गहराती रात में अचानक बजते सेलफोन के रिंगटोन से उसकी गहरी नींद खुल गयी . स्क्रीन पर देखा तो कोई अज्ञात नंबर था. पहले तो लगा कि रहने दिया जाए ,फिर अंदाज लगाने लगा- पता नहीं कौन होगा ? उत्सुकतावश कॉल-बेक करते ही उधर से 'वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे' की स्वरलहरी कानों में गूंजने लगी .उसने अंदाज लगाया -शायद कोई महात्मा गांधी का भक्त होगा , लेकिन यह क्या ?उस तरफ से आयी आवाज़ सुनकर तो भौचक ही रह गया - हैलो भाई भारतवासी ! मैं मोहनदास करमचंद गांधी बोल रहा हूँ . भारतवासी ने अपनी कांपती हुई आवाज़ में कहा -'प्रणाम बापू ! लेकिन इस वक्त आधी रात के सन्नाटे में आपने कैसे याद किया मुझे ? मेरे लायक कोई सेवा ?
गांधी जी ने कहा - बस यूं ही ! परलोक में रहते बहुत साल हो गए .मैं तो तुम लोगों को हमेशा याद करता रहता हूँ , लेकिन तुम मृत्यु-लोक के नागरिक मुझे साल में सिर्फ दो बार याद करते हो - मेरे जन्म दिन पर दो अक्टूबर को और मृत्यु-दिवस तीस जनवरी को . इन दो खास मौकों पर हर कोई मेरी सादगी की प्रशंसा कर मेरी राह पर चलने का संकल्प लेता है, पर चलता कोई नहीं ! बाकी साल के तीन सौ तिरेसठ दिन ये नागरिक क्या करते है , इधर स्वर्ग लोक में किसी से छुपा नहीं है .कहीं हत्यारे नेता बन रहे हैं, तो कहीं नेता संभाल रहे हैं हत्यारों और हथियारों की कमान ! गाँधी उपनाम धारी कई लोग आज मेरे नाम की आड़ में जनता को छलने और लूटने में लगे हुए हैं. मैंने कहा था कि असली सुराज और असली सुशासन महलों से नहीं , गरीबों की झोपड़ी से ,सच्चाई और सादगी से संचालित होगा ,लेकिन जनता के टैक्स से बने तुम्हारे आलीशान महलों ने मेरे इस सपने को कुचल कर रख दिया . मैंने कहा था कि समाज को शराब से बचाओ . तुम लोगों ने गंगा ,यमुना के इस देश में मदिरा की नदिया बहा दी . मैंने गाँवों के विकास का सपना देखा था , तुम लोगों ने मासूम गाँवों को शहरी दानवों के हाथों सौंप दिया .मैंने जनता को आत्म-निर्भर बनाने के लिए कुटीर उद्योगों की ज़रूरत बतायी थी , तुम लोगों ने किसानों की हरी-भरी ज़मीन छीनकर धुंआ उगलती दैत्याकार फैक्टरियां खड़ी कर दी और धरती को बंजर बना दिया .
कह रहे थे गांधी जी - मुझे लगा कि तुमको ये भी याद दिलाया जाए कि मृत्युलोक के भारत वर्ष में कातिलों , चोरों ,डकैतों ,रिश्वतखोरों और लफ्फाजों का ही बोलबाला है . काले धन के धंधे वालों की इज्जत दिन दूनी -रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है मुझे यह देख कर काफी बेचैनी होती है कि इन तथाकथित महान विभूतियों की अरबों-खरबों रूपयों की इस विशाल दौलत में करोड़ों रूपयों के ऐसे नोट भी है, जिन पर मेरी तस्वीर भी छपी हुई है .तुम लोगों ने क्यों मुझे ज़बरन नोटों पर चिपका दिया ? ये नोट न जाने कितने हत्यारों,पाकिटमारों , घूसखोरों , काले धन और शराब के कारोबारियों के हाथों से होकर बैंकों तक पहुँचते है . यह सब देखकर मुझे लगता है कि अगर मैं इस वक्त धरती पर होता ,तो शायद ऐसे दृश्य देखकर ज्यादा दिनों तक ज़िंदा नही रह पाता और आत्महत्या कर लेता ! अच्छा हुआ ,जो मेरी हत्या कर दी गयी और मुझे तुम्हारी धरती से वापस भेज दिया गया .
भारतवासी के पास बापू से कहने के लिए कोई विषय नहीं था . सो, उसने उनको शुभरात्रि कहकर बिदा माँगी और जैसे ही नींद खुली ,वह खुद को अपने घर के बिस्तर पर पाया .
- स्वराज्य करुण
वर्तमान का यथार्थ है इस लघु कथा में....
ReplyDeleteआप ने तो एक नया आईडिया दे दिया आशा है कापी राईट मुक्त होगा
ReplyDeleteअब भारत वासी के पास कहने के लिए सचमुच कुछ नहीं है ..
ReplyDeleteबहुत बढिया पोस्ट - आभार
ReplyDelete♥
ReplyDeleteगांधी उपनाम धारी कई लोग आज जनता को छलने और लूटने में लगे हुए हैं
इन सबका इलाज ज़रूरी है …
अच्छी पोस्ट है आदरणीय स्वराज्य करुण जी !
आभार एवं बधाई !
आपको सपरिवार
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार