स्वराज्य करुण
बिन बुलाए मेहमान सी आंगन में खड़ी है ,
मुसीबतों की न जाने कैसी ये घड़ी है !
कल रात दिल से दिल का जमकर हुआ झगड़ा ,
ज़ज्बात को ठोकर से लगी चोट गहरी है !
इंसान के चेहरे ने इंसान को बहुत लूटा ,
इंसानियत का बोल यहाँ कौन प्रहरी है !
भोलापन इस गाँव का बह गया सैलाब में ,
खेतों में आ के बस गए चालबाज शहरी हैं !
कुर्सी जहां आज खुद मुजरिम हुआ करे ,
मेरे वतन में कातिलों की ऐसी कचहरी है !
स्वराज्य करुण
भोलापन इस गाँव का बह गया सैलाब में ,
ReplyDeleteखेतों में आ के बस गए चालबाज शहरी हैं !
कुर्सी जहां आज खुद मुजरिम हुआ करे ,
मेरे वतन में कातिलों की ऐसी कचहरी है !
Bahut sahee.
बहुत अच्छी गज़ल ..
ReplyDeleteवाह!क्या कहने………………अति सुन्दर
ReplyDeleteखूबसूरत है..
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