काले धन के धंधे वाले किस दुनिया के जन्तु ,
नाम बताने में शर्माते ,कहते किन्तु-परन्तु !
देश की दौलत लूट -लूट कर
भरते अपनी तिजोरी ,
गुप्त-बैंक शाखाओं में
करते हिसाब चोरी-चोरी !
हवाई जहाज़ में रोज घूमते ये डकैत घुमन्तू ,
काले धन के धंधे वाले किस दुनिया के जन्तु !
हिसाब मांगने पर चलवाते ,
आधी रात को लाठी ,
अगली बार करेंगे छलनी
जन-गण-मन की छाती !
ये रावण हैं,इनका वध करने चल राम बन तू ,
काले धन के धंधे वाले किस दुनिया के जन्तु !
खून-पसीने से जनता
देती है इनको टैक्स ,
उसी रकम से मौज -मजा कर
ये होते रिलैक्स !
माया जाल है इनका ऐसा दिखे न कोई तन्तु,
काले धन के धंधे वाले किस दुनिया के जन्तु !
भ्रष्ट आचरण से है खूब
याराना जिनका ,
उन चोरों के चेहरों पर
नजर आ रहा तिनका !
इनकी बातों में न बहकना मेरे भोले मन तू ,
काले धन के धंधे वाले किस दुनिया के जन्तु !
--- स्वराज्य करुण
भ्रष्ट्राचारी किस्म जंतुओं की बाढ आ गयी है। पहले तो हम इनको "बतर किरी" समझते रहे,लेकिन ये खटमल और ति्लचट्टे निकले। इनकी बाढ तो रुक ही नहीं रही है।
ReplyDeleteकिसी ने कहा है-
गुनाहगारों पे जो देखी रहमत-ए-खुदा
बेगुनाहों ने कहा,हम भी गुनाह्गार हैं।
बहुत सटीक रचना लिखी है ...इन जंतुओं को मारने के लिए कोई कीटनाशक अभी बना ही नहीं है ..
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना!
ReplyDeleteदेश की दौलत लूट -लूट कर
ReplyDeleteभरते अपनी तिजोरी ,
गुप्त-बैंक शाखाओं में
करते हिसाब चोरी-चोरी
bahut sateek abhvyakti.aabhar
चोर की दाढ़ी मे तिनका नही नजर आ रहा आज वह तिनका गोल्ड मैडल है सोने मे जड़ा कर लगाते है चोर
ReplyDeleteआदरणीय स्वराज्य करुण जी
ReplyDeleteसादर वंदे मातरम्!
आपकी तीनों रचनाओं के लिए आभार और कृतज्ञता स्वीकार करें ।
अंतिम विजय 'राम' की होगी !
चालबाज की चालाकी !
किस दुनिया के जन्तु ?
तीनों रचनाएं एक से बढ़कर हैं …
आप जैसे समर्थ सरस्वतीपुत्र से ऐसी आवश्यक और सामयिक महत्व की रचनाओं की अपेक्षा भी रहती है … हृदय से आभार !
अब तक तो लादेन-इलियास
करते थे छुप-छुप कर वार !
सोए हुओं पर अश्रुगैस
डंडे और गोली बौछार !
बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
पागल कुत्ते पांच हज़ार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
आपका हार्दिक स्वागत है
- राजेन्द्र स्वर्णकार