किसी भी गाँव, शहर , राज्य और देश के नामकरण की अपनी एक भूमिका होती है .इसके पीछे एक इतिहास भी होता है. हमारे प्यारे भारत देश के नामकरण की भी अपनी भूमिका और अपना इतिहास है . हज़ारों वर्षों से हम लोग 'भारत-माता ' के रूप में अपनी इस धरती की वन्दना करते आ रहे हैं. इस बीच अंग्रेजों ने अपनी कुटिल व्यापारिक चालों से भारत माता को गुलाम बना कर इसका नाम 'इंडिया ' रखवा दिया. जनता ने कठिन संघर्षों से आज़ादी हासिल की और भारत माता को गुलामी के बन्धनों से आज़ाद कराया . देश में लोकतंत्र कायम हुआ. तब से लेकर आज तक लोकतंत्र की भावना के अनुरूप जनता के लिए ,जनता के द्वारा जनता की निर्वाचित सरकारें केन्द्र और राज्यों में शासन -प्रशासन का संचालन करते हुए लोक-हित और देश-हित में काम कर रही हैं .
लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद शासन-प्रशासन में बदलाव तो आया ,पर हमारे भारतीय समाज की मानसिकता पर अंग्रेजियत का नशा आज तक काले साये की तरह छाया हुआ है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि हम अब तक अपने देश के अंग्रेजी नाम 'इंडिया ' को नहीं बदल सके . यह ज़रूर है कि इस बीच पिछले पच्चीस -तीस वर्षों में हम लोगों ने मद्रास का नामकरण चेन्नई , कलकत्ता का नाम कोलकाता और बम्बई का नाम 'मुम्बई ' होते देखा है. मैसूर राज्य का नाम 'कर्नाटक' और राजधानी बेंगलोर का नाम 'बेंगलुरु ' हो गया. अभी-अभी उड़ीसा राज्य का नाम बदल कर 'ओड़िशा ' कर दिया गया है. हम अपने देश के राज्यों और शहरों के नाम स्थानीय जन-भावनाओं के अनुरूप रख रहे हैं , यह अच्छी बात है और स्वागत योग्य भी है. लेकिन अचरज की बात यह है कि आज़ादी के चौंसठ साल गुजर जाने के बावजूद हमें अब तक यह ख्याल नहीं आया कि इस आज़ाद मुल्क के अंग्रेजी नाम 'इंडिया 'को प्रचलन से बाहर कर दिया जाना चाहिए. अगर कोई अंग्रेजी में हमारे देश का नाम लिखना चाहे तो 'इंडिया ' न लिख कर 'भारत ' लिखे. सरकारी तौर पर भी 'इंडिया' शब्द के प्रचलन और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए. वास्तव में मुझे तो 'भारत' लिखने में जितना गर्व महसूस होता है, 'इंडिया ' लिखने या 'इंडिया ' बोलने में उतने अपनेपन का एहसास नहीं होता .यह अंग्रेजी शब्द हमारी संस्कृति के अनुरूप भी नहीं है.
सच तो यह है कि 'इंडिया ' शब्द गुलामी का प्रतीक है और आज भी हमें गुलामी के काले दिनों की याद दिलाता है. अंग्रेजी के पांच अक्षरों का शब्द 'इण्डिया ' भारत माता के माथे पर बिंदिया की तरह नहीं , बल्कि गुलामी के कलंक की तरह चिपका हुआ है. हमें अपनी मातृभूमि के मान-सम्मान की रक्षा के लिए उसके माथे से इस कलंक को फ़ौरन मिटा देना चाहिए . जब हम आज़ादी के बाद मद्रास को चेन्नई , बम्बई को मुम्बई , कलकत्ता को कोलकाता , मैसूर को कर्नाटक.,बेंगलोर को बेंगलुरु और उड़ीसा को ओड़िशा में तब्दील कर सकते हैं , तो 'इंडिया ' को 'भारत ' में क्यों नहीं बदल सकते ? . -- स्वराज्य करुण
निसंदेह ।
ReplyDeleteयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
मुझे इंडिया में हिंद, सिंध भी निहित जान पड़ता है, इसलिए कभी अटपटा लगा नहीं, लेकिन आपका सुझाव चर्चा योग्य अवश्य है.
ReplyDeleteअंग्रेजों ने हमारे देश का नाम इंडिया क्यों रखा था ? यदि इसकी सही जानकारी हो तो शायद लोग जागृत हों और देश का नाम भारत रख पायें ...बहुत सही और विचारणीय बात कही है ...इंडिया से गुलामी की बू आती है ...
ReplyDeleteएक विचारोत्तेजक पोस्ट। हम भारत को इंडिया बनाए रखने में विश्वास करते है। यही विडम्बना है। क्या कहू, दुख होता है।
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट्।
ReplyDeleteआजादी के बाद पाकिस्तान को हालीलैंड नहीं कहा गया बल्कि भारत को इंडिया कहा गया, तीन साल बाद निर्मित संविधान भी constitution of india के रूप में स्वीकार किया गया. तइहा के बात ला तो चलव बईहा लेगे फेर आपके बात म दम हे कि, अब हमर गुलामी के नाम ला मेटा दन, एखर बर अपन-अपन डहर ले बिरोध परगट करना चाही. एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों के सोंच के संग.
ReplyDeleteआप के विचारो से पुर्णतः सहमत .
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