ये देश हमारा है ,हम इसकी शान उजड़ने न देंगे !
कितनी पावन है यहाँ के
हरे -भरे खेतों की माटी ,
श्रम के गीतों से गमकती
इसकी नदियाँ और घाटी !
इस धरती के खेत और खलिहान उजड़ने न देंगे !
भीनी-भीनी भिनसारे की
जहां बहे बयार वासन्ती ,
जहाँ अभावों में भी हरदम
होली और दीवाली मनती !
रंग-बिरंगे फूलों का हम उद्यान उजड़ने न देंगे !
अमृत जैसी जिसकी ममता ,
जिसके मन-मंदिर में समता ,
गीत जहां हर पल प्यार का
हर तन ,हर मन में है रमता !
ऐसे सुंदर आंगन का मकान उजड़ने न देंगे !
- स्वराज्य करुण
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ReplyDeleteएक दम रेशमी अहसास को जगाती रचना।
ReplyDeleteजहाँ अभावों में भी हरदम
होली और दीवाली मनती !
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
सुन्दर गीत!
ReplyDeleteसुन्दर कविता !
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