दर्द भरी इस दुनिया को आओ हम बिसार चलें.,
चलो चलें अब नीर भरे इस नील गगन के पार चलें !
ऐसा कोई आँगन ढूँढें एक नया संसार जहाँ हो ,
सब हों मानव कोई न दानव ,इक-दूजे से प्यार जहां हो !
छल-कपट के आवरण को चेहरे से उतार चलें ,
चलो चलें अब नीर भरे इस नील-गगन के पार चलें !
नहीं किसी का दिल टूटे ,सच हो सबका सपना ,
प्रेम-भाव के मेले में जहां हर कोई हो अपना !
ख़्वाबों की अपनी दुनिया का करके हम श्रृंगार चलें ,
चलो चलें अब नीर भरे इस नील-गगन के पार चलें !
हरे-भरे हों खेत जहां और मन-भावन बाग-बगीचे ,
जग की सुंदर इस फुलवारी को सब मिल खूब सींचे !
दिल में नयी उम्मीदों के संग नूतन लेकर प्यार चलें
चलो चलें अब नीर भरे इस नील-गगन के पार चलें !
- स्वराज्य करुण
यह गाड़ी तो लेट ही होती जाती है.
ReplyDeleteख़ूबसूरत भावनाओं को आपने बेहतरीन कविता का रूप दिया है। हम सब यही चाहते हैं
ReplyDeleteसुन्दर भावनाओं से सजा अच्छा गीत
ReplyDeleteहौले हौले दिल को हम मनाते रहे
ReplyDeleteगुलदस्तों में नये फूल सजाते रहे
बहुत सुन्दर भावनाओं से सजी कविता|| धन्यवाद|
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