- स्वराज्य करुण
मेघों का परिधान पहन कर आया है इस बार भी पानी ,
भीग रहा है सबका आंगन ,भीग रही है सबकी छानी !
नदियों के इठलाने का भी
आज नया कुछ ढंग हुआ है,
गर्मी के कवियों का सम्मेलन
अभी-अभी ही भंग हुआ है !
फ़ैल रही है इधर-उधर अब शीतलता की बौछारें ,
धरती पर खूब उछल-कूद कर बूँदें करती मनमानी !
दिन में सूरज की सब किरणें
बादल के घर खेलती हैं ,
और हवा भी नई बहू-सी
बारिश की रोटी बेलती है !
1 पग-पग पर हैं रानी -कीड़े , रेशम-सी मुस्कान बिखेरें ,
नटखट गुड़िया -सी बिजली करती है खूब मनमानी !
ढोल-मृदंग अब कौन बजाए
गलियों में,चौपालों में ,
अम्बर से संगीत झर रहा ,
झीलों, नदियों ,तालों में !
उमंगों के हैं फूल खिल रहे हरियाली के आंगन में ,
नयी तरंगों के झूले में झूलकर खिल गयी धरती रानी !
- स्वराज्य करुण
छाया चित्र google से साभार
रानी कीड़े -मानसून की पहली बौछार के बाद धरती पर निकलने वाले
लाल सुर्ख मुलायम रेशमी त्वचा वाले कीड़े ,जिन्हें छत्तीसगढ़ में रानी-कीड़े के नाम से
जाना जाता है, जो लगातार बिगड़ते पर्यावरण के बीच अब लगभग विलुप्त हो गए हैं .
सुंदर वर्षा गीत,माटी की सौंधी खुश्बु लिए हुए।
ReplyDeleteरानी कीड़ा को बहूटी भी कहते हैं।
आभार
बहुत सुन्दर वर्ष गीत| धन्यवाद
ReplyDeleteढोल-मृदंग अब कौन बजाए
ReplyDeleteगलियों में,चौपालों में ,
अम्बर से संगीत झर रहा ,
झीलों, नदियों ,तालों में !
sundar prakritik prastuti.
वाह वाह
ReplyDeleteनदियों के इठलाने का भी
आज नया कुछ ढंग हुआ है,
गर्मी के कवियों का सम्मेलन
अभी-अभी ही भंग हुआ है
मजा आ गया
बहुत सुन्दर गीत.
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