बाजीगरों की
इस मायावी दुनिया में
नहीं आती हमें शब्दों की बाजीगरी !
इसीलिए तो बार-बार
मान लेते हैं हम अपनी हार !
बाजीगरों को मालूम है
शब्दों की कलाबाजी ,
कैसे भरी जाती है
छल-कपट के पंखों से
कामयाबी की ऊंची उड़ान ,
हसीन सपने दिखाकर
कैसे हथियाए जाते हैं
किसी भोले इंसान के
घरौन्दे, खेत और खलिहान !
घरौन्दे, खेत और खलिहान !
देखते ही देखते जहां
गायब हो जाती है हरियाली
और शान से खड़े हो जाते हैं
कांक्रीट के बेजान जंगल
सितारा होटलों और
शॉपिंग मॉलों के पहाड़ !
कल तक अपने खेतों में
स्वाभिमान के साथ
हल चलाने वाला किसान
आज उस शॉपिंग माल
या किसी पांच सितारा होटल की
चिकनी - चुपड़ी फर्श पर
दो वक्त की रोटी के लिए
लगाता है झाडू-पोंछा
क्योंकि वह शब्दों का
नहीं है कोई छलिया बाजीगर !
कोई माने या न माने ,
किसी को भले ही न हो विश्वास
बाजीगर अपने मायावी शब्दों से
साबित कर देते हैं
यही तो है देश का विकास !
\ -स्वराज करुण
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रूपचंद शास्त्री जी !
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