इसमें कोई शक नहीं कि अन्ना जी के अनोखे ,अहिंसक और ऐतिहासिक जन-आंदोलन ने
देश की जनता को कुछ दिनों के लिए भावनात्मक रूप से एकजुट तो कर ही दिया था, लेकिन सवाल ये है कि देशवासियों की यह एकता क्या आगे भी कायम रहेगी ?
यह सच है कि देश में भ्रष्टाचार की रफ़्तार आज महंगाई की रफ्तार से भी ज्यादा तेज हो गयी है. भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुँच गया है. उसके अनेक रूप हैं. रुपयों के दम पर फलने-फूलने और दौड़ने वाला भ्रष्टाचार दरअसल एक बहुरुपिया है. उसके कई रूप हैं. वह कभी अस्पतालों में तड़फते मरीजों के सामने उनके प्राणों की सौदेबाजी करते डॉक्टर के रूप में मौजूद रहता है, तो कभी कल बनी करोड़ों की ताजा-तरीन सड़क पर आज ज़ख्मों की तरह उभर आए खतरनाक गड्ढों के रूप में. कभी रेलवे स्टेशनों में मुसाफिरों से सीटों का सौदा करते टिकट -चेकर के रूप में,तो कभी स्कूल-कॉलेजों में बच्चों के दाखिले के लिए लाखों रूपयों की फीस वसूलते मैनेजमेंट के रूप में .ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार केवल सरकारी तन्त्र में है. उसके बाहर भी वह कई मुखौटों में हमारे सामने मौजूद रहता है और हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते .यह बहुरुपिया भ्रष्टाचार देश के सामने सबसे गम्भीर चुनौती बनकर खड़ा है
मेडिकल बाज़ार में एक ही बीमारी की एक दवा कई अलग-अलग नामों से अलग-अलग कीमतों में बिकती है. डॉक्टर सस्ती के स्थान पर अपने कमीशन की लालच में मरीज को महंगी दवा की पर्ची थमा देते हैं और मरीज उसे खरीदने को मजबूर हो जाता है. देश में हजारों-लाखों युवा इंजीनियर बेकारी का दर्द झेल रहे हैं, जिन्होनें बड़ी हसरतों के साथ इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी, लेकिन बेरहम भ्रष्टाचार ने उन्हें बेरोजगारी के चक्रव्यूह में घेर लिया है.सिफारिश और पहुँच के आधार पर किसी सौभाग्यवान को नौकरी मिल जाए,तो बात अलग है, सरकारी दफ्तरों में निक्कमे ,अयोग्य लेकिन जुगाड़ में माहिर लोगों की पदोन्नति हो जाती है और कर्तव्यनिष्ठ लोग मन मसोस कर रह जाते हैं . खेतों में लोहे-लक्कड़ के विशाल कारखाने खड़े करके कृषि-उत्पादन को कम करते जाना भी एक तरह का गम्भीर भ्रष्टाचार है. केवल दो-चार सौ प्रतियां छापकर अपने अखबार की प्रसार संख्या हज़ारों में दर्शाने और उस आधार पर सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाओं से लाखों रुपयों का विज्ञापन लेने वाले लोग क्या स्वयं को सदाचारी कह सकते हैं ? मिलावटी मिठाई, मिलावटी दवा , मिलावटी दूध , ज़हरीले रंगों से रंगी सब्जियां बेचना भी भ्रष्टाचार का एक भयानक रूप है.इस बहुरुपिया भ्रष्टाचार से क्या जन-लोकपाल जैसा कोई क़ानून अकेले निपट पाएगा ?
इस क़ानून की मांग को लेकर अन्नाजी ने जनता को एकजुट ज़रूर कर दिया , लेकिन जनता की यह एकता कहीं क्षणिक भावुकता बन कर न रह जाए, वह चिर स्थायी हो , तभी जन-लोकपाल का यह जन-आंदोलन सार्थक होगा .दरअसल जनता के रूप में हमारी स्मरण-शक्ति वैसे भी काफी कमजोर है. बोफोर्स तोप और पशुचारे के घोटाले को हम लगभग भूल गए हैं .एक साल से भी कम अरसे में उजागर हुए कॉमन-वेल्थ और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटालों की यादें भी अब धुंधली होती जा रही है. ऐसे में क्या कोई अकेलाजन-लोकपाल क़ानून भ्रष्टाचार को रोक पाने में कामयाब हो पाएगा ?जन-लोकपाल का अपना महत्व हो सकता है, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि देश में सामाजिक-आर्थिक अपराधों की रोकथाम के लिए कानूनों की एक लंबी सूची पहले से उपलब्ध है , कलमाडी, कनीमोझी और हसन अली जैसे लोग इन्हीं कानूनों के तहत जेल की हवा खा रहे हैं . इन्हीं कानूनों की लम्बी फेहरिस्त में अगर जन-लोकपाल के रूप में एक और क़ानून जुड भी जाएगा ,तो भविष्य में कोई आर्थिक अपराधी पैदा नहीं होगा ,क्या इसकी कोई गारंटी है ? वास्तव में भ्रष्टाचार का फैलाव राष्ट्रीय स्तर पर है . उसे खत्म करने के लिए प्रत्येक नागरिक में सबसे पहले राष्ट्रीय चरित्र का विकास ज़रूरी है
-.स्वराज्य करुण
देश की जनता को कुछ दिनों के लिए भावनात्मक रूप से एकजुट तो कर ही दिया था, लेकिन सवाल ये है कि देशवासियों की यह एकता क्या आगे भी कायम रहेगी ?
यह सच है कि देश में भ्रष्टाचार की रफ़्तार आज महंगाई की रफ्तार से भी ज्यादा तेज हो गयी है. भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुँच गया है. उसके अनेक रूप हैं. रुपयों के दम पर फलने-फूलने और दौड़ने वाला भ्रष्टाचार दरअसल एक बहुरुपिया है. उसके कई रूप हैं. वह कभी अस्पतालों में तड़फते मरीजों के सामने उनके प्राणों की सौदेबाजी करते डॉक्टर के रूप में मौजूद रहता है, तो कभी कल बनी करोड़ों की ताजा-तरीन सड़क पर आज ज़ख्मों की तरह उभर आए खतरनाक गड्ढों के रूप में. कभी रेलवे स्टेशनों में मुसाफिरों से सीटों का सौदा करते टिकट -चेकर के रूप में,तो कभी स्कूल-कॉलेजों में बच्चों के दाखिले के लिए लाखों रूपयों की फीस वसूलते मैनेजमेंट के रूप में .ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार केवल सरकारी तन्त्र में है. उसके बाहर भी वह कई मुखौटों में हमारे सामने मौजूद रहता है और हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते .यह बहुरुपिया भ्रष्टाचार देश के सामने सबसे गम्भीर चुनौती बनकर खड़ा है
मेडिकल बाज़ार में एक ही बीमारी की एक दवा कई अलग-अलग नामों से अलग-अलग कीमतों में बिकती है. डॉक्टर सस्ती के स्थान पर अपने कमीशन की लालच में मरीज को महंगी दवा की पर्ची थमा देते हैं और मरीज उसे खरीदने को मजबूर हो जाता है. देश में हजारों-लाखों युवा इंजीनियर बेकारी का दर्द झेल रहे हैं, जिन्होनें बड़ी हसरतों के साथ इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी, लेकिन बेरहम भ्रष्टाचार ने उन्हें बेरोजगारी के चक्रव्यूह में घेर लिया है.सिफारिश और पहुँच के आधार पर किसी सौभाग्यवान को नौकरी मिल जाए,तो बात अलग है, सरकारी दफ्तरों में निक्कमे ,अयोग्य लेकिन जुगाड़ में माहिर लोगों की पदोन्नति हो जाती है और कर्तव्यनिष्ठ लोग मन मसोस कर रह जाते हैं . खेतों में लोहे-लक्कड़ के विशाल कारखाने खड़े करके कृषि-उत्पादन को कम करते जाना भी एक तरह का गम्भीर भ्रष्टाचार है. केवल दो-चार सौ प्रतियां छापकर अपने अखबार की प्रसार संख्या हज़ारों में दर्शाने और उस आधार पर सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाओं से लाखों रुपयों का विज्ञापन लेने वाले लोग क्या स्वयं को सदाचारी कह सकते हैं ? मिलावटी मिठाई, मिलावटी दवा , मिलावटी दूध , ज़हरीले रंगों से रंगी सब्जियां बेचना भी भ्रष्टाचार का एक भयानक रूप है.इस बहुरुपिया भ्रष्टाचार से क्या जन-लोकपाल जैसा कोई क़ानून अकेले निपट पाएगा ?
इस क़ानून की मांग को लेकर अन्नाजी ने जनता को एकजुट ज़रूर कर दिया , लेकिन जनता की यह एकता कहीं क्षणिक भावुकता बन कर न रह जाए, वह चिर स्थायी हो , तभी जन-लोकपाल का यह जन-आंदोलन सार्थक होगा .दरअसल जनता के रूप में हमारी स्मरण-शक्ति वैसे भी काफी कमजोर है. बोफोर्स तोप और पशुचारे के घोटाले को हम लगभग भूल गए हैं .एक साल से भी कम अरसे में उजागर हुए कॉमन-वेल्थ और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटालों की यादें भी अब धुंधली होती जा रही है. ऐसे में क्या कोई अकेलाजन-लोकपाल क़ानून भ्रष्टाचार को रोक पाने में कामयाब हो पाएगा ?जन-लोकपाल का अपना महत्व हो सकता है, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि देश में सामाजिक-आर्थिक अपराधों की रोकथाम के लिए कानूनों की एक लंबी सूची पहले से उपलब्ध है , कलमाडी, कनीमोझी और हसन अली जैसे लोग इन्हीं कानूनों के तहत जेल की हवा खा रहे हैं . इन्हीं कानूनों की लम्बी फेहरिस्त में अगर जन-लोकपाल के रूप में एक और क़ानून जुड भी जाएगा ,तो भविष्य में कोई आर्थिक अपराधी पैदा नहीं होगा ,क्या इसकी कोई गारंटी है ? वास्तव में भ्रष्टाचार का फैलाव राष्ट्रीय स्तर पर है . उसे खत्म करने के लिए प्रत्येक नागरिक में सबसे पहले राष्ट्रीय चरित्र का विकास ज़रूरी है
-.स्वराज्य करुण
पोस्ट प्रकाशित करें
क़ानून से ज्यादा ज़रुरी है आत्मिक विकास की ... लेकिन फिर भी क़ानून यदि सशक्त होगा तो भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध एक हथियार होगा ..
ReplyDeletebahut aacha
ReplyDeleteSAWARJY JI AAPNE SAHI KAHA HAI KI AAJ YE BAHROOPIYA BHRASHTACHAR EK GAMBHEER CHUNAUTI HAI.SARTHAK V GAMBHEEER AALEKH .
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 29-08-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteअन्ना ने कमाल कर दिया..... सोये हुए भारतियों को एक बार फिर जगा दिया.
ReplyDeletesatya vachan kamaal ka visleshan badhai
ReplyDeleteअन्ना को शत शत प्रणाम...सार्थक आलेख...
ReplyDeletesarthak racna
ReplyDeletemere blog per bhi aapka swagat hai
अब ये चिंगारी जल्दी बुझने वाली तो नहीं है ......
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