Sunday, October 23, 2011

पल भर में सब कुछ स्वाहा !

                                         गाँवों में तो कम, लेकिन शहरों में एक साल बाद फिर हम देखने वाले हैं एक ऐसे युद्ध का नज़ारा , जिसमें कहीं बारूद के शोले  बरसेंगे तो कहीं बमों के धमाकेदार गोले .  रात के स्याह आसमान पर  कहीं मिसाइल दागे जाएंगे ,तो कहीं सड़कों पर रायफलों  और पिस्तौलों  से लैस लड़ाके हवा में गोलियों की बौछार करेंगे और  कहीं ज़मीन पर दूर तक बारूदी पट्टियां बिछाकर  कई-कई मिनटों तक विस्फोटों का नजारा पेश किया जाएगा .  आपके मकान की दीवारें थर्राने लगेंगी .घर में अगर नवजात शिशु या कमज़ोर दिल का कोई बुजुर्ग हो तो उनकी नींद हराम हो जाएगी .इस युद्ध में हालांकि लापरवाही की वज़ह से  जन-हानि तो कम होगी लेकिन धन-हानि बेहिसाब  ! देखते जाइए !  इंतज़ार की घड़ियाँ खत्म होने को है !
  आप तैयार हैं न  इस युद्ध को झेलने के लिए ?  घबराइए नहीं ! मैं किसी असली युद्ध की भविष्यवाणी नहीं कर रहा हूँ . मेरा इशारा तो  आने वाली दीपावली की ओर है,जो हमारी संस्कृति में है तो वाकई प्रकाश पर्व ,लेकिन मुनाफाखोरों  की बेरहम और बेहिसाब महत्वाकांक्षा ने इसे सिर्फ और सिर्फ बारूद और बमों का त्यौहार बना दिया है. सुप्रीम कोर्ट और सरकार  पर्यावरण बचाने और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए  ऐसे हानिकारक पटाखों पर चाहे कितनी ही कानूनी बंदिशें लगाती रहें , लोगों को इनसे बचने और सावधानी बरतने और मरीजों की तकलीफों को ध्यान में  रख कर  अस्पतालों के आस-पास पटाखे नहीं फोड़ने की  हज़ारों बार अपील करती रहें , लोग ऐसी चिकनी मिट्टी के बने हैं कि उन  पर इन अपीलों का कोई असर नहीं होने वाला !  आप सायकल या मोटरसायकल से कहीं जा रहे हों या आ रहे हों, आपके सामने सड़क पर दो-चार सड़क छाप लोग एटम बम पर बड़ी बेफिक्री से पलीता सुलगाते रहेंगे , आपको बचना है तो अपनी हिफाजत  खुद कर लीजिए ,वरना आपका तो खुदा ही मालिक है .
               दीपावली ज्योति पर्व है , रौशनी का त्यौहार है , लक्ष्मी जी के पूजन का एक पवित्र अनुष्ठान है, किसानों के लिए देवी अन्नपूर्णा के रूप में नई  फसल के स्वागत का महोत्सव है , अहंकारी रावण को पराजित कर मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की  अयोध्या वापसी पर उनके स्वागत में  प्रज्ज्वलित दीपमालिकाओं के  अभिनन्दन का पारिवारिक और सार्वजनिक समारोह है, सामाजिक समरसता और मेल-मिलाप का प्यार भरा आयोजन है , लेकिन  हज़ारो वर्षों की हमारी इस खूबसूरत भारतीय परम्परा में उमंगों के फूलों की भीनी महक के बीच कब ,कहाँ और किसने  बारूदी गंध बिखेरना शुरू कर दिया , यह गहन शोध   का विषय है.अब तो  दीपावली में सिर्फ फुलझड़ियों से रौशनी बिखेरना , हल्के-फुल्के टिकली पटाखा फोड़ना केवल बच्चों का खेल माना जाता है , बड़ी उम्र के लोगों को  दीवाली मनाने के लिए सौ-सौ रूपए वाले एटम-बम चाहिए ,पचास-पचास रूपए वाले रॉकेट चाहिए . भले ही इसमें उनके माँ-बाप की जेब खाली क्यों न हो जाए ?  ऐसे एटम बम चलाने में किसी की आँखें क्यों न चली जाएँ और हाथ-पैर क्यों न झुलस जाएँ चाहे जान भी क्यों न गंवानी पड़े ! पटाखों के दीवानों  को थोड़ा भी  फर्क नहीं पड़ता !

                                              
    भले ही इसमें जन-धन की हानि होती रहे, पर वह तो तन-मन और धन से भी इसके लिए बावले हो चुके हैं  इसलिए उन्हें यह कैसे दिखाई देगा कि देश के सबसे बड़े पटाखा उद्योग केन्द्र कहे जाने वाले  शहर  शिवाकाशी में जिस  बारूदी अनारदाना और फुलझड़ी को बनाने में सिर्फ दस रूपए या उससे भी कम लागत आती है, उसकी कीमत तमिलनाडु के इस शहर से भोपाल तक आते-आते एक सौ  रूपए से भी ज्यादा हो जाती है .यानी हम दस रूपए के  सामान के लिए  दस गुना ज्यादा कीमत चुकाकर दीवाली मनाते हैं और खुशी-खुशी अपना दीवाला भी  निकलवाते हैं .एक समाचार के अनुसार  शिवाकाशी के भारतीय पटाखा निर्माता संघ के अध्यक्ष जे .तमिल सिल्वन ने एक अखबार से  चर्चा में स्वयं यह स्वीकार किया है कि दस रूपए की लागत वाले पटाखे की पैकिंग पर एक सौ दस रूपये कीमत लिखकर व्यापारियों को पचास प्रतिशत की खास रियायत दी जाती है और व्यापारी को यह आज़ादी होती है कि वह  बाज़ार में  इस पर अपनी मर्जी से कुछ भी रेट लिखकर बेचे . देखा आपने ! मुनाफे की संकीर्ण मनोवृत्ति कहाँ तक पहुँच गयी है ? इसीलिये तो मैं पहले भी कई बार अखबारों में पाठकीय पत्रों वाले कॉलमों में यह मांग कर चुका हूँ कि हर पैक्ड वास्तु पर विक्रय मूल्य के साथ-साथ लागत मूल्य भी अनिवार्य रूप से प्रिंट होना चाहिए . इसके लिए अलग से क़ानून बनाया जाना चाहिए  देश में सूचना का अधिकार क़ानून लागू हो चुका है . केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय अगर चाहे तो  पैक्ड चीजों के लागत मूल्य को भी वह इस क़ानून के दायरे में लाने के लिए स्वप्रेरणा से पहल कर सकता है .इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि  पटाखों के साथ-साथ साबुन,खाद्य तेल , टूथपेस्ट , तरह तरह की जीवन रक्षक दवाइयां और अन्य कई ऐसी पैक्ड उपभोक्ता वस्तुएँ  हैं ,जो अपनी वास्तविक लागत से कई गुना ज्यादा कीमत पर बिक रही हैं और निर्माता और विक्रेता मनमाना मुनाफ़ा बटोर रहे हैं . अगर लागत मूल्य की गोपनीयता खत्म हो जाए, तो देश में कई ज़रूरी उपभोक्ता सामानों की कीमतें गिर जाएँगी ,जिससे महंगाई की आग काफी हद तक  ठंडी हो सकती है.  बहरहाल हम बात कर रहे थे दीवाली में पटाखों के नाम पर स्वाहा किये जाने वाले  रूपयों के बारे में और इस  हानिकारक बारूदी   मनोरंजन के बारे में . क्या आप जानते हैं कि दिल को लुभाने वाली रंगीन रौशनी की  फुलझड़ियों , अनारदानों  और धमाकेदार आवाज़ करने वाले पटाखों   में किस तरह के घातक रसायन होते हैं ?  विशेषज्ञों के अनुसार इन्हें बनाने में  लीथियम , कैडमियम , सोडियम लेड  मैटल नाइट्रेट , पोटेशियम डाईक्रोमेट  जैसे  रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है.
      कम संख्या में ही सही लेकिन हर साल  शहर में दीवाली के आस-पास कुछ बाल-श्रमिकों की रैली निकलती है , जिसमें ये मासूम बच्चे हाथों में तख्तियां लेकर जनता से अपील करते नज़र आते हैं कि घातक पटाखे मत जलाइए ,क्योंकि उनके निर्माण में नादान बच्चों की मजबूरियों का पसीना लगा हुआ है !  लेकिन वाह रे वाह  हमारा बेरहम समाज !  किसी पर कोई असर नहीं होता ,बल्कि दीवाली पर तो सारी रात शहरों में धमाके होते रहते हैं ,लगता है कि कहीं कोई युद्ध  चल रहा है . एक एटम बम फूटा यानी कम से कम बीस रूपए स्वाहा ! देश के सभी शहरों में दीवाली में रात भर फूटने वाले ऐसे लाखों-करोड़ों एटम बमों का हिसाब लगाया जाए तो वह आंकड़ा  हजारों करोड़ भी पार कर जाता होगा  ! क्या यह राष्ट्रीय धन की बर्बादी नहीं है ?  कोई  चाहे तो कह सकता है कि दीवाली मनाने के लिए हर व्यक्ति अपने हिसाब से पटाखों पर खर्च करता है  . इसमें आपको क्यों तकलीफ हो रही है ? लेकिन यह देख कर  तकलीफ तो होगी  कि एक तरफ तो हम देश में गरीबी और महंगाई का रोना रोते हैं ,वहीं दूसरी तरफ कुछ देर के मौज-मजे के लिए महंगे पटाखों के रूप में अपनी मेहनत की कमाई के सैकड़ों रूपए आग में झोंक देते हैं .पल भर में सब कुछ  भस्म हो जाता  है ! कई पटाखों की पैकिंग पर  देवी-देवताओं की तस्वीरें भी छपी होती हैं ,पटाखों के फूटते ही उन चित्रों के भी परखच्चे उड़ जाते हैं. क्या धन की बर्बादी के साथ -साथ यह धर्म का भी अपमान नहीं है ?  ऐसा करके आखिर हम क्या बताना और क्या जताना चाहते हैं ? क्या पटाखों पर स्वाहा कर दी जाने वाली इस बेहिसाब दौलत का इस्तेमाल मानवता की सेवा और जन-कल्याण के कामों में नहीं हो सकता ?क्या खुशियाँ मनाने का  कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता ? आखिर कौन सी पुस्तक में लिखा है कि दीवाली में पटाखों के नाम पर रूपए -पैसों का हवन करना चाहिए ? 
                                                                                                   --   स्वराज्य करुण
                                                                                                     
                                               
 

5 comments:

  1. हर बच्‍चा आजमा लेना चाहता है और हर बड़ा नसीहत देना, लगता है अनवरत सिलसिला है यह.

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  2. पटाखों से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है ये तो तय है। आगे चलकर इसका खामियाजा आगामी पीढी को उठाना पड़ेगा।

    दीप पर्व की हार्दिक बधाई

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  3. दीपावली तो वस्तुतः रौशनी का ही त्यौहार है!

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  4. अच्छा लेख , आपकी चिता वाजिब है . शीध्र ही आपको ग्राम चौपाल में प्रदुषण मुक्त पटाखें मिलेंगें , कृपया इंतजार करें .

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  5. रोशनी के इस त्‍यौहार को गलत स्‍वरूप में ढाल दिया गया है ..
    .. सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!

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