डीजल -पेट्रोल में
मिलावट पकड़ने गया तो
ज़िंदा जल गया /
राजा नहीं दहला ,
लेकिन देश दहल गया /
चुप रह कर राजा ने दिया
जनता को दिया यह सन्देश -
भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी
आगे आएगा ,
वह इसी तरह से ज़िंदा
जला दिया जाएगा /
खामोश जनता आखिर
कब तक सहेगी
चौपट राजा का यह अंधेर ?
अगर नहीं टूटेगी खामोशी
तो हो जाएगी बहुत देर /
अभी तो अघोषित रूप से
चल रहा है राज मिलावटखोरों का /
देश का धन लूट कर
विदेशी बैंकों में जमा करने वाले चोरों का /
कल अगर घोषित तौर पर वे
बैठ जाएंगे दिल्ली के सिंहासन पर
तब उनके हर भाषण पर ,
बेचारी जनता ! ऊपर -ऊपर
से रोज बजाएगी तालियाँ
लेकिन मन ही मन देगी गालियाँ /
इसके अलावा वह
क्या कुछ कर पाएगी !
वोट के बदले दारू, मुर्गा
नोट , साड़ी और कम्बल
से बिकने वाली जनता
इन चोरों से भला क्या नज़रें मिलाएगी ?
- स्वराज्य करुण
मिलावट पकड़ने गया तो
ज़िंदा जल गया /
राजा नहीं दहला ,
लेकिन देश दहल गया /
चुप रह कर राजा ने दिया
जनता को दिया यह सन्देश -
भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी
आगे आएगा ,
वह इसी तरह से ज़िंदा
जला दिया जाएगा /
खामोश जनता आखिर
कब तक सहेगी
चौपट राजा का यह अंधेर ?
अगर नहीं टूटेगी खामोशी
तो हो जाएगी बहुत देर /
अभी तो अघोषित रूप से
चल रहा है राज मिलावटखोरों का /
देश का धन लूट कर
विदेशी बैंकों में जमा करने वाले चोरों का /
कल अगर घोषित तौर पर वे
बैठ जाएंगे दिल्ली के सिंहासन पर
तब उनके हर भाषण पर ,
बेचारी जनता ! ऊपर -ऊपर
से रोज बजाएगी तालियाँ
लेकिन मन ही मन देगी गालियाँ /
इसके अलावा वह
क्या कुछ कर पाएगी !
वोट के बदले दारू, मुर्गा
नोट , साड़ी और कम्बल
से बिकने वाली जनता
इन चोरों से भला क्या नज़रें मिलाएगी ?
- स्वराज्य करुण
bahut sateek baat kahi hai aapne -bikne wali janta kaise aankh mila sakti hai .
ReplyDeleteकड़वा सच बयान करती रचना ! ऐसी बेलाग रचना की प्रशंसा में शब्द बहुत कम हैं.
ReplyDelete"जनता को दिया यह सन्देश, भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी आगे आएगा /वह इसी तरह जिन्दा जला दिया जाएगा.". आज सच बोलने का, भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने का यही अंजाम होता है...
लेकिन ये भी तो सच है कि इन हालातों के लिए जिम्मेदार भी तो हम यानि कि जनता ही है.. एक दम सच कहा करुण जी आपने ... "वोट के बदले दारू, मुर्गा/नोट, साड़ी और कम्बल/ से बिकने वाली जनता/ इन चोरों से भला क्या नज़रें मिलाएगी.."
मंजु
BOLD
ReplyDeleteआपकी नाराज़गी सही है.
ReplyDeleteसुन्दर और प्रभावी कविता.
''बिकने वाली जनता, इन चोरों से ...'' यही कहते रहे तो हम कहां है, यह भी तय करना होगा.
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