Saturday, January 1, 2011
(गज़ल) दिल है कहीं और !
पहले भी था बेहाल , आज भी बेहाल है ,
कोई तो करे साबित यही नया साल है !
तारीख बदल गयी पर है वही तासीर
नए ज़माने की ये मायावी चाल है !
हाथों से मिले हाथ पर दिल है कहीं और
दोस्ती भी वहीं है जहाँ भरपूर माल है !
इक बार जो बढ़ी तो घटने का कहाँ नाम ,
रोटी की चढी कीमत और महंगी दाल है !
किश्तों में चल रही है नीलामी वतन की देख ,
ग्राहकों की भीड़ में कई हज़ार दलाल हैं !
लानत-मलामत का भला क्या असर होगा ,
कुर्सियों की हो गयी जब मोटी खाल है !
सियासत के रंगमंच पर मुखौटों का जादू
जनता को बार-बार होना इस्तेमाल है !
- स्वराज्य करुण
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नये साल ने तो जैसे एक बार फिर जादू कर दिया है आपकी सृसिक्षा का.
ReplyDeleteसियासत के रंगमंच पर मुखौटों का जादू
ReplyDeleteजनता को बार-बार होना इस्तेमाल है!
नए साल में शब्दों का बन्धन उत्तम
झेल ले सारी दुश्वारियां वही नरोत्तम
आभार
तारीख बदल गयी पर है वही तासीर
ReplyDeleteनए ज़माने की ये मायावी चाल है !
... bahut sundar ... behatreen !!
सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteनये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.
बहुत बढ़िया गज़ल ...बहुत कुछ कह गए ..
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाएँ
सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
ReplyDeleteसर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .
नव - वर्ष २०११ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
सियासत के रंगमंच पर मुखौटों का जादू
ReplyDeleteजनता को बार-बार होना इस्तेमाल है !
राजनीति पर सटीक कटाक्ष..सुन्दर प्रस्तुति..
आलोक अन्जान,
http://aapkejaanib.blogspot.com/
पहले भी था बेहाल,आज भी बेहाल है
ReplyDeleteकोई तो करे साबित यही नया साल है !
एक दम सही कहा .....
पता है कि चिंतायें बनी रहने की संभावनाएं हैं फिर शुभकामनाएं क्यों ना दी जायें !
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