स्वराज्य करुण
क्या है तुम्हारी जाति ,बोलो क्या है धर्म तुम्हारा ,
गिनती का फरमान है आया , जो है फ़र्ज़ हमारा !
जाति-धर्म के नाम से चलती उनकी खूब तिजारत,
सिंहासनों के लिए भी इनसे मिलता खूब सहारा !
जाने कब समझेंगे उनकी दोरंगी चालों को
जिनके दम पे फिरंगियों ने किया था ये बँटवारा !
आसमान पे हिलमिल -झिलमिल करते हैं जो तारे
पूछो उनसे ,किस मज़हब का है कौन सा तारा !
माटी अपनी किस जाति की, क्या कोई कह पाएगा ,
फिर क्यों माटी के मानव में जात का ज़हर उतारा !
प्यास बुझाने से भी ज्यादा पानी का क्या मज़हब
फिर क्यों खून का प्यासा मानव चमकाए तलवारा !
ज्ञान-विज्ञान की सदी है फिर भी सोच है सदियों पीछे ,
पढ़े -लिखे भी खूब लगाते जाति का जयकारा !
आखिर कब कहलाएंगे हम एक हैं भारतवासी
खुली सड़क पर पड़ा है घायल देश का भाईचारा !
उस चेहरे के दर्द को समझो, कुछ तो खुद महसूस करो,
डिग्री लेकर भी जो हमेशा फिरता मारा -मारा !
जाति-धर्म को गिन-गिन कर तुम चमका लोगे सियासत ,
लेकिन तुमको माफ न करेगा इतिहास का हरकारा !
स्वराज्य करुण
क्या है तुम्हारी जाति ,बोलो क्या है धर्म तुम्हारा ,
गिनती का फरमान है आया , जो है फ़र्ज़ हमारा !
जाति-धर्म के नाम से चलती उनकी खूब तिजारत,
सिंहासनों के लिए भी इनसे मिलता खूब सहारा !
जाने कब समझेंगे उनकी दोरंगी चालों को
जिनके दम पे फिरंगियों ने किया था ये बँटवारा !
आसमान पे हिलमिल -झिलमिल करते हैं जो तारे
पूछो उनसे ,किस मज़हब का है कौन सा तारा !
माटी अपनी किस जाति की, क्या कोई कह पाएगा ,
फिर क्यों माटी के मानव में जात का ज़हर उतारा !
प्यास बुझाने से भी ज्यादा पानी का क्या मज़हब
फिर क्यों खून का प्यासा मानव चमकाए तलवारा !
ज्ञान-विज्ञान की सदी है फिर भी सोच है सदियों पीछे ,
पढ़े -लिखे भी खूब लगाते जाति का जयकारा !
आखिर कब कहलाएंगे हम एक हैं भारतवासी
खुली सड़क पर पड़ा है घायल देश का भाईचारा !
उस चेहरे के दर्द को समझो, कुछ तो खुद महसूस करो,
डिग्री लेकर भी जो हमेशा फिरता मारा -मारा !
जाति-धर्म को गिन-गिन कर तुम चमका लोगे सियासत ,
लेकिन तुमको माफ न करेगा इतिहास का हरकारा !
स्वराज्य करुण
जाति-धर्म के नाम से ही चलती उनकी तिजारत,
ReplyDeleteसिंहासनों के लिए भी इनसे मिलता खूब सहारा !
व्यंग्य की तलवार आपकी भी छोटी नही है
जाति-धर्म को गिन-गिन कर चमका लोगे सियासत ,
ReplyDeleteलेकिन माफ तुमको न करेगा इतिहास का हरकारा
bahut sateek likha hai .badhai
शानदार लेखन ………धारदार व्यंग्य्।
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त गजल पेश की है आपने!
ReplyDeleteजात-पात और कुनबों से देश हमारा बड़ा है ,
ReplyDeleteदेश गर डूब गया तो नहीं मिलेगा किनारा .
बहुत ही सशक्त गजल|धन्यवाद|
ReplyDeleteआखिर कब कहलाएंगे हम एक हैं भारतवासी
ReplyDeleteखुली सड़क पर पड़ा है घायल देश का भाईचारा !
....आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक व्यंग..बहुत सुन्दर
आखिर कब कहलाएंगे हम एक हैं भारतवासी
ReplyDeleteखुली सड़क पर पड़ा है घायल देश का भाईचारा
ग़ज़ल के जरिए बहुत सामयिक प्रश्न उठाया है आपने।
रचना में संदेश भी है और कटाक्ष भी।