- स्वराज करुण
कभी इस पहाड़ के सघन और हरे -भरे वन सबको सम्मोहित करते थे ,लेकिन आज ...?
पिछले कुछ वर्षों से इसके तन -बदन की हरियाली को जिस बेरहमी और बेशर्मी से नोचा-खसोटा जा रहा है ,उसकी वज़ह से आज यह इस हालत में पहुँच गया है ! जिन्होंने वर्षों पहले इसके प्राकृतिक वैभव को ,इसकी हरियाली को नज़दीक से देखा था , आज वो इसकी उजड़ी हुई बाँहों को देखकर मायूस हो जाते हैं । जब हरियाली ख़त्म होगी ,तो स्वाभाविक है कि गर्मी अपना प्रचण्ड और रौद्र रूप दिखाएगी ! बारिश भी साल -दर -साल कम होती जाएगी और मौसम का संतुलन बिगड़ता चला जाएगा ।
ऐसा हो भी रहा है ।पहाड़ उजड़ने पर जंगल भी उजड़ रहे हैं । जब जंगल उजड़ रहे हैं तो वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास भी उजड़ते जा रहे हैं । उनके लिए जंगली कन्द- मूल और फलों के साथ -साथ पानी की भी कमी होने लगी है । इसके फलस्वरूप बन्दर ,भालू ,हाथी और तेन्दुए जैसे वन्य प्राणियों को मजबूर होकर मानव बस्तियों की ओर पलायन करना पड़ रहा है ।
अपनी बदहाली और खोयी हुई हरियाली पर आँसू बहा रहा यह कोई अकेला पहाड़ नहीं है । देश और दुनिया में ऐसे कई पहाड़ और पहाड़ियाँ हैं , जिनकी चट्टानें मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली के लिए ,और समाज के आधुनिक विकास के लिए कुर्बान हो रही हैं। तेजी से पाँव पसारते शहरीकरण के इस बदहवास दौर में क्या गाँव और क्या शहर , सब दूर सीमेन्ट कांक्रीट के पक्के मकान बन रहे हैं । शहरों में भारी भरकम दैत्याकार बहुमंजिली इमारतें बन रही हैं । अब तो पूरे देश में डामर की जगह सीमेन्ट कांक्रीट की सड़क बनाने का भी दौर आ गया है । ऐसे में कच्चे माल के लिए पहाड़ों को तोड़ना शायद एक बड़ी विवशता है ।
हम सब मिलकर इसकी उजड़ी और मरी हुई हरियाली को नया जीवन दे सकते हैं । सिर्फ मज़बूत इच्छा शक्ति की ज़रूरत है । हमें सीमेन्ट और कांक्रीट का कोई न कोई विकल्प खोजना होगा । हमारे यहाँ एक से बढ़कर एक प्रतिभावान वैज्ञानिक हैं , प्रौद्योगिकी संस्थान हैं । संकट के इस नाज़ुक दौर में उन्हें आगे आना चाहिए । सड़क निर्माण में प्लास्टिक के इस्तेमाल की टेक्नॉलजी आ गयी है । इसका अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए । इससे प्लास्टिक कचरे का सदुपयोग होगा और प्रदूषण की समस्या कम होगी । उजड़ते हुए पहाड़ों में पत्थरों के अवैध उत्खनन और वनों की अवैध कटाई को सख़्ती से रोकना होगा ।
बहरहाल , कुछ न कुछ उपाय तो करने ही होंगे । अन्यथा ये पहाड़ नये ज़माने के विकास की नयी सुनामी का शिकार होते रहेंगे और हम सब उजड़ते हुए पर्यावरण का रोना रोते रहेंगे ।
-- स्वराज करुण
(तस्वीर : मेरे मोबाइल की आँखों से )
कभी इस पहाड़ के सघन और हरे -भरे वन सबको सम्मोहित करते थे ,लेकिन आज ...?
पिछले कुछ वर्षों से इसके तन -बदन की हरियाली को जिस बेरहमी और बेशर्मी से नोचा-खसोटा जा रहा है ,उसकी वज़ह से आज यह इस हालत में पहुँच गया है ! जिन्होंने वर्षों पहले इसके प्राकृतिक वैभव को ,इसकी हरियाली को नज़दीक से देखा था , आज वो इसकी उजड़ी हुई बाँहों को देखकर मायूस हो जाते हैं । जब हरियाली ख़त्म होगी ,तो स्वाभाविक है कि गर्मी अपना प्रचण्ड और रौद्र रूप दिखाएगी ! बारिश भी साल -दर -साल कम होती जाएगी और मौसम का संतुलन बिगड़ता चला जाएगा ।
ऐसा हो भी रहा है ।पहाड़ उजड़ने पर जंगल भी उजड़ रहे हैं । जब जंगल उजड़ रहे हैं तो वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास भी उजड़ते जा रहे हैं । उनके लिए जंगली कन्द- मूल और फलों के साथ -साथ पानी की भी कमी होने लगी है । इसके फलस्वरूप बन्दर ,भालू ,हाथी और तेन्दुए जैसे वन्य प्राणियों को मजबूर होकर मानव बस्तियों की ओर पलायन करना पड़ रहा है ।
अपनी बदहाली और खोयी हुई हरियाली पर आँसू बहा रहा यह कोई अकेला पहाड़ नहीं है । देश और दुनिया में ऐसे कई पहाड़ और पहाड़ियाँ हैं , जिनकी चट्टानें मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली के लिए ,और समाज के आधुनिक विकास के लिए कुर्बान हो रही हैं। तेजी से पाँव पसारते शहरीकरण के इस बदहवास दौर में क्या गाँव और क्या शहर , सब दूर सीमेन्ट कांक्रीट के पक्के मकान बन रहे हैं । शहरों में भारी भरकम दैत्याकार बहुमंजिली इमारतें बन रही हैं । अब तो पूरे देश में डामर की जगह सीमेन्ट कांक्रीट की सड़क बनाने का भी दौर आ गया है । ऐसे में कच्चे माल के लिए पहाड़ों को तोड़ना शायद एक बड़ी विवशता है ।
हम सब मिलकर इसकी उजड़ी और मरी हुई हरियाली को नया जीवन दे सकते हैं । सिर्फ मज़बूत इच्छा शक्ति की ज़रूरत है । हमें सीमेन्ट और कांक्रीट का कोई न कोई विकल्प खोजना होगा । हमारे यहाँ एक से बढ़कर एक प्रतिभावान वैज्ञानिक हैं , प्रौद्योगिकी संस्थान हैं । संकट के इस नाज़ुक दौर में उन्हें आगे आना चाहिए । सड़क निर्माण में प्लास्टिक के इस्तेमाल की टेक्नॉलजी आ गयी है । इसका अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए । इससे प्लास्टिक कचरे का सदुपयोग होगा और प्रदूषण की समस्या कम होगी । उजड़ते हुए पहाड़ों में पत्थरों के अवैध उत्खनन और वनों की अवैध कटाई को सख़्ती से रोकना होगा ।
बहरहाल , कुछ न कुछ उपाय तो करने ही होंगे । अन्यथा ये पहाड़ नये ज़माने के विकास की नयी सुनामी का शिकार होते रहेंगे और हम सब उजड़ते हुए पर्यावरण का रोना रोते रहेंगे ।
-- स्वराज करुण
(तस्वीर : मेरे मोबाइल की आँखों से )
आदरणीय शास्त्रीजी ! प्रोत्साहन के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्रीजी ! प्रोत्साहन के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद ।
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