हमने जिसे अपने खून-पसीने से खूब सींचा है ,
करीब उसके जा भी न सकें , ये कैसा बगीचा है !
कालीन जो तुमने बनायी, बिछी है उनके पाँव में ,
घर में तुम्हारे यहाँ महज काँटों का गलीचा है !
वो क्या समझेगा हमारे दिल के लहू की कीमत ,
जिसने अमन के नाम दूसरों का लहू उलीचा है !
जिंदगी की नदी में थकने लगी नौका समय की
सफर का लम्बा रास्ता कभी ऊंचा , कभी नीचा है !
मुखौटों की महफ़िल में असली -नकली कौन यहाँ
पहचान कर न पहचाने कोई , फोटो किसी ने खींचा है !
है किसे परवाह किसी की , इस बेरहम बाज़ार में ,
रोने से बताओ दिल यहाँ कब किसका पसीजा है !
-- स्वराज्य करुण
है किसे परवाह किसी की , इस बेरहम बाज़ार में ,
ReplyDeleteरोने से बताओ दिल यहाँ कब किसका पसीजा है !
-वाह!! बहुत बढ़िया.
क्या कहूँ आज की गज़ल पर हर शेर दाद के काबिल है।
ReplyDelete@मुखौटों की महफ़िल में असली -नकली कौन यहाँ
ReplyDeleteपहचान कर न पहचाने कोई,फोटो किसी ने खींचा है।
आज लगता है किसी फ़ोटोग्राफ़र की शामत आई है,
तभी तो आपने आज इतनी उम्दा गजल बनाई है। :)
आभार
बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteहै किसे परवाह किसी की, इस बेरहम बाज़ार में ,
ReplyDeleteरोने से बताओ दिल यहाँ कब किसका पसीजा है !
बहुत खूबसूरत गज़ल.
'कालीन जो तुमने बनाई, बिछी है उनके पाँव में
ReplyDeleteघर में तुम्हारे यहाँ महज ,काँटों का गलीचा है '
.............वाह , बड़े सहज ढंग से कलाकारों का दर्द उकेरा है , सुन्दर शेर में
हर शेर दाद के काबिल है। बहुत खूबसूरत गज़ल|
ReplyDeleteकालीन जो तुमने बनायी, बिछी है उनके पाँव में ,
ReplyDeleteघर में तुम्हारे यहाँ महज काँटों का गलीचा है !
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल ...! खासकर ये शेर अच्छा लगा !
ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?
है किसे परवाह किसी की , इस बेरहम बाज़ार में ,
ReplyDeleteरोने से बताओ दिल यहाँ कब किसका पसीजा है !
aabhaar sir ji
bahut achchi line hai
वो क्या समझेगा हमारे दिल के लहू की कीमत ,
ReplyDeleteजिसने अमन के नाम दूसरों का लहू उलीचा है
शेर अच्छा लगा
है किसे परवाह किसी की , इस बेरहम बाज़ार में ,
ReplyDeleteरोने से बताओ दिल यहाँ कब किसका पसीजा है ...
बहुत खूब .... लाजवाब शेर है ...
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ReplyDeleteजिंदगी की नदी में थकने लगी नौका समय की
ReplyDeleteसफर का लम्बा रास्ता कभी ऊंचा , कभी नीचा है !
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.
बुहत बढ़िया अशआरों से सजाई है आपने यह ग़ज़ल!
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