- स्वराज्य करुण
हे राजन ! तुम और तुम्हारे
दरबारी क्या लेकर आए थे
इस दुनिया में और
क्या लेकर जाओगे यहाँ से ?
कहाँ से आए थे
और कहाँ जाना है ?
इस मासूम सवाल का भी
भला है कोई ठौर ठिकाना ?
अनंत यात्रा से आए थे और
अनंत यात्रा में है जाना /
फिर क्यों हर कोई
देश को लूट कर लगातार
भर रहा है अपना खज़ाना ?
कहीं कोई हज़ारों -हज़ार करोड
रूपयों का गोपनीय बैंक बैलेंस
बना रहा है ,
कहीं कोई नादान किसानों को,
भोले-भाले गाँवों को
उजाड़ कर शिंकजे में दबा रहा है
हज़ारों एकड़ ज़मीन /
हे राजन ! किसी इंसान के
मरने पर अगर उसे दफनाना
ज़रूरी हो तो चाहिए कितनी ज़मीन ?
दो गज से ज्यादा तो नहीं !
मरने पर अगर किसी को
जलाया जाए शमशान में
या फिर किसी विद्युत शव-दाह गृह में
तो वह हो जाएगा धुंआ -धुंआ और
उतनी भी ज़गह नहीं लगेगी !
फिर क्या करोगे जनता को लूट कर
बटोरी गयी ज़मीन की इस सल्तनत का
घपलों -घोटालों की
भारी -भरकम दौलत का ?
क्या करोगे रिश्वत और कमीशन की
ज़हरीली प्याली से भरी अपनी इस सियासत का ?
हे राजन ! कितनी ज़मीन और कितनी दौलत
लेकर जाओगे तुम और तुम्हारे दरबारी
अनंत यात्रा में ?
हे राजन ! क्या कोई ज़वाब है तुम्हारे पास ?
- स्वराज्य करुण
@अनंत यात्रा में?
ReplyDeleteथोड़ा रुकिए!
जरा कफ़न में जेब लगवा लूँ तो कहुँ।
खुद ही जवाब बन रहे हर सवाल.
ReplyDeleteसशरीर जाने की गारंटी दीजियेगा तो सोच के बताऊंगा :)
ReplyDeleteवर्तमान राजनैतिक परिस्थिति पर पुचकारता हुआ व्यंग्य,
ReplyDeleteशायद इन सवालों के जवाब अनंत काल तक न मिले।
अच्छी कविता।
हर इन्सान के लिए विचारणीय प्रश्न .....
ReplyDeleteराजन अनंत यात्रा की तैयारी नहीं करते ....बहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteना ही कोइ साथ लाता है और ना ही कुछ ले कर जाता है |संचय की प्रव्रत्ति रखने वालों को सन्देश देती अच्छी पोस्ट |बधाई |
ReplyDeleteआशा
आपने तो प्रश्नों का तूफ़ान ला दिया है. बहुत सुंदर कविता. समस्या को अच्छी तरह से पेश किया है कविता में.
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें.
रचना