छीन रहे जो बेरहमी से
खेतों -खलिहानों को ,
हरे-भरे वन , पहाड़ और
हरियर मैदानों को ,
हे राम ! बताओ क्या कहें
हम ऐसे इंसानों को ?
कल तक भटका करते थे
जो हाथों में लिए कटोरे ,
मिली नौकरी तो जी भर
दौलत खूब बटोरे !
कुर्सी खातिर घर-घर घूमें
हाथ जोड़े-जोड़े ,
कुर्सी मिली तो खूब खाए
फोकट के चाट-पकौड़े ,
लोकतंत्र को चट कर जाए
रिश्वतखोर चटोरे !
जिनके घर -आंगन लहराता
काले धन का सागर ,
असली -नकली नोटों से
बनते वोटों के सौदागर !
जिनके ऊंचे भवन देख कर ,
दिल में उठती शंका
आश्रम है समाज-सेवक का ,
या सोने की लंका ?
कहीं सजी है जुए-शराब की,
कहीं नाच की महफ़िल ,
कहीं जश्न है आतंकियों का ,
मौज मनाते कातिल !
इस मनहूस मंज़र को देख
मानवता शर्मिन्दा है ,
मरने के हजारों साल बाद भी ,
दशानन अब तक ज़िंदा है !
सीता जैसी भारत माता
बंधक इसके आँगन ,
जाने कब मारा जाएगा
इस कलियुग का रावण !
- स्वराज्य करुण
Ye sochte-sochte ham hi mr jayege pr shayad ye kalyugi ravan nahi marega.
ReplyDeleteBahut hi sundar likha hai sir ji.
कलयुग का रावण अमर फ़ल खा के आया है। इसे भी मारने के लिए विभीषण की आवश्यकता है।
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं