घूम रहे हैं बाल बिखेरे
अपनी धुन में, मस्ती में ,
नए-नए आकार बनाते
शिल्पकार -से बादल !
सफर शुरू होता है इनका
सागर की फ़ैली बांहों से ,
कितने मोडों से हैं गुजरते ,
जाने कितनी राहों से !
दिल में सबके भले की चाहत ,
देते सब प्यासों को राहत ,
सारे जग को नीर बाँटते ,
बड़े प्यार से बादल !
ठहर-ठहर कर गाँव-शहर ,
जंगल-जंगल ,घाटी-घाटी ,
धरती के आंचल को भिगोए ,
चूमें हर एक खेत की माटी !
अपना हलधर खुश हो जाता ,
मेघों का जब रंग गहराता ,
मेहनतकश इंसान को
लगते पुरस्कार-से बादल !
लगते पुरस्कार-से बादल !
-- स्वराज्य करुण
छाया चित्र google साभार
वर्षा पर ही खेती आधारित है।
ReplyDeleteबादल देख कर किसान का खुश होना लाजमी है।
सुंदर भावयुक्त कविता के लिए आभार
बहुत सुन्दर कविता ,बधाई .
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... मेहनतकश लोगों के लिए पुरस्कार से बादल ..बहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कहा है।
ReplyDeleteआपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/
अपना हलधर खुश हो जाता ,
ReplyDeleteमेघों का जब रंग गहराता ,
मेहनतकश इंसान को
लगते पुरस्कार-से बादल !...बहुत सुन्दर कविता
मेहनतकश इंसान को लगते
ReplyDeleteपुरस्कार से.......... बादल
,,,,,,,,,,,,,,,,,सुन्दर , भावपूर्ण, लयबद्ध रचना
बहुत अच्छी रचना !!
ReplyDeleteसफर शुरू होता है इनका
ReplyDeleteसागर की फ़ैली बांहों से ,
कितने मोडों से हैं गुजरते ,
जाने कितनी राहों से !
दिल में सबके भले की चाहत ,
देते सब प्यासों को राहत ,
सारे जग को नीर बाँटते ,
बड़े प्यार से बादल !
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
स्वराज्य करून जी -अभिवादन बहुत सुन्दर शब्द आप के sach में ये baadal कितने रंग बदलते हैं कभी तरसते हैं कभी ख़ुशी से झुमने नाचने को दिल मयूर सा बना जाते हैं ...
ReplyDeleteआभार आप का
शुक्ल भ्रमर ५
अपना हलधर खुश हो जाता ,
मेघों का जब रंग गहराता ,
मेहनतकश इंसान को
लगते पुरस्कार-से बादल !