आज विश्व श्रमिक दिवस पर एक ग़ज़ल
इमारतों के आधार की पहचान झोपड़ी है
जान कर भी मजबूर , अनजान झोपड़ी है !
मेहनतकशों को कैसे रौंदा गया हमेशा,
दलितों के दर्द का ये प्रमाण झोपड़ी है !
बेक़सूर फिर भी है छल-कपट का शिकार,
चालाक ये महल और नादान झोपड़ी है !
पकती है फसल जिसके पसीने की महक से ,
फैक्टरी की हलचलों का प्राण झोपड़ी है !
हर शाम लौटता है उम्मीदों के दीप लेकर,
मिलती अंधेरों में सुनसान झोपड़ी है !
दिखने में लगे हैवान सी हर एक हवेली ,
हैवानियत के इस दौर में इंसान झोपड़ी है !
ज़माना है जालिमों का ,जीने भी नहीं देंगे ,
हर पल है यहाँ खतरा ,हैरान झोपड़ी है !
है चाँद अगर महबूब की सूरत ,हुआ करे,
रोटी की रौशनी के लिए परेशान झोपड़ी है !
-- स्वराज्य करुण
बहुत खूबसूरती से लिखी है गरीबों कि रोटी की बात ...खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteसुंदर सटीक
ReplyDeleteदिखने में लगे हैवान सी हर एक हवेली ,
ReplyDeleteहैवानियत के इस दौर में इंसान झोपड़ी है !
...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...हरेक शेर लाज़वाब.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा
ReplyDeleteओजपूर्ण भाव .... सुंदर सोच को संप्रेषित करती रचना ...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
marmik samvedanshil kavy,ytharth ko pratibimbit karta hua.
ReplyDeleteहै चाँद अगर महबूब की सूरत ,हुआ करे,
रोटी की रौशनी के लिए परेशान झोपड़ी है
sadhuvad ji .
ज़माना है जालिमों का ,जीने भी नहीं देंगे ,
ReplyDeleteहर पल है यहाँ खतरा ,हैरान झोपड़ी है !
bahut khoob
है चाँद अगर महबूब की सूरत ,हुआ करे,
ReplyDeleteरोटी की रौशनी के लिए परेशान झोपड़ी है !
KYA BAAT KAHI SIR JI SHUBHKAAMNAYE