Friday, May 20, 2011

निष्प्राण नदी को नया जीवन

                                                                                                         स्वराज्य करुण
शहर  से अपने गाँव जाने के लिए जब कभी सूखे मौसम में उस रास्ते से गुजरता ,   बिरकोनी और तुमगांव के बीच मुख्य सड़क पर  एक छोटे पुल के नीचे से निकलती वह नदी मुझे एकदम वीरान और बेजान नज़र आती . लगता  जैसे कितने युगों से वह बूँद-बूँद पानी के लिए तरसती कोई प्यासी आत्मा है .लेकिन उस  दिन जब उधर से निकला और पुल के आजू-बाजू  निगाहें घूमीं ,तो नज़ारा ही बदला हुआ नज़र आया ..उसके रेतीले आँचल में पानी लहरा रहा था. जल-राशि के दर्पण पर नीले आकाश में तैरते कपसीले बादलों के प्रतिबिम्ब आँखों के रास्ते दिल में एक खुशनुमा एहसास जगा रहे थे .
  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से कोलकाता की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 53 पर पर्यटन मंडल के मोटल के पीछे ग्राम कांपा के नजदीक हाल के वर्षों तक यह स्थानीय नदी बारिश के चार महीने खत्म होते ही लगभग सूख जाती थी। गर्मियों में तो ऐसा लगता था मानो कोडार नाला के नाम से जानी पहचानी यह छोटी नदी चैत्र, 
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बैशाख और जेठ की  उमस भरी चिलचिलाती धूप में मुरझाकर निष्प्राण हो गयी हो। लेकिन अब मौसम   के इन्हीं बेहद गर्म दिनों में भी इसमें तन-मन को सुकून देने वाला भरपूर पानी है। ऐसा लगता है मानो एक मरती हुई नदी को किसी संजीवनी से नया जीवन मिल गया है। इसके किनारों पर आंखों को राहत पहुंचाने वाली  हरियाली का नजारा भी राहगीरों को खूब भाने लगा है।    यह कमाल कर दिखाया है इस नदी पर छत्तीसगढ़ सरकार के जल संसाधन विभाग द्वारा सिर्फ डेढ़ साल पहले बनवाए गए एक एनीकट ने, जिसका निर्माण कांपा में लगभग तीन करोड़ रूपए की लागत से किया गया है। यह एनीकट इस नदी के लिए संजीवनी बूटी की तरह जीवन देने वाला साबित हुआ है। नवम्बर 2007 में इसका निर्माण शुरू हुआ था, जो विगत दिसम्बर 2009 में पूर्ण कर लिया गया। 

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यह एनीकट राजधानी रायपुर से लगभग पचपन किलोमीटर की दूरी पर है। इसमें आज गर्मियों में भी इतना पानी है कि महासमुंद जिले के ग्राम गोपालपुर, कांपा और मुस्की के सैकड़ों ग्रामीणों को इसमें निस्तार की अच्छी सुविधा मिल रही है। दिन भर की गर्मी से तपते शरीर को राहत पहुंचाने के लिए इन गांवों के लोग हर शाम इस एनीकट में नहाने आते हैं। जब से यह एनीकट बना है, यहां बच्चे और वयस्क सभी इसमें तैरने और डुबकियां लगाने का भरपूर आनंद लेने लगे हैं। पशुओं के पीने के लिए भी पर्याप्त पानी मिलने लगा है। एनीकट के आस-पास के इलाके में भू-जलस्तर बढ़ने लगा है। निकटवर्ती गांवों के अनेक किसान इसका लाभ उठाकर गर्मियों में रबी मौसम की फसल लेने लगे हैं। कांपा निवासी श्री दौलत सोनी एक महाविद्यालय में बी.एस-सी. (पूर्व) के छात्र हैं। गर्मी की छुट्टियों में गांव आए थे। वे भी शाम को इस एनीकट में नहाने पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस एनीकट के बन जाने से अब यहां गर्मियों की शाम लोगों की चहल-पहल बढ़ जाती है। उल्लेखनीय है कि महासमुंद जिले में गोपालपुर (कांपा) के अलावा ग्राम गाड़ाघाट में भी एक एनीकट का निर्माण लगभग ढाई करोड़ रूपए की लगात से करीब दो वर्ष पहले 30 मार्च 2009 को पूर्ण कर लिया गया है। इसके बन जाने से तुमगांव, कौंदकेरा और बनसिवनी के ग्रामीणों के कुंओं में जल स्तर बढ़ गया है और तपते मौसम में भी उनमें पर्याप्त पानी रहने लगा है। निस्तारी की पर्याप्त सुविधा भी ग्रामीणों को मिल रही है।  794-3-190511लोग रबी फसलों की खेती में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 53 के किनारे ग्राम अछोली के पास एक तालाब भी बनवाया गया है। इसमें भी आज की स्थिति में काफी पानी है। इसके फलस्वरूप आस-पास की जमीन पर इस सूखे मौसम में भी इतनी हरियाली आ गयी है कि ग्रामीणों के पशुओं को भरपूर हरा चारा भी मिल रहा है.
    ज्ञातव्य है कि नदी-नालों में बारिश के पानी को व्यर्थ बह जाने से रोकने और उसका उपयोग निस्तारी सुविधा, सिंचाई और भू-जल संवर्धन के लिए करने के नेक इरादे से छत्तीसगढ़ में नदी-नालों पर एनीकटों के निर्माण की एक विशेष कार्ययोजना बनायी गयी है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर सात वर्षों के लिए तैयार इस कार्य योजना के तहत प्रदेश में दो हजार 137 करोड़ रूपए की लागत से वर्ष 2012 तक 595 एनीकटों के निर्माण का प्रस्ताव है। इसके अन्तर्गत अब तक 197 करोड़ रूपए की लागत से 110 एनीकटों का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है, जबकि 115 एनीकट अभी निर्माणाधीन है, जिन पर लगभग 690 करोड़ रूपए की लागत आएगी। दरअसल बड़े बांधों की तुलना में एनीकटों के निर्माण में लागत बहुत कम आती है। इनमें पानी जमा होने के बाद अतिरिक्त पानी ओवर फ्लो होकर नदी अथवा नाले में आगे निकल जाता है और दूर तक लोगों को इसका लाभ मिलता है। अब तक बन चुके 110 एनीकटों में से सर्वाधिक 24 एनीकट दुर्ग जिले में बनवाए गए हैं। राजनांदगांव जिले में 13, कबीरधाम (कवर्धा) जिले में आठ, महासमुंद और रायपुर जिलों में सात-सात एनीकट तैया हो चुके हैं। सरगुजा और कोरिया जिलों में छह-छह, बिलासपुर जिले में पांच, जांजगीर-चांपा, कोरबा और रायगढ़ जिले में तीन-तीन, उत्तर बस्तर (कांकेर) जिले में दो और धमतरी जिले में एक एनीकट का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है। जहां कहीं भी एनीकट बनाए गए हैं, वहां के नदी-नालों में जल धाराओं के साथ नये जीवन की चहल-पहल लौट आयी है। ये एनीकट छत्तीसगढ़ के सूखते, मुरझाते नदी-नालों के लिए वास्तव में संजीवनी साबित हो रहे हैं।
हम  भारतवासी नदी-नालों के देश के निवासी हैं . गंगा ,यमुना ,गोदावरी , महानदी ,इन्द्रावती ,नर्मदा ,कृष्णा कावेरी जैसी राष्ट्रीय नदियों के साथ-साथ उनकी सहायिकाओं के रूप में अनेकानेक आंचलिक नदियाँ भारत-भूमि को सदियों से तृप्त करती आ रही हैं , इन सहायक नदियों को जल-आपूर्ति के लिए कई बरसाती नाले भी हमारे गाँवों और शहरों के आस-पास प्रवाहित होते रहे हैं . इन सभी नदी-नालों के किनारे सैकड़ों वर्षों से हमारी संस्कृति और सभ्यता फलती-फूलती चली आ रही है. इनके किनारे तीर्थों और धार्मिक मेलों की अपनी परम्परा है. प्यासों को पानी पिलाना पुण्य का कार्य है . लाखों-करोड़ों इंसानों और पशु-पक्षियों की प्यास बुझाकर ये नदी-नाले सैकड़ों-हजारों वर्षों से यह पुण्य करते आ रहे हैं ,जैसे कोई पेड़ अपने फल खुद नहीं खाता ,ठीक उसी तरह नदी-नाले भी अपना पानी खुद नहीं पीते ,बल्कि अपने पानी से वे सम्पूर्ण प्राणी जगत की प्यास बुझाते हैं .लेकिन आधुनिक युग में तेजी से हो रहे शहरीकरण और मायाजाल की तरह फ़ैल रही भौतिक लालसाओं के वशीभूत होकर  इंसान परोपकारी तो अब रहा नहीं , वह नदी-नालों की हिफाजत करना भी भूलता जा रहा है. वह भूल गया है कि कुदरत का वरदान हैं ये नदी-नाले . इंसान सब कुछ बना लेगा ,लेकिन कुदरत के हाथों निर्मित किसी नदी-नाले का निर्माण वह अपने हाथों और मशीनों से कभी नहीं कर सकता . इसके बाद भी वह उन्हें मरणासन्न छोड़ देना चाहता है ,लेकिन छत्तीसगढ़ ने  अपने नदी-नालों के मुरझाते जीवन में रौनक लौटाने और उनकी बेहतर देख -भाल का दायित्व लेकर ऐसे खुदगर्ज़ इंसानों को अपनी मानसिकता बदलने की प्रेरणा दी है और एक नया रास्ता भी दिखाया है.अब देखें, आगे क्या होता है !
                                                                                                                  स्वराज्य करुण
                      

5 comments:

  1. येल्लो भाई, हम आपको यहाँ ढूंढ़ रहे हैं और आप कोडार दर्शन यात्रा पर है,
    नदी एवं नालों पर एनिकट बनने से पानी रुकता है
    और आस पास का भूजल स्तर बढ़ता है.
    इसका सीधा-सीधा लाभ ग्राम जन एवं पशु धन की प्राण रक्षा के रूप में मिलता है.
    बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां आपने जुटाई हैं.

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  2. जल ही जीवन है. इसलिए जल को बचाना जीवन को बचाने के समान है और मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है. आपके आलेख से कुछ ऐसा ही प्रेरक सन्देश मिल रहा है.

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  3. छत्‍तीसगढ़ के जल संग्रहण पर चिंता और प्रयास का विस्‍तृत विवरण प्रस्‍तुत किया है भईया आपने, आपको मोबाईल फीड़ रीडर से नियमित पढ़ता हूं। आपकी लेखनी में सरकार की प्रवंचना नहीं यथार्थ का चित्रण होता है।

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