स्वराज्य करुण
भारतीय आकाश पर सिर्फ दस साल पहले उदित हुआ छत्तीसगढ़ एक ऐसा सितारा है, जिसके आभा मंडल में भी कई झिलमिलाते और जगमगाते सितारे हैं,जो अपनी चमक से देश और दुनिया को लगातार रौशन करते रहे हैं. प्राचीन इतिहास में दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की माता कौशिल्या के मायके के रूप में भी जाना-पहचाना जाता है. इस नाते भगवान रामचन्द्र जी से छत्तीसगढ़ वालों का मामा-भांजे का रिश्ता जुडता है . छत्तीसगढ़ में अपने भांजे को भगवान राम की तरह पूज्य मानकर उनके चरण स्पर्श करने की प्रथा आज भी प्रचलित है. महानदी ,पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर पावन तीर्थ राजिम में भगवान श्रीराम का 'राजीवलोचन मंदिर' हर साल माघ पूर्णिमा के वार्षिक मेले में लाखों भक्तों को अनायास आकर्षित करता है. ऐसे महान पुत्र की माता कौशिल्या ने अपने बेटे को ऐसे महान संस्कार दिए , जिनके बल पर श्री राम का महान व्यक्तित्व मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विकसित हुआ . इसलिए छत्तीसगढ़ के चमकदार सितारों में माता कौशिल्या की गिनती भी गर्व के साथ होती है.
देश के इस नये राज्य में अतीत से आज तक अनेक ऐसे प्रकाशवान सितारों का उदय हुआ है , जिनके ज्ञान और कर्म के आलोक से मानव समाज ने बहुत कुछ पाया है. छत्तीसगढ़ के ऐसे मूल्यवान सितारों के महत्व और उनकी महिमा पर केंद्रित एक पुस्तक अभी-अभी छपकर आयी है . पुस्तक का शीर्षक है -'सितारों का छत्तीसगढ़ ' और इसके लेखक हैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.परदेशीराम वर्मा,जिनके अब तक पांच हिन्दी कहानी संग्रहऔर दो हिन्दी उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं एक छत्तीसगढ़ी उपन्यास और एक छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह भी उनकी प्रकाशित पुस्तकों की सूची में शामिल है. वह विगत चालीस वर्षों से साहित्य जगत में सक्रिय हैं, जिन्हें पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ने वर्ष २००३ में डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया है.
डॉ.वर्मा ने छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में रचे-बसे छत्तीस जाने-माने लोगों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपनी मंजी हुई लेखनी से छत्तीस बेहतरीन शब्द-चित्र तैयार किए और उन्हें एक रंगीन गुलदस्ते का आकार देकर किताब की शक्ल में पेश किया है. इन सितारों में समाज-सेवक , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार भी हैं और कलाकार भी , कहने का आशय यह कि सामाजिक-सांस्कृतिक और साहित्यिक पृष्ठ -भूमि के साथ-साथ जीवन के लगभग हर क्षेत्र से उन्होंने इन सितारों को संकलित कर उनकी रौशनी को २४६ पन्नों की अपनी किताब में संजोया है. लेखक ने कहा है कि यह तो छत्तीसगढ़ की चमकदार शख्सियतों पर केंद्रित उनके धारावाहिक आलेखों का पहला भाग है . वह इसका दूसरा भाग भी बहुत जल्द प्रस्तुत करेंगे .
बहरहाल , सितारों के परिचय की इस पहली प्रस्तुति में किताब की शुरुआत नये राज्य का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के प्रेरक व्यक्तित्व से की गयी है ,जिन्हें लेखक ने 'ज़मीनी सच्चाई से सरोकार रखने वाले यशस्वी जन-नायक ' शीर्षक से नवाजा है. सितारों की इस लम्बी श्रृंखला में पद्मश्री और पद्म-भूषण सम्मान प्राप्त लोकप्रिय पंडवानी गायिका श्रीमती तीजन बाई , पंथी नर्तक स्वर्गीय श्री देवदास बंजारे ,संत कवि और पूर्व सांसद श्री पवन दीवान , तत्कालीन बस्तर रियासत के लोकप्रिय राजा स्वर्गीय श्री प्रवीर चन्द्र भंजदेव, प्रसिद्ध नाट्य लेखक और निदेशक स्वर्गीय श्री हबीब तनवीर , शब्दभेदी बाण चलाने की विलुप्तप्राय विधा के वयोवृद्ध कुशल निशानेबाज श्री कोदूराम वर्मा और गोवा मुक्ति आंदोलन के सत्याग्रही साहित्यकार स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर की जीवन गाथा भी है.
इनके अलावा राज्य के आदिवासी अंचल सरगुजा में शराब बंदी , भूदान आंदोलन ,महिला शिक्षा के अपने रचनात्मक अभियानों के लिए मार्च १९८९ में पद्मश्री सम्मान प्राप्त स्वर्गीय श्रीमती राजमोहिनी देवी , राज्य के प्रथम श्रमिक नेता , सहकारिता आंदोलन के प्रमुख आधार स्तम्भ , स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार स्वर्गीय ठाकुर प्यारेलाल सिंह और वनवासी बहुल बस्तर के लोक-जीवन में तल्लीनता से साहित्य साधना में लगे वयोवृद्ध कवि लाला जगदलपुरी के यशस्वी जीवन के विविध पहलुओं पर प्रेरणादायक आलेखों से भी किताब की रौनक और ज्यादा बढ़ गयी है.
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के अग्रणी नेता, स्वर्गीय डॉ. खूबचंद बघेल और श्री चन्दूलाल चन्द्राकर , सन १९५२ में निर्वाचित यहाँ की प्रथम महिला सांसद स्वर्गीय मिनी माता , अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक संत गुरु घासीदास , वर्तमान युग के वनवासी संत स्वर्गीय गहिरा गुरु , स्वतंत्रता सेनानी पंडित सुन्दरलाल शर्मा , बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल , वर्ष १९५६ में गठित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय पंडित रविशंकर शुक्ल , हिन्दी की पहली कहानी 'टोकरी भर मिट्टी ' के रचयिता महान लेखक माधवराव सप्रे , वर्ष १८९० में प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचनाकार हीरालाल काव्योपाध्याय , प्रख्यात कहानीकार और निबन्धकार डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी , रायपुर में रामकृष्ण मिशन-विवेकानंद आश्रम के संस्थापक स्वामी आत्मानंद तथा छत्तीसगढ़ी रंगमंच के तपस्वी निदेशक स्वर्गीय डॉ. रामचन्द्र देशमुख और उपन्यासकार तथा कवि स्वर्गीय डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा जैसे अनमोल सितारों की चमक से भी यह किताब आलोकित हो रही है.
डॉ. परदेशीराम वर्मा ने भारतीय संस्कृति में पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य पर भी अपना एक आलेख इसमें शामिल किया है, जिनका जन्म संवत १५३५ में छत्तीसगढ़ में राजिम के नजदीक चम्पारण्य में हुआ माना जाता है. संत कबीर हालांकि इधर कभी नहीं आए,लेकिन उनके प्रमुख शिष्य धनी धर्मदास ने छत्तीसगढ़ आकर कबीर की अनमोल वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का भगीरथ प्रयत्न किया ,जिसका असर आज भी यहाँ के जन-जीवन पर देखा जा सकता है. इसलिए 'समरसता की धरती छत्तीसगढ़ में कबीर' शीर्षक एक महत्वपूर्ण आलेख भी किताब में शामिल है .किताब में एक आलेख हिन्दी के सुपरिचित कथाकार और अपने समय की मशहूर साहित्यिक पत्रिका 'सारिका ' सम्पादक रह चुके स्वर्गीय श्री कमलेश्वर पर लिखा गया है छत्तीसगढ़ उनकी जन्म भूमि और कर्मभूमि नहीं होने के बावजूद उन्होंने यहाँ के साहित्यकारों को भरपूर स्नेह और प्रोत्साहन दिया . लेखक के मुताबिक़ कमलेश्वर 'छत्तीसगढ़ की विलक्षणता और रचनाशीलता के मुग्ध प्रशंसक ' थे. विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में उनके छत्तीसगढ़ प्रवास के कुछ यादगार प्रसंगों को भी लेखक ने इसमें जोड़ा है.
पुस्तक का अंतिम आलेख डॉ.वर्मा ने 'छत्तीसगढ़ की बेटी , भगवान श्रीराम की माता कौसल्या ' को समर्पित किया है. लेखक के अनुसार छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल भी कहा जाता है. राजा भानुमंत यहाँ के राजा थे. उन्हीं की सुपुत्री थी कौशिल्या जी. छत्तीसगढ़ के गाँव चंदखुरी और आरंग में कौशिल्या मंदिर है. पुस्तक की भूमिका में डॉ. परदेशीराम वर्मा की इन पंक्तियों से भला कौन इंकार कर पाएगा- ''शांत प्रकृति के परोपकारी विलक्षण लोगों का छत्तीसगढ़ी आसमान सदा से ही महान सितारों से जगमगाता रहा है .....ऐसे सितारों को आने वाली पीढ़ी भी करीब से जाने , यह ज़रूरी है. ज़रूरी यह भी है कि देश और दुनिया के लोग भी हमारे महापुरुषों, सपूतों, और त्यागी पुरखों को समझें '' डॉ .वर्मा ने आगे ऐलान किया है- ''सितारों का छत्तीसगढ़ सिलसिले का यह पहला खंड है. शीघ्र ही अन्य खंडों का प्रकाशन होगा .''
उम्मीद की जानी चाहिए कि डॉ. परदेशीराम वर्मा की लेखनी से छत्तीसगढ़ के और भी अनेक नामी और गुमनाम सितारों की रौशनी हमें मिलेगी जो किसी भी निराशा के गहन अँधेरे में समाज को राह दिखाएगी.
स्वराज्य करुण
भारतीय आकाश पर सिर्फ दस साल पहले उदित हुआ छत्तीसगढ़ एक ऐसा सितारा है, जिसके आभा मंडल में भी कई झिलमिलाते और जगमगाते सितारे हैं,जो अपनी चमक से देश और दुनिया को लगातार रौशन करते रहे हैं. प्राचीन इतिहास में दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की माता कौशिल्या के मायके के रूप में भी जाना-पहचाना जाता है. इस नाते भगवान रामचन्द्र जी से छत्तीसगढ़ वालों का मामा-भांजे का रिश्ता जुडता है . छत्तीसगढ़ में अपने भांजे को भगवान राम की तरह पूज्य मानकर उनके चरण स्पर्श करने की प्रथा आज भी प्रचलित है. महानदी ,पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर पावन तीर्थ राजिम में भगवान श्रीराम का 'राजीवलोचन मंदिर' हर साल माघ पूर्णिमा के वार्षिक मेले में लाखों भक्तों को अनायास आकर्षित करता है. ऐसे महान पुत्र की माता कौशिल्या ने अपने बेटे को ऐसे महान संस्कार दिए , जिनके बल पर श्री राम का महान व्यक्तित्व मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विकसित हुआ . इसलिए छत्तीसगढ़ के चमकदार सितारों में माता कौशिल्या की गिनती भी गर्व के साथ होती है.
देश के इस नये राज्य में अतीत से आज तक अनेक ऐसे प्रकाशवान सितारों का उदय हुआ है , जिनके ज्ञान और कर्म के आलोक से मानव समाज ने बहुत कुछ पाया है. छत्तीसगढ़ के ऐसे मूल्यवान सितारों के महत्व और उनकी महिमा पर केंद्रित एक पुस्तक अभी-अभी छपकर आयी है . पुस्तक का शीर्षक है -'सितारों का छत्तीसगढ़ ' और इसके लेखक हैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.परदेशीराम वर्मा,जिनके अब तक पांच हिन्दी कहानी संग्रहऔर दो हिन्दी उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं एक छत्तीसगढ़ी उपन्यास और एक छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह भी उनकी प्रकाशित पुस्तकों की सूची में शामिल है. वह विगत चालीस वर्षों से साहित्य जगत में सक्रिय हैं, जिन्हें पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ने वर्ष २००३ में डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया है.
डॉ.वर्मा ने छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में रचे-बसे छत्तीस जाने-माने लोगों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपनी मंजी हुई लेखनी से छत्तीस बेहतरीन शब्द-चित्र तैयार किए और उन्हें एक रंगीन गुलदस्ते का आकार देकर किताब की शक्ल में पेश किया है. इन सितारों में समाज-सेवक , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार भी हैं और कलाकार भी , कहने का आशय यह कि सामाजिक-सांस्कृतिक और साहित्यिक पृष्ठ -भूमि के साथ-साथ जीवन के लगभग हर क्षेत्र से उन्होंने इन सितारों को संकलित कर उनकी रौशनी को २४६ पन्नों की अपनी किताब में संजोया है. लेखक ने कहा है कि यह तो छत्तीसगढ़ की चमकदार शख्सियतों पर केंद्रित उनके धारावाहिक आलेखों का पहला भाग है . वह इसका दूसरा भाग भी बहुत जल्द प्रस्तुत करेंगे .
बहरहाल , सितारों के परिचय की इस पहली प्रस्तुति में किताब की शुरुआत नये राज्य का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के प्रेरक व्यक्तित्व से की गयी है ,जिन्हें लेखक ने 'ज़मीनी सच्चाई से सरोकार रखने वाले यशस्वी जन-नायक ' शीर्षक से नवाजा है. सितारों की इस लम्बी श्रृंखला में पद्मश्री और पद्म-भूषण सम्मान प्राप्त लोकप्रिय पंडवानी गायिका श्रीमती तीजन बाई , पंथी नर्तक स्वर्गीय श्री देवदास बंजारे ,संत कवि और पूर्व सांसद श्री पवन दीवान , तत्कालीन बस्तर रियासत के लोकप्रिय राजा स्वर्गीय श्री प्रवीर चन्द्र भंजदेव, प्रसिद्ध नाट्य लेखक और निदेशक स्वर्गीय श्री हबीब तनवीर , शब्दभेदी बाण चलाने की विलुप्तप्राय विधा के वयोवृद्ध कुशल निशानेबाज श्री कोदूराम वर्मा और गोवा मुक्ति आंदोलन के सत्याग्रही साहित्यकार स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर की जीवन गाथा भी है.
इनके अलावा राज्य के आदिवासी अंचल सरगुजा में शराब बंदी , भूदान आंदोलन ,महिला शिक्षा के अपने रचनात्मक अभियानों के लिए मार्च १९८९ में पद्मश्री सम्मान प्राप्त स्वर्गीय श्रीमती राजमोहिनी देवी , राज्य के प्रथम श्रमिक नेता , सहकारिता आंदोलन के प्रमुख आधार स्तम्भ , स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार स्वर्गीय ठाकुर प्यारेलाल सिंह और वनवासी बहुल बस्तर के लोक-जीवन में तल्लीनता से साहित्य साधना में लगे वयोवृद्ध कवि लाला जगदलपुरी के यशस्वी जीवन के विविध पहलुओं पर प्रेरणादायक आलेखों से भी किताब की रौनक और ज्यादा बढ़ गयी है.
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के अग्रणी नेता, स्वर्गीय डॉ. खूबचंद बघेल और श्री चन्दूलाल चन्द्राकर , सन १९५२ में निर्वाचित यहाँ की प्रथम महिला सांसद स्वर्गीय मिनी माता , अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक संत गुरु घासीदास , वर्तमान युग के वनवासी संत स्वर्गीय गहिरा गुरु , स्वतंत्रता सेनानी पंडित सुन्दरलाल शर्मा , बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल , वर्ष १९५६ में गठित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय पंडित रविशंकर शुक्ल , हिन्दी की पहली कहानी 'टोकरी भर मिट्टी ' के रचयिता महान लेखक माधवराव सप्रे , वर्ष १८९० में प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण के रचनाकार हीरालाल काव्योपाध्याय , प्रख्यात कहानीकार और निबन्धकार डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी , रायपुर में रामकृष्ण मिशन-विवेकानंद आश्रम के संस्थापक स्वामी आत्मानंद तथा छत्तीसगढ़ी रंगमंच के तपस्वी निदेशक स्वर्गीय डॉ. रामचन्द्र देशमुख और उपन्यासकार तथा कवि स्वर्गीय डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा जैसे अनमोल सितारों की चमक से भी यह किताब आलोकित हो रही है.
डॉ. परदेशीराम वर्मा ने भारतीय संस्कृति में पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य पर भी अपना एक आलेख इसमें शामिल किया है, जिनका जन्म संवत १५३५ में छत्तीसगढ़ में राजिम के नजदीक चम्पारण्य में हुआ माना जाता है. संत कबीर हालांकि इधर कभी नहीं आए,लेकिन उनके प्रमुख शिष्य धनी धर्मदास ने छत्तीसगढ़ आकर कबीर की अनमोल वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का भगीरथ प्रयत्न किया ,जिसका असर आज भी यहाँ के जन-जीवन पर देखा जा सकता है. इसलिए 'समरसता की धरती छत्तीसगढ़ में कबीर' शीर्षक एक महत्वपूर्ण आलेख भी किताब में शामिल है .किताब में एक आलेख हिन्दी के सुपरिचित कथाकार और अपने समय की मशहूर साहित्यिक पत्रिका 'सारिका ' सम्पादक रह चुके स्वर्गीय श्री कमलेश्वर पर लिखा गया है छत्तीसगढ़ उनकी जन्म भूमि और कर्मभूमि नहीं होने के बावजूद उन्होंने यहाँ के साहित्यकारों को भरपूर स्नेह और प्रोत्साहन दिया . लेखक के मुताबिक़ कमलेश्वर 'छत्तीसगढ़ की विलक्षणता और रचनाशीलता के मुग्ध प्रशंसक ' थे. विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में उनके छत्तीसगढ़ प्रवास के कुछ यादगार प्रसंगों को भी लेखक ने इसमें जोड़ा है.
पुस्तक का अंतिम आलेख डॉ.वर्मा ने 'छत्तीसगढ़ की बेटी , भगवान श्रीराम की माता कौसल्या ' को समर्पित किया है. लेखक के अनुसार छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल भी कहा जाता है. राजा भानुमंत यहाँ के राजा थे. उन्हीं की सुपुत्री थी कौशिल्या जी. छत्तीसगढ़ के गाँव चंदखुरी और आरंग में कौशिल्या मंदिर है. पुस्तक की भूमिका में डॉ. परदेशीराम वर्मा की इन पंक्तियों से भला कौन इंकार कर पाएगा- ''शांत प्रकृति के परोपकारी विलक्षण लोगों का छत्तीसगढ़ी आसमान सदा से ही महान सितारों से जगमगाता रहा है .....ऐसे सितारों को आने वाली पीढ़ी भी करीब से जाने , यह ज़रूरी है. ज़रूरी यह भी है कि देश और दुनिया के लोग भी हमारे महापुरुषों, सपूतों, और त्यागी पुरखों को समझें '' डॉ .वर्मा ने आगे ऐलान किया है- ''सितारों का छत्तीसगढ़ सिलसिले का यह पहला खंड है. शीघ्र ही अन्य खंडों का प्रकाशन होगा .''
उम्मीद की जानी चाहिए कि डॉ. परदेशीराम वर्मा की लेखनी से छत्तीसगढ़ के और भी अनेक नामी और गुमनाम सितारों की रौशनी हमें मिलेगी जो किसी भी निराशा के गहन अँधेरे में समाज को राह दिखाएगी.
स्वराज्य करुण
अच्छी जानकारी मिली।
ReplyDeleteडॉ. परदेशीराम वर्मा एवं आपको बधाई !
ReplyDeleteपरदेशी राम वर्मा जी का कार्य स्वागतेय है..
ReplyDeleteआपको एवं परदेशी राम जी को बधाई
छत्तीसगढ़ के चमकते-दमकते सितारों पर केंद्रित पुस्तक लेखन और प्रकाशन के लिए डॉ.परदेशीराम वर्मा को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteवर्मा जी की कलम छत्तीसगढ़ के लिए थाती है. वैसे उनके छत्तीसगढ़ की सीमा खास तरह की है. मजेदार होता है, जब यह कलम कभी चंवर तो कभी तलवार सी डोलती-चलती है.
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