कुछ लोग बुद्धिमान होने के कारण पुरस्कृत होते है तो कुछ लोग पुरस्कृत होने के बाद बुद्धिमान बनते हैं और अपनी बुद्धि से दुनिया को बुद्धू बनाने की कोशिश करने लग जाते हैं .वह घुंघराले बालों वाली महिला भी इस दूसरे किस्म के लोगों की श्रेणी में आती है .
वह एक लेखिका है जो भारतीय होकर भी अंग्रेजी भाषा में ही लिखती है और कुछ साल पहले किसी दूसरे देश में बुकर , शूकर पुरस्कार से सम्मानित होकर वतन लौटने के बाद यहाँ अपने ज्ञान की रसोई में बुद्धि की बघार लगाने लगी है और देशवासियों को बुद्धू समझ कर मीडिया के सहारे ज्ञान (?) बाँटने की कोशिश कर रही है. बुकर, शूकर पुरस्कार के नशे में उसकी बुद्धि सातवें आकाश को छूने लगी है. उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि जनता किसके साथ है ! तभी तो उसने कल किसी टेलीविजन चैनल पर यह बयान दिया है कि गांधीवादी समाज सेवी अन्ना हजारे के जन-लोकपाल आंदोलन में राष्ट्र-गीत वन्दे मातरम और राष्ट्र ध्वज तिरंगा साम्प्रदायिकता का प्रतीक थे .अब कौन इस बुद्धिमान महिला से पूछे कि अपनी मातृभूमि की वन्दना के लिए 'वन्देमातरम' गाना और अपने देश के स्वाभिमान का प्रतीक राष्ट्र-ध्वज फहराना क्या अपने ही वतन में अपराध हो गया ?
देश की आज़ादी के लम्बे संघर्ष में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के जिस राष्ट्र गीत ने लाखों-करोड़ों भारतीयों की रगों में राष्ट्रीयता का संचार किया, श्यामलाल पार्षद के गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा -झंडा ऊंचा रहे हमारा ' ने जिस महान ध्वज को हमारी राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ा , राष्ट्र-वन्दना के जिस गीत को अपने दिल की आवाज़ बना कर और जिस पवित्र झंडे को भारत माता के सम्मान का प्रतीक बना कर लाखों देशवासी आज़ादी की लड़ाई में शहीद हो गए, उसे तो केवल तत्कालीन अंग्रेजी-हुकूमत 'साम्प्रदायिक ' और 'खतरनाक' मानती थी और देशभक्तों का दमन करती थी . देशवासियों को धर्म-जाति से परे, जिस गीत और जिस ध्वज ने एकता के सूत्र में जोड़ा और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की ताकत दी , आज वही गीत और वही ध्वज उस भारतीय लेखिका को साम्प्रदायिक लग रहा है. शायद इसलिए कि उसे उन्हीं अंग्रेजों ने बुकर-शूकर पुरस्कार से नवाजा है ,जिन्होंने हमे गुलाम बनाया था .
विदेशी पुरस्कार प्राप्त इस भारतीय लेखिका ने एक कदम और आगे जाकर यह भी बयान दिया है कि दिल्ली में जन-लोकपाल आंदोलन के पहले दौर में मंच की पृष्ठभूमि पर भारत माता की तस्वीर लगी थी जबकि दूसरे चरण में उसकी जगह गांधीजी की तस्वीर ने ले ली . इस तथाकथित बुद्धिमान महिला के अनुसार वहाँ पर यानी मंच पर इस तरह की कई चीजें थीं ,जो बेहद खतरनाक हैं. यानी उसका कहना है कि भारत माता की तस्वीर और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर भी 'खतरनाक ' हैं ! उसे भारत की युवा-शक्ति में ऊर्जा का संचार करने वाले चौहत्तर वर्षीय समाज सेवी अन्ना हजारे की अपार लोकप्रियता भी खटकने लगी है. यही वजह है कि उसने अन्नाजी को 'खाली बर्तन 'कह कर उन्हें अपमानित किया है. शर्मनाक है इस तथा कथित 'महान' लेखिका की बुद्धि का स्तर और शर्मनाक है उसके ज्ञान की गुणवत्ता , जिसके प्रभाव से उसे अपने ही देश को 'मातृभूमि ' कहने और मानने में संकोच होता है , उसे भारत माता और सत्य-अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की तस्वीरें खतरनाक लगने लगती है. शायद अंग्रेजों से पुरस्कार ग्रहण करने वालों को भारत की हर वह चीज खतरनाक लगने लगती है ,जो उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों के स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाती है ऐसे कथित बुद्धिजीवियों को 'भारत माता की जय ' कहने वाले भी खतरनाक नज़र आने लगते हैं . .
.भ्रष्टाचार के खिलाफ सम्पूर्ण राष्ट्र को लगभग एक पखवाड़े तक एकता के बंधन में बाँध लेने वाले अन्ना हजारे इस कथित लेखिका की नज़रों में खाली बर्तन हैं . देश और देशभक्तों का ऐसा अपमान किसी देशद्रोही के अलावा और कौन कर सकता है ?
मुझे तो लगता है कि अन्ना हजारे के इस बेहद कामयाब अहिंसक जन-आंदोलन से उन लोगों को काफी तकलीफ होने लगी है ,जो भारत से भय ,भूख और भ्रष्टाचार को खत्म नहीं होने देना चाहते . इसलिए वे कभी अन्नाजी को अपमानित करते हैं ,तो कभी उनके सहयोगियों को. अगर इसके बावजूद हम नहीं जागे तो एक दिन फिर हमारे वतन पर फिरंगियों को कब्जा करने से भला कौन रोक पाएगा ? हमें समझने की ज़रूरत है कि देश में आज कौन किसके लिए खतरनाक साबित हो रहा है ?
- स्वराज्य करुण
वह एक लेखिका है जो भारतीय होकर भी अंग्रेजी भाषा में ही लिखती है और कुछ साल पहले किसी दूसरे देश में बुकर , शूकर पुरस्कार से सम्मानित होकर वतन लौटने के बाद यहाँ अपने ज्ञान की रसोई में बुद्धि की बघार लगाने लगी है और देशवासियों को बुद्धू समझ कर मीडिया के सहारे ज्ञान (?) बाँटने की कोशिश कर रही है. बुकर, शूकर पुरस्कार के नशे में उसकी बुद्धि सातवें आकाश को छूने लगी है. उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा है कि जनता किसके साथ है ! तभी तो उसने कल किसी टेलीविजन चैनल पर यह बयान दिया है कि गांधीवादी समाज सेवी अन्ना हजारे के जन-लोकपाल आंदोलन में राष्ट्र-गीत वन्दे मातरम और राष्ट्र ध्वज तिरंगा साम्प्रदायिकता का प्रतीक थे .अब कौन इस बुद्धिमान महिला से पूछे कि अपनी मातृभूमि की वन्दना के लिए 'वन्देमातरम' गाना और अपने देश के स्वाभिमान का प्रतीक राष्ट्र-ध्वज फहराना क्या अपने ही वतन में अपराध हो गया ?
देश की आज़ादी के लम्बे संघर्ष में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के जिस राष्ट्र गीत ने लाखों-करोड़ों भारतीयों की रगों में राष्ट्रीयता का संचार किया, श्यामलाल पार्षद के गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा -झंडा ऊंचा रहे हमारा ' ने जिस महान ध्वज को हमारी राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ा , राष्ट्र-वन्दना के जिस गीत को अपने दिल की आवाज़ बना कर और जिस पवित्र झंडे को भारत माता के सम्मान का प्रतीक बना कर लाखों देशवासी आज़ादी की लड़ाई में शहीद हो गए, उसे तो केवल तत्कालीन अंग्रेजी-हुकूमत 'साम्प्रदायिक ' और 'खतरनाक' मानती थी और देशभक्तों का दमन करती थी . देशवासियों को धर्म-जाति से परे, जिस गीत और जिस ध्वज ने एकता के सूत्र में जोड़ा और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की ताकत दी , आज वही गीत और वही ध्वज उस भारतीय लेखिका को साम्प्रदायिक लग रहा है. शायद इसलिए कि उसे उन्हीं अंग्रेजों ने बुकर-शूकर पुरस्कार से नवाजा है ,जिन्होंने हमे गुलाम बनाया था .
विदेशी पुरस्कार प्राप्त इस भारतीय लेखिका ने एक कदम और आगे जाकर यह भी बयान दिया है कि दिल्ली में जन-लोकपाल आंदोलन के पहले दौर में मंच की पृष्ठभूमि पर भारत माता की तस्वीर लगी थी जबकि दूसरे चरण में उसकी जगह गांधीजी की तस्वीर ने ले ली . इस तथाकथित बुद्धिमान महिला के अनुसार वहाँ पर यानी मंच पर इस तरह की कई चीजें थीं ,जो बेहद खतरनाक हैं. यानी उसका कहना है कि भारत माता की तस्वीर और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर भी 'खतरनाक ' हैं ! उसे भारत की युवा-शक्ति में ऊर्जा का संचार करने वाले चौहत्तर वर्षीय समाज सेवी अन्ना हजारे की अपार लोकप्रियता भी खटकने लगी है. यही वजह है कि उसने अन्नाजी को 'खाली बर्तन 'कह कर उन्हें अपमानित किया है. शर्मनाक है इस तथा कथित 'महान' लेखिका की बुद्धि का स्तर और शर्मनाक है उसके ज्ञान की गुणवत्ता , जिसके प्रभाव से उसे अपने ही देश को 'मातृभूमि ' कहने और मानने में संकोच होता है , उसे भारत माता और सत्य-अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की तस्वीरें खतरनाक लगने लगती है. शायद अंग्रेजों से पुरस्कार ग्रहण करने वालों को भारत की हर वह चीज खतरनाक लगने लगती है ,जो उन्हें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों के स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाती है ऐसे कथित बुद्धिजीवियों को 'भारत माता की जय ' कहने वाले भी खतरनाक नज़र आने लगते हैं . .
.भ्रष्टाचार के खिलाफ सम्पूर्ण राष्ट्र को लगभग एक पखवाड़े तक एकता के बंधन में बाँध लेने वाले अन्ना हजारे इस कथित लेखिका की नज़रों में खाली बर्तन हैं . देश और देशभक्तों का ऐसा अपमान किसी देशद्रोही के अलावा और कौन कर सकता है ?
मुझे तो लगता है कि अन्ना हजारे के इस बेहद कामयाब अहिंसक जन-आंदोलन से उन लोगों को काफी तकलीफ होने लगी है ,जो भारत से भय ,भूख और भ्रष्टाचार को खत्म नहीं होने देना चाहते . इसलिए वे कभी अन्नाजी को अपमानित करते हैं ,तो कभी उनके सहयोगियों को. अगर इसके बावजूद हम नहीं जागे तो एक दिन फिर हमारे वतन पर फिरंगियों को कब्जा करने से भला कौन रोक पाएगा ? हमें समझने की ज़रूरत है कि देश में आज कौन किसके लिए खतरनाक साबित हो रहा है ?
- स्वराज्य करुण
सटीक बात कही है ... ऐसा अपमान बस यहीं हो सकता है ..
ReplyDeleteसर इसे दिव्य ज्ञान प्राप्त हो चुका है कि विवादित लेख लिखो और अखबारों और हेडलाईन मे छा जाओ। वैसे गलती हम लोगो की है अच्छा लेखन करने वालों की चर्चा नही करते और ऐसे मक्कारो को फ़ेमस करने मे जुट जाते हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक।
ReplyDeleteगणशोत्सव की शुभकामनाएँ।
सही है .....विरोध में उठी हुई आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है
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