कितनी तड़क-भड़क है ,देखो कितनी तड़क -भड़क है ,
देख-देख कर लगता है अब तो , शायद यही नरक है !
आग उगलते मौसम में हरियाली के दुश्मन खुश हैं ,
दूर-दूर तक नहीं है छाया , केवल जलती सड़क है !
कहते हैं जो दुनिया भर को पेड़ लगाओ-पेड़ लगाओ
देखो ध्यान से उनकी कथनी -करनी में क्या फरक है !
बेच रहे हैं खुले आम यहाँ कुदरत के पर्वत -जंगल को ,
देख के उनकी करतूत धरा का सीना गया दरक है !
उनके महलों के भीतर कैद रह गयी आज हरीतिमा
ऐसा क्यों बूझो तो जाने सबके अपने तरक हैं !
--- स्वराज्य करुण
पर्यावरण पर सटीक गज़ल ...
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (28.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बेच खा रहे हैं वंशजो कि विरासत भूख ऐसी क्या जो मिटती ही नही
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना!
ReplyDeleteSUNDAR RACHNA .....HAR SHER UMDA
ReplyDeleteस्वराज्य करुण जी, पर्यावरण के महत्व पर सार्थक रचना प्रस्तुत करने के लिए बधाई.
ReplyDeleteपर्यावरण ke virodhiyo ko message
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