कहीं रिमझिम तो
कहीं घनघोर,
बुझा कर धरती की प्यास
लौट रहे अपने
घर की ओर -
यादों को साथ लिए
भादो के साथ -
मानसून के बादल !
देख कर' भूमि ' का
हरा-भरा आंचल
लगा कि सार्थक हुई
अब उनकी भूमिका ,
मेहनत के रंगों में
तल्लीन हुई तूलिका !
पंछियों की चहक से
झरने लगा संगीत
हवाएं देने लगीं
ताल में तालियाँ
धान के पौधों में
आने लगी बालियाँ !
आकाश की आँखों में
आँज कर काजल
चौमास में बरसाया
खूब अमृत जल ,
आएगी सुनहली
जब नई फसल ,
मानसून को लगेगा
मेहनत हुई सफल !
- स्वराज्य करुण
(छाया चित्र : google के सौजन्य से )
खुबसूरत रचना.....
ReplyDeleteवाह ..बहुत ही खुबसूरत वर्णन
ReplyDeleteबहुत ही सूंदर पर एक लाईन और जोड़ देते आप कि भाई बादल अब जल्दी निकल और बरसेगा तो पनिया दुकाल आ जायेगा
ReplyDelete