पर इस महान चिकित्सा -पद्धति की पढ़ाई को भी  नुकसान पहुंचेगा .  क्या हम यह भूल जाएं कि महाकवि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' और वेद व्यास रचित 'महाभारत ' जैसे लोकप्रिय महाकाव्य संस्कृत भाषा में है.  कर्म-योगी भगवान श्री कृष्ण ने दुनिया को जिस 'भगवत गीता ' का  ज्ञान  दिया , वह भी संस्कृत में है , समाज को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने वाली पंचतंत्र की कहानियां हमारी इसी मूल्यवान भाषा में है . समय के प्रवाह में , संरक्षण के अभाव  और प्रोत्साहन की कमी के चलते इसका चलन कम हो जाने का मतलब यह तो नहीं होना चाहिए कि कभी इस देश की एक महान भाषा रह चुकी संस्कृत को हम दोयम दर्जे में रखकर अपनी नयी पीढ़ी को उससे विमुख होने के लिए प्रोत्साहित करें !   राष्ट्र-भाषा हिन्दी के साथ-साथ हमारी तमाम भारतीय भाषाओं में हर तरह के ज्ञान-विज्ञान का अनमोल खजाना है , जिसे छोड़ कर आज हम उन अंग्रेजों की भाषा के गुलाम बने हुए हैं , जिन्होंने हमारे देश को लगभग डेढ़ सौ साल तक गुलाम बना कर रखा और आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों पर तरह-तरह के अत्याचार किए .वैसे यह ज़रूर है कि इंसान को अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान अर्जित करना चाहिए , कहते हैं कि देश  की आज़ादी के महान योद्धा और आज़ाद हिंद फौज के सस्थापक नेताजी सुभाष बोस को एक सौ आठ भाषाओं का ज्ञान था.  एक भारतीय होने के नाते  हम अपने दिल पर हाथ रख कर सोचें कि हमे अपने देश के २८ राज्यों में प्रचलित कितनी स्थानीय भाषाओं का सामान्य ज्ञान है  ?जब हम हिन्दी , पंजाबी , गुजराती , मराठी . तमिल, ओड़िया बंगाली , असमिया जैसी अनेकानेक भारतीय भाषाओं में से दो-चार भाषाओं को भी ठीक से समझ और बोल नहीं पाते , तब अपने देश के विद्यालयों में (केन्द्रीय विद्यालयों के सन्दर्भ में )जर्मन भाषा की पढ़ाई करवाने का प्रयास कहाँ तक जायज कहा सकता है ,इस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रुरत है . अंग्रेजों के  जाने के साठ साल बाद भी अंग्रेज़ी का भूत हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है और अब केन्द्रीय विद्यालयों के जरिए जर्मन भाषा की घुसपैठ होने जा रही है .हमारी संस्कृत भाषा और हमारी भारतीय संस्कृति वैसे भी अंग्रेजियत के हमले से कराह रही है , अब उस पर जर्मन भाषा के हमले का अंदेशा सर उठाने लगा है .विदेशी नागरिकों की घुसपैठ रोकने का तो क़ानून है , यह सबको मालूम है  लेकिन  विदेशी भाषाओं की घुसपैठ रोकने के किसी क़ानून की आपको जानकारी हो  तो मुझे कृपया ज़रूर बताएं , ताकि मेरे सामान्य ज्ञान के छोटे से भण्डार में कुछ इजाफा हो सके .
                                                                                                       स्वराज्य करुण
                                                                                                        १२/१० /२००९ 
                                                                                                              

9 comments:

  1. यह संक्रमण उचित तो नहीं है. संस्कृत की प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए.

    कभी 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें !!

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  2. एक ओर इजराइल अपनी मृत हिब्रू भाषा को जिंदा कर दिया और हम अपनी ही नहीं दुनिया की सबसे पुरानी भाषा को मारने पर तुले हुए हैं . ऐसे भी अपनी सरकार से कोई भी सही कदम की अपेक्षा करना बेकार है
    dabirnews.blogspot.com

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  3. ये संस्कृत का अपमान है..

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  4. संस्कृत भाषा ही नहीं संस्कृत विद्यालय भी समाप्त हो रहे हैं। संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या कम हुई, विद्यालयों में संस्कृत के अध्यापक वर्ष वार कम होते गए, नई नियुक्तियाँ नहीं हुईं, छात्र कम और कम होते गए..सरकारी रूख को देखते हुए स्कून प्रबंधन ने भी मुंह फेर लिया..परिणाम यह कि अभी विद्यालय बिना छात्र के हैं शिघ्र ही बिना अध्यापक के भी हो जाएंगे..जिस भाषा को कोई पढ़ने वाला न हो न पढाने वाला वह भाषा तो समाप्त होनी ही है।
    ...दुःखद व चिंताजनक हालात बयान करती पोस्ट।

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  5. बहुत अफसोस जनक बात है , इसका कड़ाई से विरोध किया जायेगा .संस्कृत हमारी संस्कृति का परिचायक है ,संस्कृति पर पाश्चात्य हमला बर्दास्त नहीं होगा .ध्यान आकृष्ट करने के लिए आभार .

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  6. कोई भी भाषा सीखना गलत नही, लेकिन यह तरीका गलत हे ओर इस से हमारी संस्कृत भाषा का अपमान होता हे, क्योकि उस के बिरोध मे इसे लाया जा रहा हे, वेसे खुन पीने को अग्रेजी क्या कम हे, पता नही हमारे नेताओ का दिमाग कहां घास चर रहा हे, कल को यह बोलेगे कि बच्चो के बाप काले हे, इन की जगह गोरे बाप ले आओ, हम सब को बिरोध करना चाहिये

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  7. मामला, जर्मन मैक्‍स मूलर के संस्‍कृत से आदान-प्रदान का तो नहीं.

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