पिछले तीन-चार दिनों से प्रदेश में व्यापक रूप से लगातार बारिश हो रही है. नदी-नाले उफान पर हैं. कुछ जिलों में बाढ़ के हालात भी देखे जा रहे हैं .यह मौसम का उतार-चढाव है . मिजाज़ मौसम का कब कैसा हो , कहा नहीं जा सकता . अभी जबकि ये पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं , अगले कुछ घंटों या कुछ दिनों में बारिश के हालात क्या होंगे , कुछ कहना मुश्किल है. हो सकता है द्रोणिका का प्रभाव कम होने पर बारिश की रफ्तार भी धीमी हो जाए ताकि मौसम खुलने पर जन-जीवन सामान्य ढर्रे पर लौट सके ,लेकिन अभी तो बादलों का बरसना जारी है. भादों में बादल बरसों बाद इतना बरस रहे हैं . किसानों का कहना है कि इससे जहां धान की फसल को फायदा होगा , वहीं दलहन-तिलहन की खेती प्रभावित होगी,लेकिन लगातार बारिश जारी रहने पर धान की फसल भी खराब हो सकती है. शहरों में निचली बस्तियों में बारिश का पानी घरों में घुसने पर लोग परेशान हो रहे हैं .लगभग सभी शहरों में सड़कों पर पानी बह रहा है ,क्योंकि निकासी की नालियां कचरे ,विशेष रूप से पॉलीथिन की थैलियों से अटी हुई हैं .
मुझे लगता है कि हमारे गाँवों में अति-वर्षा से अगर बाढ़ के हालात बनते हैं, तो उसके लिए कुछ हद तक हम कुदरत को ज़िम्मेदार मान सकते हैं, लेकिन आज की स्थिति में अगर शहरों में ऐसे हालात बनते हैं, तो उसके लिए हम शहरवासी खुद ज़िम्मेदार हैं. हमें किसने कहा कि हम अपने घरों का कूड़ा-करकट उन तमाम नालियों में डालकर उन्हें अवरुद्ध कर दें , जिनका निर्माण करोड़ों रुपयों की लागत से कराया गया था, और वह सारा खर्च भी टैक्स के रूप में हमी लोगों ने दिया था . सड़कों के किनारे अपनी दुकान और अपने मकान की सरहद को चोरी-चोरी चुपके-चुपके बढाते हुए हम नालियों पर भी कब्जा जमा लेते हैं .ऐसे में अगर नालियां जाम हो जाएँ तो, पानी की निकासी कहाँ से होगी ? फिर तो कुछ ही मिनटों की बारिश में शहर की सड़कों में बाढ़ का नजारा दिखने लगेगा. यह ज़रूर है कि हमारी इस लापरवाही को भी नगर-पालिकाओं के अधिकारी -कर्मचारी लापरवाही से या फिर 'सहयोग-शुल्क' लेकर नज़रंदाज़ कर जाते हैं. शहरों के नजदीक प्रवाहित नदियों में दुनिया भर का प्रदूषण हम लोग या हमारे ही लोग फैला रहे हैं ,जिससे नदियाँ सिमटने लगी हैं .फिर बारिश में शहर की सड़कों का पानी आखिर जाए तो जाए कहाँ ? उसे निकलने का रास्ता नहीं मिलेगा तो वह बस्तियों में ही फैलेगा और घरों में घुसेगा . इस प्रकार शहरों में बरसात में आने वाली बाढ़ वास्तव में कुदरती नहीं ,बल्कि मानव-निर्मित होती हैं .
एक बात और ! जीवन के लिए पानी अनमोल है. यह जो बारिश हो रही है, वह कुदरत से हमें मुफ्त मिल रहा एक ऐसा अमृत है, जिसे पाने के लिए देवी - देवता भी तरसते होंगे . यह अमृत कहीं घर की छत से,तो कहीं सड़कों से बेकार बह जा रहा है, इसे समुचित जल-प्रबंधन के ज़रिये रोका जाना चाहिए ,ताकि वह सूखे मौसमों में भी भू-जल स्तर को संतुलित रख सके .रेन-वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक इसमें काफी मददगार हो सकती है. कुछ नगरीय निकायों में यह नियम भी लागू किया गया है कि उन्हीं भवनों और मकानों के नक्शे पास होंगें ,जिनमे रेन-वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान होगा,. नगरीय-निकायों के अधिकारी ऐसे नक्शों को पास तो कर देते हैं ,लेकिन बाद में उनके पास मौके पर जाने और इसकी तस्दीक करने की फुर्सत नहीं होती कि वास्तव में नक्शे के अनुरूप काम हुआ भी है कि नहीं . अगर प्रत्येक मकान की छत से बारिश के पानी को एकत्रित कर हैंड-पम्पों के आस-पास कम लागत की एक विशेष तकनीक से ज़मीन के भीतर भेज दिया जाए ,तो गर्मियों में ऐसे हैंड-पम्प कभी नहीं सूखते . लेकिन हम लोगों ने ठान रखा है कि इस तरफ देखना भी नहीं है, क्योंकि ऐसे कामों के लिए हमें फुर्सत नहीं है.
हम पहाड़ी-ढलानों से बारिश के बेकार बह जाने वाले पानी को रोकने के लिए भी गम्भीर नहीं है, जबकि ऐसा करके अन्ना हजारे ने अपने गाँव रालेगांव -सिद्धि को प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंचा दिया .जल-ग्रहण क्षेत्र विकास या वाटर-शेड की उनकी इस तकनीक को सरकारी योजना का भी अंग बनाया जा चुका है . जी हाँ ! ये वही अन्ना हजारे हैं .-,जन-लोकपाल वाले चौहत्तर साल के युवा , जिनके सामने कथित युवा -ह्रदय सम्राटों की चमक भी अब बहुत फीकी हो गयी है.
- स्वराज्य करुण
हाँ जी!
ReplyDeleteसितम्बर की बारिश तो बाढ़ लेकर आती ही है!
क्योंकि दिया भी बुझने से पहले बहुत तेजी से फड़फड़ाता है!
Betartib base log aur prakriti se chhedchhad karne valon ko prakriti hi saja deti hai.
ReplyDeleteहमें इन उपयोगी तकनीकी पर तुरंत ध्यान देना चाहिए ....
ReplyDeleteअब पानी की खेती भी होने लगी है पहाड़ों मे जल सोखने के गढ्ढे बनाये जाते हैं जिससे इन पहाड़ो से साल भर जल छोड़ने वाली धरायें पुनः विकसित हो सके
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