पहले अन्ना हजारे और अब बाबा रामदेव के आमरण अनशन से जहां दिल्ली के तमाम दबंग और दलाल देशद्रोही घबराए हुए हैं, वहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की जनता में जागरण की एक नयी लहर भी देखी जा रही है. बाबा की मांगों में चार सौ लाख करोड रूपयों के काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने , पांच सौ और हजार रूपए के नोटों को बंद करने , देश के सभी बच्चों की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में करवाने ,भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी लोकपाल क़ानून बनवाने जैसी कई ऐसी मांगें शामिल हैं ,जिनसे कोई भी सच्चा देशभक्त असहमत नहीं हो सकता ,लेकिन मेरे विचार से बाबा अगर देश में मतदान अनिवार्य करने की मांग कर रहे हैं ,तो उन्हें इसके दूसरे पहलू पर भी विचार करना चाहिए . अगर देश के प्रत्येक मतदाता के लिए चुनावों में मतदान करने की बाध्यता लागू कर दी जाएगी ,तो यह तो एक प्रकार से तानाशाही जैसा आचरण होगा. मतदान में 'दान' शब्द भी सम्मिलित है और कोई भी दान स्वप्रेरणा से और निजी सहमति से ही दिया जाता है. जोर-जबरदस्ती किसी से दान नहीं लिया जा सकता ,चाहे वह 'मतदान' ही क्यों न हो ?
हाँ ,अगर बाबा यह भी मांग करें कि मतदान की अनिवार्यता के साथ-साथ विजयी प्रत्याशियों के लिए चुनावी वायदों को समय-सीमा में पूर्ण करने की भी अनिवार्यता हो, और वायदा नहीं निभाने वाले प्रत्याशी अथवा दल पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज हो, तब तो अनिवार्य मतदान की मांग वाजिब हो सकती है . अक्सर देखा गया है कि चुनावों में प्रत्याशी और दल जनता से कई लुभावने वायदे करते हैं .जैसे महंगाई खत्म करने का वायदा , बेरोजगारी दूर करने का वायदा , भ्रष्टाचार मिटाने का वायदा ,लेकिन चुनाव निपटते ही आगे क्या होता है, सबको मालूम है .जनता को भी मालूम हो जाता है कि उसे धोखा दिया गया है. लेकिन वह अपने नसीब को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पाती .ऐसे में यह भी अनिवार्य होना चाहिए कि चुनावों में प्रत्याशियों और दलों के वायदों को किसी भी सक्षम अदालत में शपथ-पत्र के रूप में दाखिल करवाया जाए ,ताकि अगर वायदे पूरे नहीं होते तो ,सम्बन्धित प्रत्याशी अथवा दल पर जूठे शपथ-पत्र देने के आरोप में कोई भी मतदाता मुकदमा दायर कर सके .. यदि मतदान करना मतदाता के लिए अनिवार्य होगा ,तो उसके मतों से चुनाव जीतने वाले के लिए चुनावी घोषणाओं और वायदों को पूरा करने की भी बाध्यता होनी चाहिए .आखिर ताली तो दोनों हाथों से ही बजती है
.चुनावों में मतपत्रों पर केवल प्रत्याशियों के नाम और उनके प्रतीक छपे होते है,.इनमे से किसी एक पर मतदाता को मुहर लगाना होता है. अगर मतदाता की निगाह में कोई भी प्रत्याशी योग्य नहीं है, तो वह अपनी नापसंदगी मतपत्र पर तो ज़ाहिर नहीं कर सकता . फिर ऐसे में उस अनिवार्य मतदान का भला क्या औचित्य होगा जिसमे मतदाता को अपनी स्पष्ट राय ज़ाहिर करने का अधिकार न हो ? अब तो सूचना -प्रौद्योगिकी के आविष्कार इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन ने चुनाव में वोटिंग और मतगणना की प्रक्रिया को बहुत आसान बना दिया है .इस मशीन में और परम्परागत मतपत्रों में भी एक कॉलम नापसंदगी का भी होना चाहिए ,ताकि मतदाता अगर किसी भी प्रत्याशी को पसंद नहीं करता ,तो वह उस कॉलम में अपनी मुहर लगा सके .इससे यह भी पता चल जाएगा कि कौन सा प्रत्याशी कितने पानी में है. यह मांग अन्ना हजारे साहब भी लगातार कर रहे हैं .
स्वराज्य करुण
बहुत सुन्दर आलेख!
ReplyDeleteसम सामायिक मुद्दा .
ReplyDeleteसम-सामयिक मुद्दा .
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