सब कुछ तो है साफ़- साफ़ आज-कल ,
अब कौन किसे दे रहा इन्साफ आज-कल !
उजड़ा है घर किसी का किसी के गुनाह से,
मुज़रिम के सौ गुनाह भी हैं माफ आज कल !
कातिलों के शहर में नज़र आए कहाँ सुबूत ,
ओढ़ कर मस्त सो रहे लिहाफ आज-कल !
खरबों में बनी इमारत है न्याय का मंदिर ,
होता है जहां रूपयों का ही जाप आज-कल !
पुण्य की गठरी तो उधर कोने में पड़ी है ,
आँगन में उनके हँस रहा है पाप आज-कल !
रग-रग में समाया है रिश्वत का ज़हर इतना ,
डरने लगे हैं उनसे कई सांप आज-कल !
बेरहमी से ले रहे हैं गरीबों के दिल की हाय ,
बेअसर है अमीरों पर अभिशाप आज-कल !
- स्वराज्य करुण
@कातिलों के शहर में नज़र आए कहाँ सुबूत
ReplyDeleteहोता है जहां रूपयों का ही जाप आज-कल !
वाह वाह भाई साहब, गजब के शेर हैं.
रग-रग में समाया है रिश्वत का ज़हर इतना ,
ReplyDeleteडरने लगे हैं उनसे कई सांप आज-कल !
Excellent !
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पुण्य की गठरी तो उधर कोने में पड़ी है ,
ReplyDeleteआँगन में उनके हँस रहा है पाप आज-कल
wah.ekdam theek.
रग-रग में समाया है रिश्वत का ज़हर इतना ,
ReplyDeleteडरने लगे हैं उनसे कई सांप आज-कल !
बहुत बढ़िया गज़ल
रग-रग में समाया है रिश्वत का ज़हर इतना ,
ReplyDeleteडरनेलगे हैं उनसे कई सांप आज-कल !
बहुत खूबसूरत गज़ल
आतंकियों ने लूट ली ,बेगुनाह जिन्दगी,
ReplyDeleteफिर भी उन्हें करतें है, सलाम आज कल ;