- स्वराज्य करुण
कहते थे जो अपने जीवन को खुली किताब,
कुर्सियों पर बैठ कर सब हो गए बेजवाब !
हर किसी का बार-बार अब उनसे यही सवाल,
देश की दौलत लूटने वाले क्या होंगे बेनकाब !
इन्साफ के मंदिर से उनको हुआ है यह आदेश,
जनता के दरबार में जाकर रख दो हर हिसाब !
नाम चोरों का बतलाने में क्यों इतना संकोच ,
शायद उनकी सूची में हैं उन जैसे कई नवाब !
मर जाए यहाँ भूख से कोई या फिर बेइलाज ,
उनको तो हर शाम चाहिए उम्दा नयी शराब !
जिनके जूतों से कुचलकर मर गयी मानवता ,
उनसे कुछ उम्मीद भी करना है इक झूठा ख्वाब !
आज़ादी की इस नदिया में नहीं बूँद भर पानी ,
ऐसे में यहाँ आए कैसे कोई जन-सैलाब !
पत्थर लेकर दौड़ाएंगे जब उनको हम लोग ,
शायद उस दिन आ पाएगा कोई इन्कलाब !
- स्वराज्य करुण
कहते थे जो अपने जीवन को खुली किताब,
कुर्सियों पर बैठ कर सब हो गए बेजवाब !
हर किसी का बार-बार अब उनसे यही सवाल,
देश की दौलत लूटने वाले क्या होंगे बेनकाब !
इन्साफ के मंदिर से उनको हुआ है यह आदेश,
जनता के दरबार में जाकर रख दो हर हिसाब !
नाम चोरों का बतलाने में क्यों इतना संकोच ,
शायद उनकी सूची में हैं उन जैसे कई नवाब !
मर जाए यहाँ भूख से कोई या फिर बेइलाज ,
उनको तो हर शाम चाहिए उम्दा नयी शराब !
जिनके जूतों से कुचलकर मर गयी मानवता ,
उनसे कुछ उम्मीद भी करना है इक झूठा ख्वाब !
आज़ादी की इस नदिया में नहीं बूँद भर पानी ,
ऐसे में यहाँ आए कैसे कोई जन-सैलाब !
पत्थर लेकर दौड़ाएंगे जब उनको हम लोग ,
शायद उस दिन आ पाएगा कोई इन्कलाब !
- स्वराज्य करुण
वो सुबह कभी तो आएगी
ReplyDeleteवो दिन कभी तो आएगा
प्रती्क्षा में
ललित शर्मा
बहुत सुंदर गज़ल .....
ReplyDeleteक्या करने वाले हैं आप.
ReplyDeleteबहुत विचारणीय विषय उठाया है आपने .
ReplyDeleteपत्थर लेकर दौड़ाएंगे जब उनको हम लोग ,
ReplyDeleteशायद उस दिन आ पाएगा कोई इन्कलाब !
काश वो दिन जल्दी आये..
विचारोत्तेजक! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी
विचार
ati sundar........ojpurna
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